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ब्रिटेन की गलियों में हैवानियत का मुद्दा भारत में भी गरमाया, आखिर पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग्स हैं क्या?


नई दिल्‍ली:

फिर वही ज़ख्म हरे हो गए! ब्रिटेन में “ग्रूमिंग गैंग्स” का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है. वही दरिंदे जिन्होंने न जाने कितनी मासूम कलियों को खिलने से पहले ही मसल दिया था, फिर चर्चा में हैं. एलन मस्‍क (Elon Musk), जेके राउलिंग (JK Rowling), ब्रिटेन के कई नेता, सब इस मुद्दे पर आग उगल रहे हैं. ब्रिटेन में पाकिस्तानी ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ को बीजेपी भी मुद्दा बना रही है. बीजेपी के आईटी विभाग के हेड अमित मालवीय ने ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ की चर्चा के बीच लव जिहाद की याद दिलाई. वहीं, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी यूके पीएम कीर स्टार्मर के बयान निशाना साधा है. लेकिन क्या इससे कुछ बदलेगा? या फिर हर बार की तरह, कुछ दिन का हल्ला-गुल्ला होगा और फिर सब कुछ दबा दिया जाएगा, भुला दिया जाएगा? 

ग्रूमिंग गैंग्स पर भारत में भी बहस.. 

अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पोस्‍ट में कहा, ‘ब्रिटेन में छिड़ी बहस उचित है. लव जिहाद की समस्‍या को अब तक सिरे से नकारने वाले अंध धार्मिक वामपंथी अभिजात्‍य वर्ग ब्रिटेन में पाकिस्‍तानी ग्रूमिंग गैंग्‍स की कड़वी सच्‍चाई को स्‍वीकार करने लगे हैं.’ उनका इशारा शायद परोक्ष रूप से शिवसेना की राज्‍यसभा सदस्‍य प्रियंका चतुर्वेदी की ओर से ग्रूमिंग गैंग्‍स का लिंक पाकिस्‍तानी से जोड़े जाने पर यह तंज कसा. उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि ये ‘एशियाई’ नहीं, बल्कि ‘पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग’ हैं. उन्होंने लिखा, ‘मेरे बाद दोहराइए, ये एशियाई ग्रूमिंग गैंग नहीं बल्कि पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग हैं.’ इस पर एलन मस्क ने जवाब दिया ‘सच’. प्रियंका चतुर्वेदी ने अपनी पोस्ट में कहा, ‘एक दुष्ट राष्ट्र के लिए एशियाई लोगों को क्यों दोषी ठहराया जाना चाहिए?’

ग्रूमिंग गैंग्स: भेड़ियों का झुंड…

ये “ग्रूमिंग गैंग्स” थे क्या? ये थे ज़्यादातर पाकिस्तानी मूल के वो भेड़िये जो झुंड बनाकर निकलते थे, और 11 से 16 साल की बच्चियों को अपना शिकार बनाते थे. ये बच्चियां अक्सर गरीब घरों से होती थीं, थोड़ी भोली, थोड़ी नासमझ. ये भेड़िये पहले दोस्ती का जाल बिछाते, मीठी-मीठी बातों से, तोहफों से उन्हें बहलाते. फिर धीरे-धीरे उन्हें शराब और नशे की लत लगाते, और जब बच्चियां पूरी तरह इनके चंगुल में फंस जातीं, तब शुरू होता था हैवानियत का वो नंगा नाच जिसे सुनकर तुम्हारी रूह कांप उठेगी. ये दरिंदे इन बच्चियों को झुंड बनाकर नोचते थे. ये खेल सालों से ब्रिटेन में चल रहा है.

