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'लैटरल एंट्री' का सिलसिला दशकों से चल रहा, जानिए किन प्रमुख व्यक्तियों को पीछे के दरवाजे से दिए गए पद


नई दिल्ली:

पदों पर पीछे के दरवाजे से भर्ती (Lateral Entry) के मामले में विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. इस पर सरकार ने कहा है कि लैटरल एंट्री पंडित जवारलाल नेहरू के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौर से ही चलती रही हैं. कांग्रेस की सभी सरकारों के दौर में पीछे के दरवाजे से प्रवेश के मौके दिए जाते रहे. उस समय यह सवाल क्यों नहीं उठाया गया?  विपक्ष के आरोप पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने The Hindkeshariसे कहा कि सरकार संवेदनशील है. उन्होंने कहा कि, ”नेहरू जी के जमाने से लैटरल एंट्री थी. मर्जी से किसी को भी ले लेते थे ये. तब ये क्यों नहीं बोले थे? इदिरा जी के जमाने में भी लेटरल एंट्री थी. राजीव जी के जमाने में भी लैटरल एंट्री थी, मैं सैकड़ों उदाहरण दे दूंगा.” 

अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि, ”डॉ मनमोहन सिंह भी लैटरल एंट्री के ही पार्ट थे. वे सन 1976 में वित्त सचिव कैसे बने?   लेकिन मोदी जी ने इसको व्यवस्थित किया. यह एससी, एसटी, ओबीसी के हितों की रक्षा करने वाली सरकार है.” 

उन्होंने कहा कि, ”नौ अगस्त को विज्ञापन दिया गया था. अनुसूचित जाति, जनजाति से संबंधित जो भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं, वे सब प्रधानमंत्री से मिले थे. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने इसमें भ्रम पैदा कर दिया है. वह दूर होना चाहिए. उसके बाद उसी दिन कैबिनेट की बैठक में यह सब दूर हुआ. कहा गया कि क्रीमी लेयर फैसले का हिस्सा नहीं है. यह स्पष्ट किया कि एससी-एसटी में क्रीमी लेयर नहीं है. यह जो फैसला एससी के उपवर्गीकरण का है, जिसमें कहा गया कि राज्य चाहें तो उपवर्गीकरण कर सकते हैं. बातें एकदम साफ हैं.” 

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देश में लैटरल एंट्री का एक इतिहास है. लैटरल एंट्री के लिए दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने अनुशंसाएं की थीं. कांग्रेस के वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे. सिविल सर्विसेज में अहम भूमिकाओं वाले पद लैटरल एंट्री के जरिए दिए जाते रहे. लैटरल एंट्री के प्रस्ताव का आधार क्षेत्र विशेष में विशेषज्ञता और योग्यता था. आयोग ने मैरिट के आधार पर सिलेक्शन प्रक्रिया पूरी करने का सुझाव दिया था.     
 

लैटरल एंट्री के जरिए हुईं प्रमुख नियुक्तियां-

सन 1971 में मनमोहन सिंह को विदेश व्यापार मंत्रालय में सलाहकार नियुक्त किया गया था. सिंह सन 1991 में  वित्त मंत्री बनाए गए थे. इसके बाद वे 2004 से 2014 तक दो बार प्रधानमंत्री रहे. 

सैम पित्रोदा को सन 1980 में पब्लिक इन्फ्रा और इनोवेशंस के लिए प्रधानमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया गया था. 

बिमल जालान ने सन 1077 से 2003 तक प्रमुख आर्थिक सलाहकार के रूप में सेवाएं दीं.

कौशिक बसु सन 2009 में प्रमुख आर्थिक सलाहकार नियुक्त किए गए थे.    

अरविंद वीरमानी ने सन 2007 से 2009 तक प्रमुख आर्थिक सलाहकार के पद पर कार्य किया. 

रघुराम राजन को भी प्रमुख आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था. 

मोंटेक अहलूवालिया सन 2004 से 2014 तक योजना आयोग के चेयरमेन रहे थे. 

नंदन नीलकेणी को सन 2009 में यूआईडीएआई (UIDAI) का चेयरमेन नियुक्त किया गया था.   

सरकार ने वापस लिया विज्ञापन

गौरतलब है कि कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने कल दावा किया था कि विपक्ष के विरोध के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ‘लेटरल एंट्री’ के मामले पर पीछे हटी और उसने संबंधित विज्ञापन वापस लेने का फैसला किया. विपक्षी पार्टियों ने यह भी दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण खत्म करने की फिराक में है.

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केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर विज्ञापन रद्द करने को कहा “ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके.”

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में क्रीमीलेयर और उपवर्गीकरण करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ मोर्चा ने बुधवार को भारत बंद (Bharat Band On SC,ST Reservation) बुलाया. क्रीमीलेयर के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कई दलित और आदिवासी संगठनों ने यह बंद बुलाया है.  इसके साथ ही संगठनों ने कई मांगों की एक लिस्ट भी जारी की है. 

आज किए गए भारत बंद का समाजवादी पार्टी, बसपा सहित कई राजनीतिक पार्टियों ने स्वागत किया है. सरकार ने कहा है कि वह एससी, एसटी के हित में काम कर रही है. लेकिन विपक्ष और आंदोलनकारी यह नहीं मान रहे हैं. 

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