"चार जात – 400 सीट की बात" : The Hindkeshariके एडिटर-इन-चीफ़ संजय पुगलिया से समझें बजट का निचोड़
अंतरिम बजट 2024 की स्पीच से ज़ाहिर है कि नरेंद्र मोदी सरकार बजट और अर्थव्यवस्था की समूची चर्चा को नई जुबान दे रही है, और देश को चार जातियों के लिहाज़ से देखती है – गरीब, महिला, युवा और अन्नदाता, यानी किसान. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की बजट स्पीच का विश्लेषण करते हुए The Hindkeshariके एडिटर-इन-चीफ़ संजय पुगलिया का कहना था कि यह सरकार चार जातियों की बात करते-करते 400 सीट (लोकसभा चुनाव 2024) साधने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
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The Hindkeshariके एडिटर-इन-चीफ़ का कहना था कि जनकल्याण के लिए इस सरकार ने जिस तरह डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को इस्तेमाल कर पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष तरीके से अलग-अलग वर्गों को लाभ पहुंचाया, वैसी व्यवस्था दुनियाभर में कहीं नहीं है. सभी बड़ी जनकल्याणकारी योजनाओं से जनता को सीधे मिल रहा लाभ इतना बड़ा है कि इनकम टैक्स में राहत नहीं देना कतई नहीं अखरता.
रोज़गार सृजन के मुद्दे पर सोलर योजना का ज़िक्र करते हुए कहा गया कि घरों की छत पर सोलर पैनल लगाने से भी नौकरियां पैदा होंगी, और कुछ बिजली भी मुफ़्त मिलने लगेगी. सो, इस एकलौते कदम से ही बॉटम ऑफ़ पिरामिड पर जॉब क्रिएशन होगा, जो अंततोगत्वा देश की विकास दर को 7 फ़ीसदी से ऊपर ले जाने में काफ़ी मददगार होगा. इसी में मदद करेगा बुनियादी ढांचा विकास को दिया जाने वाला पुश, जिस पर 11,11,111 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई है. इससे भी बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा होंगे, और इसके बाद पहले से कहीं अधिक तेज़ गति से होंगे.
संजय पुगलिया के मुताबिक, देश के ग्रोथ की ज़रूरतों को बढ़ावा देने के लिए जिन फ़ण्डामेंटलों को मज़बूत किया जाना चाहिए, उन्हीं पर सरकार का फोकस है. इसी का परिणाम है कि सभी फ़ण्डामेंटल एक साथ मज़बूत होते दिखते हैं, जिनकी बदौलत अब ग्रोथ इंजन का प्रोपेल हो पाना, यानी गति पकड़ना कतई स्पष्ट दिखाई दे रहा है. बजट स्पीच में भारत की इकोनॉमी का मूलमंत्र ‘रीफ़ॉर्म, परफ़ॉर्म और ट्रांसफ़ॉर्म’ का बताया गया है, और भारत की अर्थव्यवस्था अब ट्रांसफ़ॉर्मेशन के स्टेज पर बड़े टेकऑफ़ के लिए पूरी तरह तैयार है, जिसे यह बजट पूरा करने का वादा करता नज़र आता है.
The Hindkeshariके एडिटर-इन-चीफ़ के मुताबिक, वित्तीय घाटे को FY25 में 5.1 फ़ीसदी और FY26 में 4.6 फ़ीसदी रखने का लक्ष्य तय किया गया है, और यह आदर्श हालात से कुछ ज़्यादा ज़रूर है, लेकिन ज़्यादा खतरे की बात इसमें नज़र नहीं आती, क्योंकि प्रधानमंत्री वित्तीय अनुशासन में ढील नहीं देने के लिए मशहूर हैं, और आइंदा भी इसमें बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है.