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शिवाजी महाराज के पालतू कुत्ते की कहानी झूठी है? वंशज संभाजीराजे छत्रपति ने बताया सच 

शिवाजी महाराज के पालतू कुत्ते की कहानी बहुत प्रसिद्ध है, मगर आज इस पर उन्हीं के वंशज ने सवाल उठा दिया है. शिवाजी महाराज के बारे में यूं तो कई कहानियां हैं, लेकिन एक उनके पालतू कुत्ते से जुड़ी हुई है. इसका नाम वाघ्या बताया जाता है. लोककथा के अनुसार, वाघ्या एक वफादार और बहादुर कुत्ता था, जो शिवाजी महाराज के साथ हर समय रहता था. एक बार, जब शिवाजी महाराज अपने महल में सो रहे थे, तो वाघ्या उनके पास सोया हुआ था. अचानक, एक दुश्मन सैनिक महल में घुस आया और शिवाजी महाराज पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन वाघ्या ने उसे देख लिया और भौंककर शिवाजी महाराज को जगा दिया. शिवाजी महाराज ने वाघ्या की चेतावनी सुनकर दुश्मन सैनिक को मार गिराया. इसके बाद, शिवाजी महाराज ने वाघ्या की बहादुरी की प्रशंसा की और उसे इनाम दिया.

वाघ्या पर मतभेद

वाघ्या की वफादारी और बहादुरी की कहानी आज भी प्रसिद्ध हैं और लोग उसे एक सच्चे और वफादार पालतू जानवर के रूप में याद करते हैं. बताया जाता है कि वाघ्या एक मिश्रित नस्ल का कुत्ता था, जिसे शिवाजी महाराज ने पालतू बनाया था. कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत के बाद, वाघ्या ने उनके अंतिम संस्कार के दौरान उनकी चिता में कूदकर खुद को जला लिया था. इसी कारण रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि के पास में वाघ्या की प्रतिमा स्थापित की गई थी. हालांकि, 2011 में संभाजी ब्रिगेड के कथित सदस्यों ने विरोध स्वरूप वाघ्या की प्रतिमा को हटा दिया था, लेकिन बाद में इसे दोबारा स्थापित कर दिया गया.

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शिवाजी महाराज के वंशज ने क्या बताया  

अब राज्यसभा के पूर्व सदस्य और कोल्हापुर शाही परिवार के वंशज संभाजीराजे छत्रपति ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज के समाधि स्थल के निकट एक श्वान के स्मारक को हटाने का आग्रह किया है. उन्होंने 22 मार्च को लिखे पत्र में इस बात पर जोर दिया कि श्वान का स्मारक इस साल 31 मई से पहले हटा दिया जाना चाहिए. पत्र में कहा गया है, ‘‘कुछ दशक पहले, 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रायगढ़ किले में उनके समाधि स्थल के पास वाघ्या नामक श्वान का स्मारक बनाया गया था.”

इसमें कहा गया है, ‘‘हालांकि शिवाजी महाराज के पालतू श्वान का नाम वाघ्या होने के बारे में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है. क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं है, इसलिए यह किले पर अतिक्रमण है, जिसे कानूनी तौर पर एक विरासत ढांचे के रूप में संरक्षित किया गया है.” उन्होंने दावा किया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी स्पष्ट किया है कि श्वान के अस्तित्व का कोई साक्ष्य या लिखित प्रमाण नहीं है. 

पूर्व सांसद ने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे महान शिवाजी महाराज की विरासत का अपमान होता है.” एएसआई की नीति के अनुसार 100 साल से अधिक पुरानी संरचना को संरक्षित किया जाता है. संभाजीराजे ने कहा कि वाघ्या श्वान के स्मारक ढांचे को ऐसा दर्जा मिलने से पहले ही हटा दिया जाना चाहिए.
 



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