'मंदिर-मस्जिद का मुद्दा उठाकर नेता बनने का प्रयास गलत' : मोहन भागवत के मराठी भाषण की बड़ी बातें जानिए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं.
हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो: मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाकी सब गलत यह नहीं अलग-अलग मुद्दे रहे तब भी हम सब मिलजुल कर रहेंगे. हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो इस बात का ख्याल रखेंगे. कितनी श्रद्धा मेरी खुद की बातों में है. उतनी श्रद्धा मेरी दूसरों की बातों में भी रहनी चाहिए. हमें यह व्यवहार पालन करना होगा और मतों की भिन्नता नहीं चलेगी. लोभ, लालच, आक्रमण करके दूसरों की देवी देवताओं की विडंबना करना यह नहीं चलेगा. वैसे भी यह बातें हमारे देश की नहीं है. यह हमारे राष्ट्रीय जीवन में समा ही नहीं सकती.
मोहन भागवत ने कहा कि रामकृष्ण मिशन में आज भी 25 दिसंबर को मनाते हैं, क्योंकि यह हम कर सकते हैं. हम हिंदू हैं हम दुनिया में सब के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं. यह हार्मनी अगर दुनिया को चाहिए तो उन्हें अपने देश में यह मॉडल लाना होगा.
‘अपना देश संविधान के मुताबिक चलता है’
भागवत ने कहा कि अब श्रद्धा के आदर की बात आती है. राम मंदिर होना चाहिए. हुआ भी वह हिंदुओं का श्रद्धा स्थान है. लेकिन ऐसा किया तो हिंदू में से नेता बन सकते हैं. इसलिए तिरस्कार, शत्रुता के लिए रोज एक नए प्रकरण निकालना यह कैसे चलेगा, यह नहीं होना चाहिए. आखिरकार हमारा सॉल्यूशन क्या है. हमको दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं. इसलिए अपने देश में एक छोटा सा प्रयोग होना चाहिए. यह प्रयोग करते हुए अपने यहां इन सब बातों का संभालने वाले अनेक पंत, समुदाय के विचारधारा हमारे यहां है. हालांकि, कुछ बाहर से भी आए हैं. लेकिन गलती से ही क्यों ना हो पर कट्टरपना की परंपरा तो है, उनमें उनका राज यहां पर था. इसलिए उनको ऐसा लगता है कि उनका राज वापस से आना चाहिए. लेकिन अभी अपना देश संविधान के मुताबिक चलता है. यहां पर किसी का राज नहीं रहता. जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है जो चुनकर आएगा. वह राज्य चलाएगा राज जनता का होता है. वर्चस्व का जमाना गया.
मोहन भागवत ने कहा कि आपको यह बात समझनी चाहिए और यह सब पुरानी लड़ाइयां है. इन लड़ाइयां को भूलकर हमें सबको संभाल के लेना चाहिए. कुछ अलगाववाद और यह लड़ाई आज भी चलती है. इसका कारण क्या है? पूजा आपकी कौन सी है? उसका कोई मतलब नहीं बाद हमें यहां पर एक साथ रहना चाहिए. यही भारत की संस्कृति सिखाती है. लेकिन समय- समय पर इसमें भी विघ्न पैदा किए गए. आखिरी बार औरंगजेब ने यह विघ्न पैदा किया था. इसके बाद फिर एक बार कट्टरवाद का राज आया. 1857 में भी फिर से एक प्रयोग हुआ दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर ने जब गौ हत्या बंदी का आदेश निकाला, राम मंदिर हिंदुओं को देंगे ऐसा भी तय हो गया था एक मौलवी और एक संत के प्रयासों से. लेकिन अंग्रेजों को यह बात समझ में आई की आपस में लड़ने वाले लोग कितने भी लड़ते रहे. लेकिन अगर हम जैसा विदेशी आ जाए तो यह लोग एकजुट होकर हमें भागने के लिए हमारे खिलाफ लड़ने लगते हैं. इसलिए इन्हें बांट कर रखना चाहिए. फिर उन्होंने एक और प्रयोग किया जिसमें अलगाववाद उत्पन्न हुआ और उस वजह से पाकिस्तान बना.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वतंत्र भारत में हमें भारत में रहना, ऐसा सब ने कहा हम भारतीय भारत में रहेंगे तो फिर अब यह अलग अलग बातें क्यों होती है. वर्चस्व की भाषा क्यों होती है. कौन माइनॉरिटी और कौन मेजॉरिटी सब एक जैसे ही है इस देश की परंपरा ही ऐसी है, जिसकी जैसी पूजा वैसा करता रहे. बस आपस में अच्छे से रहो नियम कानून मानकर चलते रहो. इसलिए इस वर्चस्व वाद कट्टरवाद को भूलकर हम सबको भारत की सम समावेश संस्कृति के तहत एकजुट हो जाना चाहिए. देश की सम समावेश संस्कृति जिनके पास से चलती आई उन्हें क्यों डर लगता है. हम बंटे हुए है इसलिए डर लगता है. एकजुट हो सशक्त हो जाओ किसी का भी डर नहीं लगेगा. उलट जो डराते हैं उनको डर लगेगा इतना सशक्त हो जाओ. पर किसी को डराओ मत.