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धनखड़ को हटाने का मकसद नहीं, फिर विपक्ष ने क्यों दिया नोटिस? समझिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की इनसाइड स्टोरी


नई दिल्ली:

संसद के शीतकालीन सत्र का मंगलवार (10 दिसंबर) को 11वां दिन है. आज राज्यसभा में विपक्ष ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. विपक्ष की तरफ से राज्यसभा के सचिव पीसी मोदी को ये नोटिस दिया गया. धनखड़ पर सदन में पक्षपातपूर्ण बर्ताव करने का आरोप है. इस नोटिस पर विपक्ष की तरफ से 60 सांसदों ने साइन किए हैं. हालांकि, इस नोटिस पर कांग्रेस की वरिष्ठ सांसद सोनिया गांधी समेत कुछ पार्टियों के बड़े नेताओं ने साइन नहीं किए. ऐसे में साफ है कि अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को कुछ हासिल नहीं होने वाला है. विपक्ष के कुछ सांसद भी ऑफ द रिकॉर्ड मान रहे हैं कि उनका मकसद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटाना नहीं है, बल्कि वो सिर्फ पदेन सभापति के पक्षपातपूर्ण रवैये का विरोध जताना चाहते हैं.

राज्यसभा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब सभापति के लिए खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. आइए जानते हैं विपक्ष राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव किस आधार पर लेकर आई है? सभापति को हटाने के लिए संविधान में क्या हैं नियम? जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के पीछे की क्या है इनसाइड स्टोरी:-

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा विपक्ष

राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति पर विपक्ष ने लगाए कौन से आरोप?
-राज्यसभा के पदेन सभापति जगदीप धनखड़ पर पक्षपातपूर्ण बर्ताव का आरोप है. विपक्षी पार्टियों ने अविश्वास प्रस्ताव में आरोप लगाया है कि उनको बोलने नहीं दिया जाता. चेयरमैन पक्षपात कर रहे हैं. 
-विपक्षी पार्टियों ने एक दिन पहले का उदाहरण देते हुए कहा है कि ट्रेजरी बेंच के सदस्यों को बोलने का मौका दिया गया, लेकिन जब विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे बोल रहे थे, तो उन्हें बीच में रोक दिया गया. 
-विपक्ष का आरोप है कि सत्ता पक्ष के सांसदों के साथ ऐसा नहीं किया जाता. सभापति सदन में उन्हें बोलने का पर्याप्त समय देते हैं.

इन आरोपों में कितनी सच्चाई है?
इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये तो साफ-साफ नहीं कहा जा सकता. लेकिन विपक्ष के कई सांसद टीवी पर और कार्यवाही के दौरान सभापति के सामने पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगा चुके हैं. ताजा उदाहरण मल्लिकार्जुन खरगे का दिया जा सकता है. 

संसद की कार्यवाही के पहले दिन 25 नवंबर को विपक्षी नेताओं ने चिल्लाकर कहा कि लीडर ऑफ अपोजिशन को बोलने दीजिए. इस पर धनखड़ ने कहा, “हमारे संविधान को 75 साल पूरे हो रहे हैं. उम्मीद है आप इसकी मर्यादा रखेंगे.” इस पर खरगे ने जवाब दिया, “इन 75 सालों में मेरा योगदान भी 54 साल का है, तो आप मुझे मत सिखाइए.” 

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, “राज्यसभा सभापति का आचरण अस्वीकार्य है. वह BJP के किसी प्रवक्ता से ज्यादा वफादार दिखने का प्रयास कर रहे हैं.” रमेश ने कहा, “राज्यसभा के माननीय सभापति द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीक़े से उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करने के कारण INDIA गठबंधन के सभी घटक दलों के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.”

संसद के बाहर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा, “मैंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी इतना पक्षपाती सभापति नहीं देखा है. वे सत्ता पक्ष के सांसदों को नियम के विपरीत बोलने की छूट देते हैं, जबकि विपक्षी सांसदों को चुप कराते हैं.” इसी तरह विपक्ष के कई सांसदों ने बोलने के दौरान माइक बंद किए जाने की शिकायत की है.

