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'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर लोकसभा में दिखी ऐसी तस्वीर, कांग्रेस का दावा- BJP के पास नहीं है दो तिहाई बहुमत


नई दिल्ली:

संसद के शीतकालीन सत्र का मंगलवार को 17वां दिन है. आज मोदी सरकार (Modi Government) ने वन नेशन वन इलेक्शन के लिए 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024′ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024′ को निचले सदन में पेश किया. विपक्षी दलों ने इनका पुरजोर विरोध किया. इस बिल पर डिविजन वोटिंग हुई. इस बिल को साधारण बहुमत से पारित किया किया. 269 ​​सांसदों ने इसके पक्ष में वोटिंग की. 198 सांसदों ने इस बिल के विरोध में वोट डाला. लोकसभा में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से वोटिंग हुई. पक्ष और विरोध में हुई वोटिंग के अंतर से विपक्ष की तरफ से ये दावा किया गया कि सरकार के पास विधेयकों को पारित करने के लिए जरूरी समर्थन की कमी है.

कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर ई-वोटिंग सिस्टम के स्क्रीनशॉट के साथ एक पोस्ट किया है. इसमें उन्होंने दावा किया, “129वां संविधान संशोधन बिल पास करने के लिए कुल 461 वोटों में से दो-तिहाई बहुमत यानी 307 वोटों की जरूरत थी. लेकिन, सरकार को सिर्फ 269 वोट मिले. विपक्ष की तरफ से 198 वोट पड़े. इससे समझा जा सकता है कि सरकार लोकसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए दो-तिहाई बहुमत जुटाने में फेल हो गई है.”

हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकसभा में NDA सरकार के पास बड़ी संख्या में बहुमत है. लेकिन, सरकार को 129वां संविधान संशोधन बिल पास कराने के लिए 2/3 बहुमत की जरूरत है. इतना बहुमत सरकार के पास नहीं है. कांग्रेस सांसद ने कहा, “इसलिए मेरी राय में सरकार को इस बिल को लेकर लंबे समय तक कायम नहीं रहना चाहिए.”

सदन में बिल के लिए दो बार हुई वोटिंग
-लोकसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए आज दो बार वोटिंग हुई. पहले स्पीकर ओम बिरला ने बिल पेश करने को लेकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई. इसमें 369 सदस्यों ने वोट डाला. बिल के पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े. इसपर विपक्षी सांसदों ने कड़ी आपत्ति जताई.

-इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने स्पीकर से कहा, “अगर उनको ऑब्जेक्शन है तो पर्ची दे दीजिए.” इस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा, “हमने पहले ही कहा था कि अगर किसी सदस्य को लगे, तो वह पर्ची के जरिए भी अपना वोट संशोधित कर सकता है.”

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-इसके बाद दूसरी बार वोटिंग हुई. इस बार ज्यादा सांसदों ने वोट डाला. बिल के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े. इसके बाद 1:15 बजे कानून मंत्री मेघवाल ने 12वां संविधान संशोधन बिल को दोबारा सदन के पटल पर रखा. विरोध के बाद बिल को JPC के पास भेजने का फैसला लिया गया है.

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वन नेशन वन इलेक्शन पर कुल 32 राजनीतिक दलों ने अपना समर्थन दिया है. इनमें जगन मोहन रेड्डी की YSRCP, के चंद्रशेखर राव की (BRS) और पलानीसामी की AIADMK जैसी पार्टियां शामिल हैं. ये तीनों पार्टियां किसी भी अलायंस (NDA और INDIA) का हिस्सा नहीं हैं. जबकि कांग्रेस-सपा समेत 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया है. 

विपक्षी सांसदों ने क्या कहा?
-वन नेशन वन इलेक्शन बिल पेश होने से पहले कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, “यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है. भारत राज्यों का संघ है. आप विधानसभाओं का कार्यकाल कम नहीं कर सकते. संघवाद का मूलभूत सिद्धांत है कि संविधान में केंद्र और राज्य बराबरी के हकदार हैं. आप राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को संसद के कार्यकाल के अधीन कैसे कर सकते हैं?”

