सजा-ए-काला पानी, चोल वंश जितनी पुरानी, जाने पोर्ट ब्लेयर के नाम की पूरी कहानी
काला पानी की सजा वाली सेल्युलर जेल
1906 में यहां ‘V’ के आकार की सेल्युलर जेल बनाई गई, जो आज देश के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है. बर्मा से लाई गई लाल ईंटों से बनी यह तीन मंजिला जेल स्वतंत्रता सेनानियों पर अमानवीय अत्याचारों की गवाह बनी. इस जेल की दीवारों में वे किस्से जज्ब हैं. इतिहास की किताबों में ‘काला पानी’ की सजा के बारे में आपने जरूर सुना होगा. काला पानी की सजा वाली जेल यही सेल्युलर जेल है. वीर दमोदर सावरकर समेत की वीर सेनानी इस जेल में रहे. सावरकर की किताब द स्टोरी ऑफ माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ में इस जेल का जिक्र है.
अंडमान-निकोबार के इतिहास का एक पन्ना 11वीं शताब्दी के चोल राजाओं पर भी खुलता है. इतिहासकारों की मानें तो चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने अंडमान निकोबार में अपना नौसेना का बड़ा अड्डा बनाया था. श्रीविजय जो कि आज इंडोनेशिया के नाम से जाना जाता है, पर राजेंद्र प्रथम की नजर थी. उन्होंने श्रीविजय पर कई नौसैनिक हमले किए. यह वह दौर भी था जब बंदरगाह के जरिए चीन धीरे-धीरे फल-फूल रहा था.
श्रीविजय राजवंश
- आज का इंडोनेशिया तब श्रीविजय कहलाता था.
- इंडोनेशिया का एक प्राचीन राजवंश थी श्रीविजय.
- राजवंश की स्थापाना चौथी शताब्दी के करीब हुई.
- चीनी यात्री इत्सिंग के मुताबिक यहां बौद्ध प्रभाव था.
- चोल राजा राजेंद्र (1012-44) ने हिंद महासागर कई नौसैनिक हमले किए