देश

कुमारगुप्‍त प्रथम से PM मोदी तक : नालंदा विश्वविद्यालय के बसने, उजड़ने और फिर बसने की कहानी

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षा केंद्र था. इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है, जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे. 

कुमारगुप्‍त प्रथम ने की थी स्‍थापना 

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान इससे लगाइए कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें थीं. 

यहां एक समय में 10,000 से अधिक छात्र और 2,700 से अधिक शिक्षक होते थे. छात्रों का चयन उनकी मेधा के आधार पर होता था और इनके लिए शिक्षा, रहना और खाना निःशुल्क था. इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया आदि देशों से भी छात्र आते थे. 

नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोलशास्त्र, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित, वास्तुकला, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा आदि विषय पढ़ाए जाते थे. इस विश्वविद्यालय में एक ‘धर्म गूंज’ नाम की लाइब्रेरी थी, जिसका अर्थ ‘सत्य का पर्वत’ था. इसके 9 मंजिल थे और इसे तीन भागों में विभाजित किया गया था : रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर. 

बख्तियार खिलजी ने किया था बर्बाद 

1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया गया था. यहां विश्वविद्यालय परिसर और खासकर इसकी लाइब्रेरी में आग लगाई गई, जिसमें पुस्तकालय की किताबें हफ्तों तक जलती रहीं.

इसी नालंदा विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, नागार्जुन जैसे कई महान विद्वानों ने शिक्षा प्राप्त की थी. खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष 1.5 लाख वर्ग फीट में मिले हैं, जो इसके विशाल और विस्तृत परिसर का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा माना जाता है.

अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में 25 नवंबर 2010 को स्थापित की गई. इस विश्वविद्यालय की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत की गई. इस अधिनियम में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वर्ष 2007 में फिलीपीन में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया है. 

यह भी पढ़ें :-  Explainer : मोहन चरण माझी को मुख्यमंत्री बनाकर BJP ने क्या संदेश दिया, जानें कहां-कहां होगा इसका असर

भारत के अलावा 17 अन्‍य देशों की भागीदारी 

नए विश्वविद्यालय ने 2014 में 14 छात्रों के साथ एक अस्थायी स्थान से काम करना शुरू किया. विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ. भारत के अलावा इस विश्वविद्यालय में जिन 17 अन्य देशों की भागीदारी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इन देशों ने विश्वविद्यालय के समर्थन में समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है. 

Nalanda University Replica

शैक्षणिक वर्ष 2022-24, 2023-25 ​​के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और 2023-27 के पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित अंतरराष्ट्रीय छात्रों में अर्जेंटीना, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, घाना, इंडोनेशिया, केन्या, लाओस, लाइबेरिया, म्यांमार, मोजाम्बिक, नेपाल, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, दक्षिण सूडान, श्रीलंका, सर्बिया, सिएरा लियोन, थाईलैंड, तुर्किये, युगांडा, अमेरिका, वियतनाम और जिम्बाब्वे के विद्यार्थी शामिल हैं. 

विश्वविद्यालय में छह अध्ययन केंद्र हैं जिनमें बौद्ध अध्ययन, दर्शन और तुलनात्मक धर्म स्कूल; ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल; पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल; और सतत विकास और प्रबंधन स्कूल शामिल हैं. 

Latest and Breaking News on NDTV

उद्घाटन से पहले लोगों ने दी इस तरह की प्रतिक्रिया 

नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए भवन के उद्घाटन से पहले यहां घूमने आए बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास के बारे में सबको जानकारी होनी चाहिए. इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.

उन्होंने मांग की कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास को बहुत कम लोग जानते हैं. ऐसे में इस जगह की खुदाई कराकर इसके बारे में ज्यादा जानकारी लोगों को पहुंचाना चाहिए.

यह भी पढ़ें :-  Chhattisgarh Exit Poll: छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार की वापसी के आसार, BJP को मिल सकती है निराशा

यहां घूमने आई पर्यटक खुशी कुमारी ने कहा कि आजकल के लोगों की सोच अलग है. पहले शिक्षा नेचर के साथ कनेक्ट होता था, आज तकनीक पर आधारित है. शिक्षक भी अब पहले की तरह छात्रों से ज्यादा कनेक्ट नहीं करते हैं. पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था में और आज की शिक्षा व्यवस्था में काफी अंतर है.

वहीं, अंकिता सिंह जो नालंदा परीक्षा देने के लिए आई थी, वह जब यहां घूमने पहुंची तो बेहद खुश नजर आईं. उन्होंने कहा कि यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है कि पहले पूरी दुनिया के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे और अपने देशों में जाकर शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते थे. उन्होंने बताया कि यहां देखकर पता चला कि हमारे बुजुर्गों की मानसिकता इतनी विकसित थी और साथ ही वह इतने सुशिक्षित थे.

आकांक्षा कुमारी जो नालंदा घूमने आई थी, उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय परिसर में आकर हमें बहुत अच्छा लगा. लोगों से अपील की कि वह भी नालंदा आएं और अपने इतिहास के अवशेषों को देखें और अपने आप पर गर्व करें.

श्रवण कुमार नाम के पर्यटक ने कहा कि यहां तो पूरी दुनिया से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे. उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय को तोड़ने के पीछे एक मकसद सांस्कृतिक चोट पहुंचाना भी था.

बिहार शरीफ के रहने वाले अंकित कुमार ने बताया कि इस खंडहर को देखकर अपने देश और उसके इतिहास पर गर्व होता है. लोगों से अपील करते हैं कि यहां जरूर आएं और इसे देखें ताकि आप भी अपनी शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति पर गर्व कर सकें.

यह भी पढ़ें :-  PM मोदी ने बदली एक्स प्रोफाइल तस्वीर, हर घर तिरंगा अभियान से जुड़ने की अपील की

(एजेंसियों के इनपुट के साथ)

ये भी पढ़ें :

* जब अचानक वाराणसी में सिगरा स्टेडियम का निरीक्षण करने पहुंचे PM मोदी, देखें तस्वीरें
* वही केमिस्ट्री, वही अंदाज : जब लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार मंच पर साथ दिखे PM मोदी और CM योगी
* इसके बिना ईद अधूरी है… लोगों को एक बार फिर याद आए पाकिस्तानी रिपोर्टर चांद नवाब, Video शेयर कर कही ये दिलचस्प बात


NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button