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सागवान की लकड़ी, साढ़े चार फीट लंबाई, ऐसे 15 संदूकों में रखा जाएगा रत्‍न भंडार का कीमती सामान


नई दिल्‍ली:

ओडिशा के पुरी में स्थित 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर का ‘रत्न भंडार’ 46 साल बाद खोला गया है, जहां मरम्‍मत का काम किया जाना है. इस रत्‍न भंडार में आभूषण, मूल्‍यवान वस्‍तुएं के साथ-साथ काफी बेशकीमती सामान रखा है. अब इन्‍हें एक अस्‍थायी स्‍ट्रॉन्‍ग रूम में ट्रांसफर किया जाएगा. पहले आभूषणों और मूल्‍यवान वस्‍तुओं को बड़े-बड़े लकड़ी के संदूकों में रखा जाएगा, जिन्‍हें खासतौर पर ऑर्डर देकर बनवाया गया है. इन संदूकों को सागवान की लकड़ी से बनवाया गया है, साथ ही इसमें पीतल का भी काम कराया गया है. ऐसा बताया जा रहा है कि सागवान की लकड़ी का इस्‍तेमाल इसलिए किया है, क्‍योंकि लंबे समय तक बेशकीमती सामान को सुरक्षित रखा जा सके. 

15 संदूक किये जा रहे तैयार

जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार के द्वार इससे पहले 1978 में खोले गए थे. आभूषणों, मूल्यवान वस्तुओं की सूची बनाने और भंडार गृह की मरम्मत करने के लिए रत्न भंडार को खोला गया है. आभूषणों और मूल्यवान वस्तुओं को रखने के लिए 15 संदूकों का ऑर्डर दिया गया है. इन्‍हें बनाने के लिए 12 जुलाई को ऑर्डर दिया गया, 14 तरीख तक सिर्फ 6 ही संदूक बन पाए. ऐसा माना जा रहा है कि अगले दो-तीन दिनों में सभी 15 संदूक बनकर तैयार हो जाएंगे. इसके बाद आभूषणों और मूल्यवान वस्तुओं को इन संदूकों में सुरक्षित रखा जाएगा. 

सागवान की लकड़ी से बने संदूक, साढ़े चार फीट लंबाई 

रत्न भंडार में रखे गए कीमती सामान को ले जाने के लिए लकड़ी के छह संदूक मंदिर में पहुंच गए हैं. इन संदूकों के अंदरूनी हिस्से में पीतल लगा हुआ है, ताकि हवा और पानी से कीमती सामान सुरक्षित रह सके. मंदिर समिति से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सागवान की लकड़ी से बनी ये संदूकें 4.5 फुट लंबी, 2.5 फुट ऊंची और 2.5 फुट चौड़ी हैं. इन संदूकों को बनाने वाले एक कारीगर ने बताया, “मंदिर प्रशासन ने 12 जुलाई को हमें ऐसी 15 संदूकें बनाने के लिए कहा था. 48 घंटे की मेहनत के बाद हमने छह संदूक बनाई थीं.” भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं फिलहाल गुंडिचा मंदिर में हैं, जहां उन्हें सात जुलाई को रथ यात्रा के दौरान ले जाया गया था. अगले सप्ताह बाहुदा यात्रा के दौरान उन्हें जगन्नाथ मंदिर में वापिस स्थापित किया जाएगा.

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सागवान की लकड़ी से ही क्‍यों बनाए जा रहे संदूक

जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार को सहेजने के लिए खासतौर पर सागवान की लकड़ी के संदूक बनाए गए हैं. दरअसल, सागवान की लकड़ी बेहद कठोर होती है. ये बेहद चिकनी और चमकदार होती है, इसलिए ये पानी में खराब नहीं होती है. साथ ही सागवान की लकड़ी प्राकृतिक तेलों से भरपूर होती है, जिसकी वजह से इसमें दीमक और कीड़े नहीं लगते हैं. यह लकड़ी नमी और तापमान में बदलाव के प्रति भी प्रतिरोधी होती है, जिससे यह बाहरी उपयोग के लिए आदर्श होती है. सागवान की लकड़ी का इस्‍तेमाल आमतौर पर बेहतरीन फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है, जैसे कि कुर्सियां, मेज और अलमारी. ऐसा फर्नीचार कई वर्षों तक चलता है. सागवान की लकड़ी का उपयोग मूर्तियों और अन्य लकड़ी की नक्काशी बनाने के लिए भी किया जाता है.
(भाषा इनपुट के साथ)

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