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दुनिया से 'टैक्स-टैक्स' खेल रहे ट्रंप का बजट में निकलेगा क्या तोड़, समझिए

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं. 24 घंटे में उनके रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के वादे को पुतिन झटका दे चुके हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ में न्योता देने और फिर शपथ के तुरंत बाद अपने भाषण में चीन को खरी-खोटी सुनाने के बाद पुतिन-जिनपिंग मीटिंग कर चुके हैं. शपथ लेने के बाद ही फ्रांस, जर्मनी से लेकर यूरोपीय संघ तक ट्रंप को खरी-खरी सुना चुके हैं. जाहिर है दुनिया में तेजी से समीकरण बदल रहे हैं. इस बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और मार्को रुबियो की वाशिंगटन डीसी में मुलाकात को बेहद अहम माना जा सकता है. जयशंकर के अमेरिका में दिए बयान का साफ सीधा मतलब है कि ट्रंप भारत को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं. हालांकि, उनका टैक्स को लेकर भारत से भी मतभेद है. दुनिया से टैक्स-टैक्स खेल रहे ट्रंप का तोड़ बजट से निकल सकता है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारत को दुनिया की फैक्ट्री बनाने पर काम कर सकती हैं. क्योंकि अब तक दुनिया की फैक्ट्री माना जाने वाला चीन सीधे अमेरिका से टकराव के रास्ते पर है.विशेषज्ञों का मानना ​​है कि केंद्रीय बजट भारत के लिए अपने विदेशी व्यापार हितों से संबंधित चिंताओं को दूर करने का एक रणनीतिक अवसर है. दुनिया में बढ़ रही अशांति को देखते हुए भारत अपने घरेलू उद्योगों पर ध्यान दे सकता है.

Budget 2025 में क्या खास

आगामी केंद्रीय बजट के लिए अपनी सिफारिशों में, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने सरकार से टैरिफ स्लैब की संख्या को 40 से घटाकर केवल पांच करके सीमा शुल्क संरचना को सरल बनाने का आग्रह किया है. इसका मानना है कि कच्चे माल पर तैयार माल की तुलना में कम दरों पर कर लगाने से आयात लागत को कम करने, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. जीटीआरआई ने भारत के औसत टैरिफ को लगभग 10% तक कम करने की भी सिफारिश की है. उसका मानना ​​है कि इस कदम को महत्वपूर्ण राजस्व हानि के बिना लागू किया जा सकता है. फिलहाल 85 प्रतिशत शुल्क राजस्व केवल 10 प्रतिशत आयात शुल्क श्रेणियों से आता है, जबकि 60 प्रतिशत शुल्क श्रेणियों का राजस्व में तीन प्रतिशत से भी कम अंशदान है. रिपोर्ट के मुताबिक, सीमा शुल्क की भारत के सकल कर राजस्व में हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 6.4 प्रतिशत रह गई है, जबकि कारपोरेट कर (26.8 प्रतिशत), आयकर (29.7 प्रतिशत) और जीएसटी (27.8 प्रतिशत) इससे काफी आगे हैं. 

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आत्मनिर्भर भारत पर बढ़ेगा जोर

2014 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान शुरू किया. तब से ये विकसित भारत 2047 के सपने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. यही कारण है कि घरेलू उत्पादों को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है. विशेषज्ञों को उम्मीद है कि बजट में देश के निर्माताओं को महत्वपूर्ण बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दिया सकता है. भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए, बजट अधिकांश उत्पादों पर मौजूदा सीमा शुल्क छूट को चरणबद्ध कर सकता है. इस कदम से घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा, आयात पर निर्भरता कम होगी और मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा मिलेगा.

चीन की जगह अब भारत

विशेषज्ञों ने कहा कि यदि भारतीय व्यवसायों को घरेलू स्तर पर अधिक बढ़ावा मिलता है, तो इससे चीन (China) जैसे भागीदारों पर भारत की व्यापार निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी. फिलहाल भारत का बीजिंग के साथ 85.1 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है. चीन वर्तमान में अमेरिका और अन्य देशों में भी बड़े स्तर पर निर्यात करता है. इन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने से न केवल भारत की निर्यात क्षमता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत दुनिया की फैक्ट्री के रूप में चीन का एक विकल्प बन सकता है.

अमेरिका चीन ट्रेड वार फिर तय

भारत संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) सहित वैश्विक भागीदारों के साथ अपने व्यापार समझौतों की भी समीक्षा कर सकता है. ट्रंप (Donald Trump) के पहले कार्यकाल के दौरान चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वार देखा गया था और उस समय अमेरिका में भारतीय सामानों की मांग में वृद्धि हुई थी, क्योंकि अमेरिकी कंपनियां चीन का विकल्प ढूंढ रही थीं. फिर 2020 में कोरोना महामारी आई और इसने विश्व को एक बार चीन पर अपनी नर्भरता को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया. अब एक बार फिर वैसा ही माहौल है. या कहें कि उससे भी ज्यादा खराब चीन के लिए माहौल है तो गलत नहीं होगा. ऐसे में अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार लगभग तय माना जा रहा है.

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व्यापार समझौते करने पड़ेंगे

नवंबर में, विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने कहा था कि अगर दुनिया को आपूर्ति श्रृंखला में परिवर्तन दिखाई देता है, तो इसका मतलब भारत के लिए ये एक अवसर होगा. अगर भारत चीन और अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों से व्यापार समझौता करता है तो ये भारत के लिए एक बड़ी जीत होगी. आसियान देशों के साथ मौजूदा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की सरकार समीक्षा कर सकती है कि व्यापार नीतियां घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लक्ष्य के अनुरूप हैं या नहीं. इन एफटीए के तहत रियायती शुल्क आयात को तर्कसंगत बनाने से सस्ते आयात के प्रवाह को कम करने और स्थानीय उद्योगों को समर्थन देने में मदद मिल सकती है. इसीलिए माना जा रहा है कि निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) इस बार दुनिया की स्थिति को देखते हुए भारत के घरेलू उद्योगों के लिए खास घोषणाएं कर सकती हैं. 

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