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आरएसएस भी है त्रिभाषा फार्मूले का समर्थक, इन तीन भाषाओं को सीखने पर देता है जोर


नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक शुक्रवार को बंगलुरु में शुरू हुई. इससे पहले इसकी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई. इसमें कई सामाजिक राजनीतिक विषयों पर सवाल-जवाब हुए. इस दौरान तमिलनाडु का मामला भी उठा जहां, इन दिनों परिसीमन और त्रिभाषा फार्मूले का भी सवाल आया. इस दौरान आरएसएस ने उन शक्तियों पर चिंता जताई जो राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे रही हैं,  खासकर उत्तर-दक्षिण का भेद पैदाकर परिसीमन या भाषा को लेकर सवाल खड़े करना. इस अवसर पर आरएसएस ने 2018 में पारित अपने एक प्रस्ताव की याद दिलाई. यह प्रस्ताव भी तीन भाषा की वकालत करता है. इस प्रस्ताव में मातृ भाषा के अलावा बाजार और करियर की भाषा को चुनने पर जोर दिया गया है. 

परिसीमन पर आरएसएस का रुख

प्रेस कॉन्फ्रेंस को आरएसएस के संयुक्त सचिव सीआर मुकुंद और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने संबोधित किया. परिसीमन के सवाल पर मुकुंद ने कहा कि यह सरकार का फैसला है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि इस प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा.उन्होंने कहा कि अगर किसी दक्षिणी राज्य के पास 543 में से कुछ लोकसभा सीटें हैं, तो वह अनुपात वैसे ही बनी रहेंगी.उन्होंने कहा कि इसके अलावा कई और चीजें हैं, जिनमें से ज्यादातर राजनीत से प्रेरित हैं, जैसे स्थानीय भाषा में रुपये का प्रतीक रखना.आरएसएस नेता ने कहा कि इन समस्याओं का समाधान सामाजिक संगठनों और नेताओं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के लिए आपस में झगड़ा करना अच्छा नहीं है. इसे सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करना चाहिए.

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आरएसएस के संयुक्त सचिव सीआर मुकुंद और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर.

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हालांकि आरएसएस नेताओं ने त्रिभाषा फार्मूला पर जारी विवाद पर कुछ भी सीधे कहने से परहेज किया.उन्होंने यह जरूर कहा कि लोगों को कम से कम तीन भाषाएं जाननी चाहिए. मुकुंद ने कहा, “मातृभाषा का उपयोग हमारे सभी दैनिक कार्यों के लिए करना चाहिए. आरएसएस ने यह तय करने वाला कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया है कि तीन भाषा या दो भाषा प्रणाली क्या होनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा पर हमने पहले एक प्रस्ताव पारित किया था.”

आरएसएस की प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव

दरअसल आरएसएस की प्रतिनिधि सभा ने 2018 में भारतीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता पर एक प्रस्ताव पारित किया था. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि प्राथमिक शिक्षा केवल किसी की मातृभाषा या किसी अन्य भारतीय भाषा में होनी चाहिए. प्रस्ताव में कहा गया है, ” देश भर में प्राथमिक शिक्षा केवल मातृ भाषा या किसी अन्य भारतीय भाषा में होनी चाहिए. इसके लिए माता-पिता को भी मन बनाना चाहिए और सरकारों को उपयुक्त नीतियां बनानी चाहिए और इसके लिए आवश्यक प्रावधान तैयार करने चाहिए.”

आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में शामिल हुए प्रतिनिधि.

आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में शामिल हुए प्रतिनिधि.

मुकुंद ने कहा,” न केवल स्कूल प्रणाली में बल्कि समाज में भी हमें कई भाषाएं सीखनी होंगी. एक हमारी मातृभाषा है, दूसरी उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा या बाजार की भाषा होनी चाहिए जहां हम रहते हैं. अगर मैं तमिलनाडु में रहता हूं, तो मुझे तमिल सीखनी होगी. अगर मैं दिल्ली में रहता हूं, तो मुझे हिंदी सीखनी होगी क्योंकि मुझे स्थानीय लोगों से बाजार में बात करनी पड़ती है. कुछ लोगों के लिए करियर भाषा की भी जरूरत होती है. अगर यह अंग्रेजी है, तो उसे अपने करियर के लिए वह भी सीखनी होगी. तो करियर भाषा है, क्षेत्रीय भाषा है, और मातृभाषा. आरएसएस हमेशा से इस पर जोर देता है.”

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तमिलनाडु में भाषा और परिसीमन की लड़ाई

उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु में भाषा और परिसीमन का विवाद गहराया हुआ है. तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने केंद्र सरकार पर नई शिक्षा नीति के नाम पर हिंदी भाषा थोपने का आरोप लगा रही है.इसके साथ ही वहां एक विवाद और गहराया हुआ है. वह है परिसीमन का. दरअसल दक्षिण भारत के कई राज्यों ने आरोप लगाया है कि परिसीमन के बाद से दक्षिण भारत के राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व कई गुना बढ़ जाएगा. तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने एक सर्वदलीय बैठक कर केंद्र सरकार से मांग की थी कि अगले 30 साल के लिए परिसीमन का आधार 1971 की जनगणना को ही माना जाए. देश में नया परिसीमन जनगणना के बाद होना है. इसकी कवायद अभी सरकार ने नहीं शुरू की है. 

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