देश

"कानून के अनुसार लिया गया निर्णय" : अनुच्छेद 370 को लेकर फैसले की आलोचना पर बोले चीफ जस्टिस

नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बरकरार रखे जाने के सर्वसम्मत निर्णय की कुछ हलकों में हो रही आलोचनाओं पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश किसी भी मामले में निर्णय संविधान एवं कानून के अनुसार करते हैं.

यह भी पढ़ें

प्रधान न्यायाधीश ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि न्यायाधीश अपने निर्णय के माध्यम से अपनी बात कहते हैं, जो फैसले के बाद सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है और एक स्वतंत्र समाज में लोग हमेशा इसके बारे में अपनी राय बना सकते हैं.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘जहां तक ​​हमारा सवाल है तो हम संविधान और कानून के मुताबिक फैसला करते हैं. मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए आलोचना का जवाब देना या अपने फैसले का बचाव करना उचित होगा. हमने इस संबंध में जो बात कही है, वह हस्ताक्षरित फैसले में परिलक्षित होती है.”

अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर एक पूर्व न्यायाधीश समेत कुछ न्यायविदों द्वारा हाल में की गई आलोचनाओं को लेकर पूछे गये एक सवाल पर उन्होंने यह प्रतिक्रिया दी. उच्चतम न्यायालय ने 11 दिसंबर को पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के 2019 के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था.

न्यायालय ने 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का आदेश देते हुए कहा था कि उसका राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.

यह भी पढ़ें :-  संसद का बजट सत्र आज से, 6 बड़े विधेयक होंगे पेश; मुद्दों को लेकर विपक्ष की आक्रामक तैयारी

अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था- प्रधान न्यायाधीश

ये मानते हुए कि 1947 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए भारतीय संविधान में शामिल किया गया अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि भारत के राष्ट्रपति को तत्कालीन राज्य की संविधान सभा की गैर मौजूदगी में इस उपाय को रद्द करने का अधिकार था, जिसका कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था.

चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘किसी मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश अपने निर्णय के माध्यम से अपनी बात रखते हैं. एक बार निर्णय सुनाए जाने के बाद वो निर्णय देश की सार्वजनिक संपत्ति बन जाता है. जब तक कोई फैसला नहीं सुनाया जाता तब तक प्रक्रिया उन न्यायाधीशों तक ही सीमित रहती है जो उस मामले के फैसले में शामिल होते हैं. एक बार जब हम किसी निर्णय पर पहुंच जाते हैं और फैसला सुना दिया जाता है तो यह सार्वजनिक संपत्ति है. यह राष्ट्र की संपत्ति है. हम एक स्वतंत्र समाज हैं.”

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास एक संविधान है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है. इसलिए लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के हकदार हैं.”

शीर्ष अदालत ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर से अलग कर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के केंद्र के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखा था.

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button