ग्रूमिंग गैंग्स के घिनौने खेल की शिकार लड़कियों की दास्‍तां…

  • ग्रूमिंग गैंग्स द्वारा शोषण का एक वाकया ऑक्सफोर्ड का है. मोहम्मद करार नाम का एक हैवान, जिसने एक बच्ची के साथ जो किया, उसे सुनकर आपके अंदर का इंसान चीख उठेगा. इस दरिंदे ने उस बच्ची को पहले गैंगरेप के लिए तैयार किया. कैसे? एक पंप का इस्तेमाल करके. फिर पांच-छह मर्दों ने मिलकर उस बच्ची का बलात्कार किया. उस मासूम के मुंह में एक लाल रंग की गेंद ठूंस दी गई थी, ताकि उसकी चीखें किसी को सुनाई न दें. ज़रा सोचो, कितनी हैवानियत, कितनी दरिंदगी भरी थी इन लोगों में. ऑक्सफोर्ड की ये घटना तो बस एक झलक थी, एक बानगी थी उस हैवानियत की जो इन “ग्रूमिंग गैंग्स” ने मचा रखी थी. ऐसी हज़ारों बच्चियां थीं जो इन भेड़ियों का शिकार बनीं. 
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  • ब्रैडफोर्ड की ‘एना’ महज़ 14 साल की थी. कितनी बार पुलिस के चक्कर काटे, मदद की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी. और फिर एक दिन उसकी शादी उसी दरिंदे से करवा दी गई जो उसका रेप करता था! और ये शादी करवाने में उसकी अपनी सरकारी अफ़सर (सोशल वर्कर) शामिल थी. मतलब, हिफाज़त करने वाले ही भक्षक बन बैठे थे. 
  • टेलफ़ोर्ड की लूसी लोव, बेचारी 16 साल की बच्ची. उसे, उसकी माँ और बहन, तीनों को उसके ही एक रेपिस्ट ने ज़िंदा जलाकर मार डाला. लूसी ने 14 साल की उम्र में उस हैवान के बच्चे को जन्म दिया था. और लूसी की मौत का डर दिखाकर दूसरी बच्चियों को धमकाया जाता था, “ज़ुबान खोली तो तेरे घर में पेट्रोल बम फेंक देंगे.” 

स्कूल के बाहर बच्चियों को अपना शिकार बनाते हैं ग्रूमिंग गैंग्स 

रॉदरहैम शहर तो इन भेड़ियों का गढ़ बन चुका था. वहाँ तो हद ही हो गई थी. एक पुलिसवाले ने एक मजबूर बाप से कहा कि अगर ये बात फैल गई कि पाकिस्तानी मर्द बच्चियों का रेप कर रहे हैं, तो शहर में दंगे भड़क जाएंगे. एक बाप अपनी बेटी को खोजता हुआ पुलिस के पास पहुँचा, तो उसे जवाब मिला, “अरे, आजकल तो बूढ़े एशियाई बॉयफ्रेंड का फैशन चल रहा है.” अब सोचिए क्या मज़ाक बना रखा था इन लोगों ने? ऐसा नहीं था कि ये सब सिर्फ़ रॉदरहैम या टेलफ़ोर्ड में ही हो रहा था. ये ज़हर तो पूरे ब्रिटेन में फैल चुका था. मैनचेस्टर में तो पुलिसवालों को साफ़-साफ़ हिदायत थी कि एशियाई मर्दों को छोड़कर बाकी सब पर ध्यान दो. मतलब, सरकार को बच्चियों की सुरक्षा से ज़्यादा अपनी छवि की चिंता थी. 2010 में वेस्ट मिडलैंड्स पुलिस की एक रिपोर्ट आई, जिसमें साफ़ लिखा था कि ये ग्रूमिंग गैंग्स स्कूल के बाहर बच्चियों को अपना शिकार बनाते हैं. मगर उस रिपोर्ट को दबा दिया गया. पांच साल बाद, जब RTI के ज़रिए वो रिपोर्ट बाहर आई, तो सबके होश उड़ गए. 
 

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सरकार को सिर्फ अपनी छवि की फिक्र! 

सरकार ने तो ग्रूमिंग गैंग्स पर अपनी रिसर्च रिपोर्ट तक जारी नहीं की. और जब मजबूरी में जारी करनी पड़ी, तो उसमें इतनी लीपापोती की गई थी, जैसे वो जानबूझकर ये छिपाना चाहते थे कि इन सबमें नस्ल का कोई लेना-देना नहीं है. जब मीडिया ने इस मुद्दे को उठाना चाहा, तो उनकी ज़ुबान पर भी ताला लगा दिया गया. 2004 में, चैनल 4 ने ब्रैडफोर्ड में चल रहे इस घिनौने खेल पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई, मगर पुलिस ने उसे रुकवा दिया. क्यों? क्योंकि उन्हें डर था कि इससे “नस्लीय तनाव” बढ़ जाएगा. यानी बच्चियों की चीखें भले अनसुनी रह जाएं, पर “नस्लीय तनाव” नहीं होना चाहिए. रॉशडेल में 15 साल की विक्टोरिया अगोग्लिया, एक बेसहारा बच्ची, जिसकी एक 50 साल के मोहम्मद याकूब नाम के वहशी ने हेरोइन का इंजेक्शन लगाकर हत्या कर दी थी. मरने से पहले, उस बच्ची ने पुलिस को बताया था कि उसके साथ यौन शोषण हो रहा है, उसका बलात्कार किया जा रहा है. मगर किसी ने उसकी नहीं सुनी. पूरे रॉशडेल में 12 साल तक की बच्चियों का गैंगरेप होता रहा. 2012 में, जब कुछ दरिंदों को सज़ा हुई, तो पुलिस और सरकारी वकील ने माफ़ी मांगी, कहा कि उनसे गलती हो गई. मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. एक सांसद ने कहा था कि अफ़सरों को डर था कि कहीं उन्हें नस्लवादी न कह दिया जाए, इसलिए उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं. और आज भी, कई दरिंदे आज़ाद घूम रहे हैं. 

