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देश का सबसे लंबा वाटर टनल, पहाड़ के नीचे से दो जिलों को जोड़ेगा; चौड़ाई इतनी कि दो ट्रक एक साथ गुजर जाए

झालावाड़ का अकावद बांध अद्भुत वैज्ञानिक परिकल्पनाओं की मिसाल है. इसका निर्माण झालावाड़ जिले के खानपुर क्षेत्र के सोजपुर गांव के निकट से गुजरने वाली परवन नदी पर हो रहा है. इसका काम पूरा होने के बाद इसके पानी से राजस्थान के तीन जिले झालावाड़, कोटा और बारां लाभान्वित होंगे. इन तीनों जिलों को सिंचाई, पेयजल और विद्युत उत्पादन के लिए पानी दिया जाएगा. इस सुरंग का 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है. उम्मीद जताई जा रही है कि नए साल में इसे चालू कर दिया जाएगा. 

1982 से निर्माण के शुरू हुए प्रयास

हालांकि इस बांध को बनाए जाने के प्रयास काफी पहले साल 1982 में शुरू हुए थे. तब इसका पहली बार सर्वे करवाया गया था. लेकिन बाद में यह ठंडे बस्ते में चली गई. साल 2013 में एक बार फिर से इस बांध का जिक्र शुरू हुआ और इसी साल इसकी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाई गई. प्रोजेक्ट रिपोर्ट के माध्यम से इस परियोजना से दो नहरें निकालनी थी, जिसमें से राइट मैन कैनाल बारां जिले के लिए, जबकि लेफ्ट मैन कैनाल झालावाड़ और कोटा जिले के लिए बननी थी. 

लेफ्ट मैन कैनल को बनाने में तो कोई बाधा नहीं थी किंतु राइट मैन कैनल जिस इलाके से होकर निकालनी थी, वहां विशालतम पहाड़ और वन क्षेत्र फैला हुआ था. ऐसे में कैनाल बनाने की कोशिशे नाकाम साबित होने लगी. लेकिन बाद में पहाड़ के नीचे से सुरंग बनाने का प्रस्ताव बना और 2017 में बांध की नींव रखी गई.

नई बनी सबसे बड़ी वाटर टनल की रूपरेखा

बांध से निकलने वाली राइट मैन कैनाल को बनाना बड़ी चुनौती का काम था. यदि पहाड़ को काटकर कैनाल बनाई जाती तो उसकी चौड़ाई सैकड़ों फिट में रखनी पड़ती क्योंकि कैनाल की गहराई पानी के स्तर तक ले जाने में उन्हें काफी गहरी खुदाई करनी थी. जिस पर लागत भी बहुत ज्यादा आने वाली थी और वन विभाग की स्वीकृति भी एक काफी टेढ़ा काम थी. साथ ही कैनाल बनाए जाने से वन क्षेत्र का संतुलन भी गड़बड़ाने की संभावना रिपोर्ट में व्यक्त की गई थी.

झालावाड़ में वाटर टनल के बाहर खड़े निर्माण कार्य में लगे मजदूर.

इन सभी विकेट हालातों को देखते हुए परियोजना पर काम कर रही इंजीनियरों की टीम ने फैसला किया कि वन क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्र से एक भूमिगत सुरंग का निर्माण किया जाए, जिसके माध्यम से झालावाड़ जिले से बारां तक जल का परिवहन हो सके. वर्ष 2018 में इस सुरंग का निर्माण एक बड़ी कंपनी द्वारा शुरू किया गया. जिसने विदेशी मशीनों और तकनीक का सहारा लेकर पहाड़ में भूमिगत सुरंग बनाना शुरू किया, इस सुरंग की कुल लंबाई 8.7 किलोमीटर है. यह झालावाड़ की परवन नदी के किनारे से शुरू होकर बारां के गुंदलाई गांव में खुलेगी. 

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सुरंग को अंग्रेजी के अक्षर डी के आकार में बनाया जा रहा है. जिसकी चौड़ाई और ऊंचाई आठ-आठ मीटर रखी गई है. इस चौड़ाई से दो ट्रक एक साथ गुजर सकते हैं.

जल्द निर्माण के लिए खोदा गया कुआं

इंजीनियरों और कंपनी के लिए 8.7 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का निर्माण करना किसी बड़ी चुनौती से काम नहीं था. साथ ही इसमें समय भी बहुत लगने वाला था. ऐसे में समय काम करने के लिए इंजीनियरों ने एक और शानदार फैसला किया तथा सुरंग की लंबाई के मध्य में ढाई सौ फीट गहरा एक चोड़ा कुआं बनाया गया तथा सुरंग के दोनों किनारों से सुरंग की खुदाई शुरू की गई. कुआं बनाए जाने के कारण अब सुरंग में प्रवेश करने और बाहर निकालने के कुल चार रास्ते हो गए थे. ऐसे में इन चारों रास्तों से मशीनों और मजदूरों को नीचे उतर जाता तथा सुरंग का निर्माण तेजी से किया जाने लगा.

