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AIIMS और सर गंगाराम जैसे देश के 21 बड़े अस्पतालों में 'सुपरबग', ICMR की रिपोर्ट में खुलासा; जानें ये कितना खतरनाक


नई दिल्ली:

जब किसी की तबीयत खराब होती है तो अस्पताल में इलाज होता है. डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हैं और उन्हें ठीक करने की भरपूर कोशिश करते हैं. हालांकि, इलाज के दौरान कई दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है. इन दवाइयों का इस्तेमाल करने के बाद अच्छे से डिस्पोज करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है. अगर सही से डिस्पोज नहीं किया गया तो इससे मानव शरीर को बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुंचता है. अभी हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में देखा गया है कि देश के 21 बड़े अस्पताल में सुपरबग पाया गया है. इसमें ओपीडी से लेकर वार्ड और आईसीयू तक शामिल हैं. ICMR  की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है.

मरीजों के ओपीडी से लेकर वार्ड और ICU तक में मिला सुबरबग

ICMR  की Antimicrobial Resistance Research & Surveillance Network की सालाना रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के 21 नामचीन हॉस्पिटल में सुपर्बग श्रेणी के जोखिम भरे बैक्टीरिया पाए गए जो OPD वार्ड और ICU तक में मौजूद हैं. ये वो हॉस्पिटल हैं जहां देश कि सबसे ज्यादा आबादी इलाज के लिए पहुंचती है. इसमें दिल्ली एम्स से लेकर चंडीगढ़ PGI और दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल से लेकर चेन्नई का अपोलो अस्पताल शामिल है.

ये डेटा 1 जनवरी 2023 से 31 दिसंबर 2023 के बीच का है. इसमें अस्पताल पहुंचने वाले करीब 1 लाख मरीज के ब्लड, मल मूत्र, पस, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से CSF नमूने  लेकर जांच की गई. जांच में घातक बैक्टीरिया और सुपरबग की पहचान की गई तो करीब 10 तरह के घातक बैक्टीरिया मिले हैं. ये लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुपरबग की श्रेणी में आते हैं.

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किन अस्पतालों में मिले सुपरबग?

आईसीएमआर ने देश में 4 संस्थान को नोडल केंद्र बनाया है. इसमें दिल्ली एम्स, चंडीगढ़ पीजीआई, सीएमसी वैल्लोर और पांडिचेरी स्थित जेआईपीएमईआर शामिल हैं. इन अस्पतालों के साथ साथ दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली एम्स ट्रामा सेंटर और उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित केजीएमयू में मरीजों का नमूना लिया है. इनके अलावा पुणे स्थित एएफएमसी, भोपाल एम्स, जोधपुर एम्स, अपोलो अस्पताल चैन्ने, असम मेडिकल कॉलेज, कोलकाता मेडिकल कॉलेज, कोलकाता स्थित टाटा मेडिकल कॉलेज, इम्फाल स्थित रिम्स, मुंबई का पीडी हिंदुजा अस्पताल, वर्धा स्थित एमजीआईएमएस, मणिपाल स्थित केएमसी और श्रीनगर के एसकेआईएमएस अस्पताल सहित 21 शीर्ष अस्पतालों को शामिल किया है.

रिपोर्ट में बताया कि लखनऊ, दिल्ली और चंडीगढ़ सहित देश के 21 अस्पतालों की ओपीडी, वार्ड और आईसीयू में क्लेबसिएला निमोनिया के बाद एस्चेरिचिया कोलाई सबसे आम रोगजनक पाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2017 में एस्चेरिचिया कोलाई बैक्टीरिया को सुपरबग घोषित किया.

कौन-कौन से रोगजनक मिले?

क्लेबसिएला निमोनिया, एस्चेरिचिया कोलाई के अलावा एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा, स्टैफिलोकोकस ऑरियस, एंटरोकोकस फेकेलिस, एंटरोकॉकस फेसियम, स्टैफाइलोकोकस हेमोलिटिकस, स्टैफिलोकोकस एपिडर्मिडिस और एंटरोबैक्टर क्लोएसी शामिल है.

कहां पर कितना % रोगजनक मिला?

  1. OPD में सबसे अधिक एस्चेरिचिया कोलाई करीब 30.74% मिला

  2. वार्ड में सबसे अधिक एस्चेरिचिया कोलाई करीब 22.75% मिला

  3. ICU में सबसे अधिक एसिनेटोबैक्टर बाउमानी करीब 23.74% मिला

ICMR की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया बताती हैं कि Anti Microbial Resistance तब होता है जब कीटाणु या बैक्टिरिया हैं, वो जो एंटीबायोटिक यूज करते हैं उनका ट्रीट करने के लिए वो रजिस्टेंट हो जाते हैं, उस फेनोमेना को हम Anti Microbial Resistance बोलते हैं.

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एक्सपर्ट्स की मानें तो ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स यूज करने से संक्रमण का खतरा ज्यादा बढ़ रहा है, जिससे Multi Drug Resistance डेवल्प हो रहा और इलाज करना मुश्किल है.

देश में जो ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स हैं, उसका यूज बहुत ज्यादा हैं. कुछ लोग अपने आप से और कही डॉक्टर्स भी रिक्मेंड करते हैं. जब इतनी ज्यादा मात्रा में हम ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स यूज करते हैं तो Multi Drug Resistance डेवल्प होते हैं. इस रजिस्टेंट का इलाज मुश्किल हैं क्योंकि आज की तारीख में हमारे देश में इसके दवाईयों की कमी है. इसके मरीज ज्यादा समय तक बीमार रहते हैं और लंबे समय तक अस्पताल में भी रहते हैं. हमने देखा है कि ऐसे मरीजों में मृत्यु दर भी ज्यादा है. इस संक्रमण के बाद 50-60 प्रतिशत चांस हैं कि मरीज को बचाना मुश्किल हो जाए. हमें इसका उपयोग ठीक से करना चाहिए.

पिछले कुछ वर्षों में देश के अस्पतालों में रोगजनकों के जोखिम भरे मामले सामने आए हैं. कोरोना महामारी के दौरान भी इन मामलों में तेजी आई है जिसके चलते भारत सहित दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर चिंता जताई जा रही है. 19 जनवरी 2022 को लैंसेट में प्रकाशित रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर वैश्विक अनुसंधान रिपोर्ट में बताया कि वर्ष 2019 में 49 लाख लोगों की मौतें दवा प्रतिरोधी संक्रमण से जुड़ी हो सकती हैं और भारत में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु संक्रमण के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में कम से कम 12.7 लाख लोगों की मृत्यु हुई है.

ये सिर्फ 21 अस्पताल का डेटा है लेकिन हकीकत में सकंम्रण का दर बहुत ज्यादा है. ऐसे में जररूत है कि इस महामारी को कंट्रोल करने के लिए सख्त से सख्त कदम उठाए जाएं, जिससे इसके दर में कमी आए.

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