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सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में नोटिस के 24 घंटे में घरों को तोड़ने पर जताई हैरानी, कहा- पुनर्निर्माण की देंगे अनुमति


नई दिल्‍ली :

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को प्रयागराज में कुछ घरों को ध्‍वस्‍त करने के मामले में सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घरों के पुनर्निर्माण की अनुमति देगा, जिन्हें उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ध्वस्त कर दिया था. साथ ही जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने इस बात पर हैरत जताई कि नोटिस देने के 24 घंटे के भीतर घरों को ध्वस्त कर दिया गया, बिना मालिकों को अपील दायर करने का समय दिए. 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ताओं की अपनी लागत पर ध्वस्त संपत्तियों के पुनर्निर्माण की अनुमति देगा, बशर्ते कि वे यह वचन दें कि वे निर्दिष्ट समय के भीतर अपील दायर करेंगे, भूखंड पर किसी भी तरह का दावा नहीं करेंगे और किसी तीसरे पक्ष के हितों का निर्माण नहीं करेंगे. यदि उनकी अपील खारिज हो जाती है, तो याचिकाकर्ताओं को अपने खर्च पर घरों को ध्वस्त करना होगा. 

कार्रवाई को चुनौती देने का मौका नहीं मिला: याचिकाकर्ता 

दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विध्वंस के खिलाफ उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद समेत अन्‍य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने शनिवार देर रात को विध्वंस नोटिस जारी किए और अगले दिन उनके घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे उन्हें कार्रवाई को चुनौती देने का कोई मौका नहीं मिला. साथ ही याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि राज्य ने गलत तरीके से उनकी जमीन को गैंगस्टर और राजनेता अतीक अहमद से जोड़ दिया है, जिनकी 2023 में हत्या कर दी गई थी.  

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सोमवार को सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तोड़फोड़ का बचाव करते हुए कहा कि 8 दिसंबर, 2020 को उन्हें पहला नोटिस दिया गया था, उसके बाद जनवरी 2021 और मार्च 2021 में नोटिस दिए गए इसलिए हम यह नहीं कह सकते हैं कि कोई उचित प्रक्रिया नहीं है. पट्टे की अवधि या फ्रीहोल्ड के आवेदनों की अस्वीकृति से परे बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे हैं. 

अपील दायर करने के लिए पर्याप्‍त समय देना चाहिए: SC

हालांकि, पीठ ने कहा कि राज्य को अपील दायर करने के लिए पर्याप्त समय देकर निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए. साथ ही पीठ ने कहा कि राज्य को बहुत निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए, राज्य को संरचनाओं को ध्वस्त करने से पहले अपील दायर करने के लिए उन्हें उचित समय देना चाहिए. 6 मार्च को नोटिस दिया गया, 7 मार्च को विध्वंस किया गया, जिस तरह से नोटिस के 24 घंटे के भीतर यह किया गया, उससे न्यायालय की अंतरात्मा को झटका लगा है. 

साथ ही पीट ने कहा कि नोटिस संलग्न करके दिए गए थे, जो कानून द्वारा अनुमोदित विधि नहीं है. केवल अंतिम नोटिस कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त विधि, पंजीकृत डाक के माध्यम से दिया गया था. इसलिए हम केवल इन तथ्यों के प्रकाश में आदेश पारित करने जा रहे हैं, जिस तरह से पूरी प्रक्रिया का संचालन किया गया है. क्योंकि न्यायालय ऐसी प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं कर सकता. यदि हम एक मामले में बर्दाश्त करते हैं तो यह जारी रहेगा. 

अब एक अप्रैल को होगी मामले की सुनवाई

साथ ही अदालत ने कहा कि हम आदेश पारित करेंगे कि वे अपने खर्च पर पुनर्निर्माण कर सकते हैं और यदि अपील विफल हो जाती है तो उन्हें अपने खर्च पर ही ध्वस्त करना होगा. राज्य को इस मामले में जो किया गया है, उसका समर्थन नहीं करना चाहिए. 

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सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर न्याय पर हाल के फैसले का उल्लेख भी किया था, जिसमें डेमोलिशन से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया स्पष्ट की गई है. इस मामले में अब अगली सुनवाई 1 अप्रैल को होगी. 


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