"..तो वादी निराश हो जाते हैं" : सुप्रीम कोर्ट ने न्याय में देरी पर जताई चिंता
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को न्याय में देरी पर चिंता जताई है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब प्रक्रिया धीमी गति से चलती है तो वादी निराश हो जाते हैं. इससे वादियों का सिस्टम से भरोसा उठ जाएगा. कोर्ट ने मामलों के जल्द निपटारे के लिए हाईकोर्ट को 11 दिशा-निर्देश जारी किए.
यह भी पढ़ें
एक सिविल अपील पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस एस रवींद्र भट और अरविंद कुमार की पीठ ने दुख के साथ कहा कि ट्रायल कोर्ट में मुकदमा 1982 में शुरू हुआ और 43 साल तक चला. पीठ ने कहा कि उसने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड से लंबित मामलों के देशव्यापी आंकड़ों पर गौर किया है. इस मुद्दे के समाधान के लिए बार और बेंच की ओर से संयुक्त प्रयासों की जरूरत है.
जस्टिस अरविंद कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जब कानूनी प्रक्रिया धीमी गति से चलती है तो वादी निराश हो सकते हैं. ये मामला 43 सालों से अधिक समय से (1982 से) लंबित है. हमने अपनी पीड़ा व्यक्त की है जहां राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार कुछ मुकदमे 50 सालों से लंबित हैं.
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में कुछ केस 65 साल पुराने
कुछ सबसे पुराने मामले पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में हैं, जो 65 साल से अधिक पुराने हैं. जब देरी जारी रहेगी, तो वादियों का आत्मविश्वास खत्म हो जाएगा. हमने बताया है कि कैसे कैलिफ़ोर्नियाई बार के एक सदस्य ने इस पर बात की थी और इसके लिए उपचारात्मक उपायों का हवाला दिया था.
कोर्ट ने कहा कि वादियों को मामला टालने की मांग करते समय सतर्क रहना चाहिए और पीठासीन अधिकारियों की अच्छाई को अपनी कमजोरी के रूप में नहीं लेना चाहिए. हमने देश भर के आंकड़ों को नोट किया है और बार तथा बेंच से किस तरह के प्रयासों की जरूरत है.
हमने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को 11 निर्देश जारी किए हैं और बताया है कि पुराने मामलों की निगरानी कैसे की जाए, खासकर उन मामलों की जो 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सेकेट्ररी जनरल से कहा है कि इस फैसले को सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार को भेजे.