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सुप्रीम कोर्ट ने 'चुनावी बांड योजना' को क्यों किया रद्द – 5 प्वाइंट में समझें

चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है.


सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया, जिसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में 2018 में लाया गया था. देखा जाए तो केंद्र सरकार के लिए ये बहुत ही बड़ा झटका है. कोर्ट ने कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है.

चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

  1. चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा. चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है.

  2. फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, “काले धन को रोकने के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड के अलावा भी दूसरे तरीके हैं. हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता. उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चुनावी बॉन्‍ड के अलावा अन्य साधन भी हैं.

  3. सभी राजनीतिक योगदान सार्वजनिक नीति को बदलने के इरादे से नहीं किए जाते हैं. छात्र, दिहाड़ी मजदूर आदि भी योगदान देते हैं. केवल इसलिए कि कुछ योगदान अन्य उद्देश्यों के लिए किए गए हैं, राजनीतिक योगदानों को गोपनीयता की छतरी न देना अस्वीकार्य नहीं है.

  4. किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यक्तियों के योगदान की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव होता है. कंपनियों द्वारा योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है. धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए मनमाना है.

  5. संशोधन से पहले घाटे में चल रही कंपनियां योगदान नहीं दे पाती थीं. संशोधन घाटे में चल रही कंपनियों को बदले में योगदान करने की अनुमति देने के नुकसान को नहीं पहचानता है. धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन घाटे में चलने वाली और लाभ कमाने वाली कंपनियों के बीच अंतर न करने के लिए स्पष्ट रूप से मनमाना है.

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