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जेल रिफार्म्स पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कैदी सुधार और कानूनी सहायता समेत दिए गए ये बड़े निर्देश

जेल रिफॉर्म पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है. जिसमें कैदी सुधार और कानूनी सहायता समेत दिए गए बड़े निर्देश दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैदी सुधार और कानूनी सहायता की पहुंच पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही केवल आरोपी ही नहीं, पीड़ितों के लिए भी दिशा निर्देश जारी किए. सुप्रीम कोर्ट ने सुहास चकमा बनाम भारत संघ मामले में अपना फैसला सुनाया. ये फैसला जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस के. वी. विश्वनाथन, और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने जेल रिफॉर्म पर दिए ये निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सुधार गृहों, जेलों और जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा पर गंभीर चिंताएं जताई. सुप्रीम कोर्ट ने बेहतर कानूनी सेवाओं की आवश्यकता पर जोर दिया. न केवल आरोपियों के लिए बल्कि उन पीड़ितों के लिए भी जिनके नागरिक और आपराधिक अधिकारों का हनन हुआ है. कोर्ट ने कानूनी सहायता की उपलब्धता के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करने के महत्व को रेखांकित किया और निर्देश दिया कि कानूनी सहायता की जानकारी, जिसमें हेल्पलाइन नंबर शामिल हों, बस स्टेशनों, पुलिस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों और यहां तक कि उच्च न्यायालय के मामले के दस्तावेजों के कवर पर भी प्रमुखता से प्रदर्शित की जानी चाहिए.

कैदियों की स्थिति में सुधार की जरूरत

अपने फैसले में, कोर्ट ने जेलों और सुधार गृहों का नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए कई सिफारिशें कीं, ताकि कैदियों की स्थिति में सुधार हो सके और उन्हें समाज में पुनः एकीकृत किया जा सके. ये उपाय कैदियों को सुधारात्मक रास्ते पर लाने के उद्देश्य से हैं. देश में सबसे अधिक खुली जेलों वाले राज्य राजस्थान का इस मामले में विशेष रूप से उल्लेख किया गया. ⁠पीठ ने राज्य के सुधारात्मक प्रयासों की सराहना की ⁠और सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान की खुली जेल प्रणाली का कई बार दौरा किया है.

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न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

राजस्थान सरकार की ओर से AAG  शिव मंगल शर्मा ने प्रतिनिधित्व किया, जबकि इस मामले में एमिकस क्यूरी और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के वकील भी शामिल थे. विजय हंसरिया, वरिष्ठ अधिवक्ता (एमिकस) और  नंदिनी राय, वकील ने नालसा की ओर से पेश हुए. शिव मंगल शर्मा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक प्रगतिशील कदम है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि विचाराधीन कैदियों और अन्याय के शिकार पीड़ितों को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व मिले, जिससे भारत में न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सके.



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