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-कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, “निस्संदेह JPC में सरकार के पास हमारे मुकाबले बड़ी संख्या में लोग हैं. JPC की संरचना के संदर्भ में उनके पास बहुमत भी हो सकता है, लेकिन संवैधानिक संशोधन बिल को पारित करने के लिए आपको 2/3 बहुमत की जरूरत है. ये साफ तौर पर सरकार के पास नहीं है. इसलिए उन्हें इस बिल पर ज्यादा समय तक टिके नहीं रहना चाहिए…”

-वहीं, शिवसेना (उद्धव गुट) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “एक देश, एक चुनाव पावर को सेंट्रलाइज (केंद्रीकृत) करने जैसा है. लोकसभा में संविधान पर दो दिन चर्चा हुई, राज्यसभा में अभी भी चल रही है. ऐसे में संविधान पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण है. चुनाव प्रक्रिया में छेड़छाड़ करके केंद्र सरकार अपनी ताकत और बढ़ाना चाहती है.”

-इस बिल के विरोध में सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन बिल BJP की देश में तानाशाही लाने की कोशिश है.

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-तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है. यह ‘अल्ट्रा वायर्स’ (कानूनी अधिकार से परे) है.” उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया जा सकता. बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभाएं केंद्र और संसद के अधीनस्थ नहीं होती हैं, यह बात समझने की जरूरत है.

-DMK नेता टीआर बालू ने सवाल किया, “जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है, तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी?” बालू ने कहा, “मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस विधेयक को JPC के पास भेजा जाए. विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए.”

-IUML के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, “यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले का प्रयास है.”

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-शिवसेना (UBT) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया. उन्होंने कहा, “यह विधेयक संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है.”

-लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि ये दोनों विधेयक संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर आक्रमण हैं. उनका कहना था कि निर्वाचन आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निर्धारित हैं. अब उसे बेतहाशा ताकत दी जा रही है.

-ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि यह संघवाद के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि संसद को ऐसा कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है, जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. ओवैसी ने दावा किया कि यह क्षेत्रीय दलों को खत्म करने के लिए उठाया गया कदम है.

-मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के नेता अमरा राम ने आरोप लगाया कि यह विधेयक संविधान को तहस-नहस करने के लिए लाया गया है.

-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (SP) की नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के कार्यकाल को एक दूसरे से जोड़ना उचित नहीं है.

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-रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) के एनके प्रेमचंद्रन ने आरोप लगाया कि विधेयक संविधान में निहित संघवाद के मूल ढांचे पर हमला है.

किसने किया समर्थन?
-भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रमुख सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और शिवसेना (शिंदे गुट) ने विधेयक का समर्थन किया.

-केंद्रीय मंत्री और TDP नेता चंद्रशेखर पेम्मासानी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक से चुनावी खर्च कम होगा.

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-शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने विधेयक का समर्थन किया और आरोप लगाया कि कांग्रेस को सुधार शब्द से एलर्जी है. उन्होंने आपातकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस जज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आयोग्य ठहराया था, उसके साथ कैसा व्यवहार हुआ था, पूरा देश जानता है.

-कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से संबंधित प्रस्तावित विधेयक राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं है, बल्कि यह विधेयक पूरी तरह संविधान सम्मत है. उन्होंने विधेयक को JPC के पास भेजने की विपक्ष की मांग पर भी सहमति जताई.

2029 या 2034 में एक साथ चुनाव संभव- कोविंद
पूर्व राष्ट्रपति और वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार करने के लिए बनी कमिटी के चीफ रामनाथ कोविंद ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बारे में कहा- “देश में 2029 या 2034 में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं. जिस दिन हमारी अर्थव्यवस्था 10%-11% तक बढ़ेगी, हमारा देश दुनिया की तीसरी-चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कतार में होगा. भारतीय जनसंख्या के विकास के लिए यह मॉडल सक्षम है. अन्य पहलुओं में भी, इस मॉडल को अपनाना राष्ट्र के लिए सहायक होगा.”

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