24 घंटे में 12 मीटर निर्माण-

सुरंग खोदने के लिए चीन और अमेरिका से ड्रिल मशीनें मंगवाई गई. पहले तीन-तीन मीटर गहराई में ब्लास्टिंग की जाती उसके बाद मशीनों की सहायता से ड्रिल करके पत्थर को बाहर निकाला जाता है. फिर ट्रकों में लाद कर सुरंग से बाहर पहुंचाया जाता. मशीन 12 मीटर की पटरी पर चलती थी जो 24 घंटे में 12 मीटर तक खुदाई करती थी. उसके बाद मशीन द्वारा खोदी गई सुरंग की दोनों साइड की दीवारों को सीमेंट किया जाता, इन दीवारों पर लगभग चार इंच मोटी सीमेंट की परत चढ़ाई गई है. 

मार्च 2024 तक पूरा हो जाएगा काम

सुरक्षा की दृष्टि से सुरंग की छत पर हाई प्रेशर कंक्रीट स्प्रेयर मशीनों के माध्यम से कंक्रीट का स्प्रे किया गया है और छत में सुरक्षा की दृष्टि से धातु की छड़े भी लगाई गई है. संपूर्ण 8.7 किलोमीटर की सुरंग का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण होने को है इसका फर्श भी कंक्रीट का बनाया जा रहा है जिसका भी 5 किलोमीटर का कार्य पूरा हो चुका है. इंजीनियरों ने बताया कि अब महज 10% कार्य ही बाकी रह गया है जो मार्च के महीने तक पूरा हो जाएगा. सुरंग के दोनों किनारो पर जल प्रवाह नियंत्रित करने के लिए गेट भी लगाए जा रहे हैं. इस सुरंग में 4 मीटर तक कंक्रीट की दीवार बनाई गई है क्योंकि इसमें 4 मीटर की ऊंचाई तक ही जल प्रवाह होगा.

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रिमोट ऑपरेटेड सिंचाई तंत्र स्काडा का उपयोग

इस परियोजना में राइट मैन कैनाल की लंबाई 90 किलोमीटर और लेफ्ट मैन कैनाल की लंबाई 52 किलोमीटर है. इस दोनों में कैनाल से पाइपलाइन बिछाई जाएगी जो सिंचित क्षेत्र में पानी को ले जाने का काम करेगी. सिंचित क्षेत्र में प्रत्येक 25 बीघा भूमि के बीच एक वाटर प्वाइंट होगा, जहां से किसान अपने खेत का पानी पाइपलाइन के माध्यम से ले पाएंगे. विशेष बात यह है कि इस परियोजना से सिंचाई का कार्य अत्याधुनिक सिस्टम स्काडा सिस्टम के माध्यम से किया जाएगा, जो पूरी तरह से ऑटोमेटिक और मोबाइल ऑपरेटेड रहेगा.

अंदर से कुछ ऐसा दिखता है झालावाड़ में बन रहा देश का सबसे लंबा वाटर टनल.

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पूरी सिंचाई प्रणाली की निगरानी मोबाइल एवं अन्य ऑनलाइन माध्यमों से की जा सकेगी, साथ ही उसको कंट्रोल भी किया जा सकेगा. प्रत्येक इलाके में सिंचाई का पानी दिए जाने का समय अलग-अलग निर्धारित किया जाएगा, निर्धारित समय पर उच्च प्रेशर के साथ पाइप लाइनों में पानी छोड़ा जाएगा, ताकि किसानों को समय पर पूर्ण पानी मिल सके एवं उनके समय की भी बचत हो तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. बांध के सिंचाई क्षेत्र में 9000 किलोमीटर पाइप लाइनों का जाल बिछाया जा रहा है जिनके माध्यम से किसानों को पानी पहुंचाया जाएगा.

परवन नदी पर बनने वाली इस अकावद बांध परियोजना की कुल लागत 7533 करोड रुपए निर्धारित की गई है. जिसमें से 672 करोड रुपए बांध एवं वाटर टनल पर खर्च किए जा रहे हैं शेष राशि सिंचाई तंत्र को विकसित करने एवं मुआवजे पर खर्च की गई है.

बांध का आकार और क्षमता

बांध की कुल लंबाई 378 मीटर तथा ऊंचाई 38 मी निर्धारित की गई है जिसमें 16 मीटर ऊंचाई वाले 15 गेट लगेंगे. इस बांध की कुल भराव क्षमता 490 मिलियन क्यूबिक मीटर रहेगी जिसमें से 462 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी लाइव स्टोरेज काम में लेने योग्य होगा तथा शेष 28 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बांध के डेड स्टॉक में रहेगा. यानी यह पानी सिर्फ बाद में भर रहेगा किसी काम में नहीं लिया जा सकेगा.

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कैसे होगा लाइव स्टॉक का बंटवारा

बाद में कुल 462 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी लाइव स्टॉक में रहेगा जिसमें से 317 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी सिंचाई के लिए काम में लेने हेतु सप्लाई किया जाएगा. जिसमें झालावाड़, कोटा और बारां जिलों के 673 गांवों की दो लाख  एक हज़ार हेक्टेयर जमीन सिंचित हो पाएगी. 50 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी 1821 गांव में पेयजल की सप्लाई के लिए दिया जाएगा. 16 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी शेरगढ़ सेंचुरी के लिए आरक्षित रहेगा शेष 79 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड एवं छबड़ा के मोतीपुरा स्थित पावर प्लांट के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा.

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