लुट रही लड़कियों की इज्‍जत… कहां है पुलिस-प्रशासन?

अब ज़रा इन आंकड़ों पर गौर करिए, जो इस दरिंदगी की भयावहता को चीख-चीखकर बयान करते हैं. अकेले रॉदरहैम में, 1997 से 2013 के बीच, कम से कम 1,400 बच्चियों का यौन शोषण हुआ. 1,400! ये तो सिर्फ वो मामले हैं जो सामने आए, न जाने कितनी बच्चियां तो चुपचाप ये ज़ुल्म सहती रहीं. टेलफ़ोर्ड में भी, एक जांच में सामने आया कि 1989 से 2011 के बीच कम से कम 1,000 बच्चियां इन भेड़ियों का शिकार बनीं. पूरे ब्रिटेन में ये आंकड़ा हज़ारों में है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब ये सब हो रहा था, तो पुलिस, प्रशासन, ये सब कहाँ थे? सो रहे थे? नहीं, ये सब जानते थे, मगर इन्होंने जानबूझकर आंखें मूंद रखी थीं. टेलफ़ोर्ड में तो पुलिस वाले कुछ इलाकों में घुसने से भी डरते थे, क्योंकि वहां ज़्यादातर पाकिस्तानी लोग रहते थे. बाद में एक जांच में पता चला कि पुलिस शहर के कुछ हिस्सों को “नो-गो एरिया” मानती थी. कई लोगों ने इल्ज़ाम लगाया कि पुलिस रिश्वत लेती थी और पाकिस्तानी लोगों का पक्ष लेती थी. पुलिस को डर था कि कहीं कोई उन्हें “नस्लवादी” न कह दे. इसलिए उन्होंने बच्चियों की सुरक्षा को दांव पर लगाकर अपनी कुर्सी बचाना ज़्यादा ज़रूरी समझा. 

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ये कैसा इंसाफ? 

अब बात करते हैं उन दरिंदों की, जिन्हें सज़ा मिली. रॉदरहैम कांड में, “ऑपरेशन स्टोववुड” के तहत, पिछले साल यानी 2024 में, सात लोगों को सज़ा सुनाई गई. इनके नाम हैं: मोहम्मद अमर (42 साल), मोहम्मद सियाब (44 साल), यासिर अजैबी (39 साल), मोहम्मद ज़मीर सादिक (49 साल), आबिद सादिक (43 साल), ताहिर यासीन (38 साल), और रामिन बारी (37 साल). लेकिन ये सज़ा बहुत देर से मिली, और बहुत कम लोगों को मिली. ये घटनाएँ 2000 के दशक की हैं, और सज़ा मिली है 2024 में! क्या ये इंसाफ है? या महज़ एक दिखावा? और अब, इतने सालों बाद, ये मुद्दा फिर गरमा गया है. एलन मस्‍क ने सीधे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पर निशाना साधा है, जो 2008 से 2013 तक सीपीएस यानी Crown Prosecution Service के मुखिया थे.वही CPS जिसपर इन मामलों में कार्रवाई न करने का इल्ज़ाम है. एलन मस्‍क ने तो टॉमी रॉबिन्‍सन (Tommy Robinson) को रिहा करने की भी मांग कर डाली, वही पत्रकार जिसने इन “ग्रूमिंग गैंग्स” की सच्चाई दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी और आज जेल में है. जेके राउलिंग ने भी इस मामले पर अपनी भड़ास निकाली है और पुलिस की मिलीभगत पर सवाल उठाए हैं. 


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