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अविश्वास प्रस्ताव लाने की कहानी क्या है?
सूत्रों का कहना है कि विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस देने के लिए अगस्त में ही जरूरी संख्या में सांसदों के साइन ले लिए थे. लेकिन, फिर कांग्रेस इस प्रस्ताव पर आगे नहीं बढ़ी. सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने धनखड़ को ‘एक और मौका देने’ का फैसला किया था. लेकिन विपक्षी नेताओं के मुताबिक सोमवार के धनखड़ ने फिर से पक्षपातपूर्ण बर्ताव किया. इसके बाद ही विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पर आगे बढ़ने का फैसला लिया. 

विपक्ष ने किस नियम के तहत दिया अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस?
संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं. राज्यसभा में सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए एक सदस्य ही काफी होता है. आर्टिकल 67 B के तहत नोटिस दिया गया है. इसपर INDIA गठबंधन के सभी दलों के 60 सांसदों ने साइन किए हैं. 

कितनों दलों ने किए साइन?
इस अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने साइन किए हैं. 

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किन दलों ने किया किनारा?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने के लिए राज्यसभा सेक्रेटरी को दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस से बीजू जनता दल (BJD) ने किनारा कर लिया है. BJD के राज्यसभा सांसद डॉक्टर सस्मित पात्रा ने कहा है कि यह प्रस्ताव INDIA ब्लॉक की ओर से लाया गया है. बीजेडी इंडिया ब्लॉक का घटक नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि BJD इस प्रस्ताव पर तटस्थ रहेगी. डॉक्टर पात्रा ने ये भी कहा है कि यह ऐसा विषय है जिससे हमारा संबंध नहीं है. 

इस प्रस्ताव पर आगे क्या होगा?
सभापति को हटाने के लिए विपक्ष की ओर से दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर विचार करना है या नहीं… यह राज्यसभा के सचिव ही तय करेंगे. राज्यसभा के इतिहास में पहला नोटिस है. हालांकि, यह तय ही है कि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने से ज्यादा, यह विपक्ष की बस सांकेतिक घेरेबंदी ही है. INDIA गठबंधन के नेता भी ऑफ द रिकॉर्ड बोल रहे हैं कि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के का मकसद सिर्फ यह मेसेज देना है कि वह सदन में पक्षपात कर रहे हैं.

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उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया क्या है?
-उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए संविधान के आर्टिकल 67 बी के तहत कम से कम 50 सदस्यों के साइन से राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.
-नियमों के मुताबिक, संबंधित प्रस्ताव 14 दिन पहले राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा जाना चाहिए. 
-उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव सिर्फ राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है. लोकसभा में नहीं.
-इस प्रस्ताव को राज्यसभा में प्रभावी बहुमत (खाली सीटों को छोड़कर मौजूद सदस्यों का बहुमत) मिलना चाहिए. लोकसभा में इसे साधारण बहुमत से पारित होना चाहिए.
-जब तक प्रस्ताव विचाराधीन होता है, तब तक उपराष्ट्रपति; जो कि राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं वो सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते.
-राज्यसभा के सभापति इस दौरान लोकसभा में वोटिंग कर सकते हैं, लेकिन वोटों की समानता के केस में उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं होगा.
-उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होती है.

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क्या राज्यसभा के सभापति को एक प्रस्ताव से हटाया जा सकता है?
नहीं. देश का उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं. उन्हें सभापति पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उन्हें उपराष्ट्रपति पद से भी हटाया जाए. उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा में सबकी सहमति से पास हुए प्रस्ताव के जरिए ही हटाया जा सकता है. इस प्रोसेस को महाभियोग कहते हैं. लेकिन भारत के राजनीतिक इतिहास में अब तक किसी भी उपराष्ट्रपति को नहीं हटाया गया है.

अविश्वास प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में क्या है नंबर गेम?
लोकसभा में NDA के 293 और INDIA के 236 सदस्य हैं. बहुमत 272 पर है. विपक्ष अन्य 14 सदस्यों को साधे तो भी प्रस्ताव पारित होना मुश्किल होगा. विपक्ष के पास राज्यसभा में भी इस प्रस्ताव को पास कराने के लिए नंबर नहीं हैं. उनके पास 250 में केवल 103 सीटें हैं, लिहाजा उनके लिए आवश्यक बहुमत हासिल कर पाना मुश्किल है.

बेशक विपक्ष इस प्रक्रिया को शुरू कर सकता है. इसे एक राजनीतिक बयान या रणनीति के रूप में उपयोग कर सकता है. लेकिन संसद में इस तरह के प्रस्ताव को सफलतापूर्वक पारित करना असंभव सा ही है.

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