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'पौने आठ बजे तैयार रहते थे…', यूपी के मंत्री असीम अरुण ने The Hindkeshariसे मनमोहन सिंह से जुड़ी यादों को किया साझा


नई दिल्‍ली:

यूपी सरकार में मंत्री और आईपीएस अधिकारी रहे असीम अरुण पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ एसपीजी में तीन साल काम कर चुके हैं. डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर उन्हें याद करते हुए असीम अरुण ने The Hindkeshariसे कहा कि सादगी और अनुशासन कोई मनमोहन सिंह से सीख सकता था. वह समय से पहले हर कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार रहते थे. वहीं, उन्‍हें लोगों से शांतिपूर्ण ढंग से काम निकलवाना भी आता था. मारुति 800 के प्रति मनमोहन सिंह के लगाव के बारे में भी असीम अरुण ने बताया.    

मारुति 800 से था खास लगाव

असीम अरुण ने डॉ. मनमोहन सिंह की मारुति कार का ज़िक्र करते हुए कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह कहते थे कि पीएम की बीएमडब्लू अस्थाई है और वो उसमें असहज महसूस करते हैं. वो हमेशा मारुति 800 को अपनी कार कहते थे. परिवार में कभी मनमोहन सिंह जी के पद का कोई दुरुपयोग नहीं किया. वह बेहद सादगीपूर्ण जीवन जीते थे, जो दूसरे लोगों को भी प्रभावित करता था. 

समय के पाबंद

साल 2004 से 2007 तक तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से असीम अरुण अटैच रहे. उन्‍होंने बताया, ‘ये मेरा बहुत सौभाग्‍य रहा कि मैंने डॉ. मनमोहन सिंह के साथ काम किया और उनकी सुरक्षा में ‘क्‍लोज प्रोटेक्‍शन टीम’ का नेतृत्‍व किया. उस समय हमारा काम प्रधानमंत्री की परछाई के रूप में साथ रहना होता था. ऐसे में मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बेहद करीब से देखने और जानने का मौका मिला. अगर किसी को अनुशासन सीखना है, तो वह डॉ. मनमोहन सिंह से सीख सकता था. उन्‍हें अगर किसी कार्यक्रम में शाम 8 बजे जाना होता था, तो वह अपनी पत्‍नी के साथ पौने आठ बजे तैयार रहते थे. वह किसी हड़बड़ी में नहीं रहते थे. समय के पाबंद थे और दूसरों से भी आशा करते थे कि लोग समय की उपयोगिता को समझें.’  

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‘वह बहुत कम बोलते थे, लेकिन…’

असीम अरुण ने बताया कि वह एक दिन पहले ही शेड्यूल में लिख देते थे कि वह कब क्‍या करेंगे. वह प्रधानमंत्री होने के बावजूद शाम को मोटी-मोटी किताबें पढ़ते थे. कई रिपोर्ट्स पढ़ते थे, जिन पर उन्‍हें निर्णय लेना होता था. इसके लिए वह अपना पूरा शेड्यूल तैयार रखते थे. ऐसे अनुशासन से वह जीवन जीते थे. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पूरा जीवन बेहद सादगीपूर्ण बिताया. असीम अरुण बताते हैं, ‘वह बहुत कम बोलते थे, और उस समय काफी उतार-चढ़ाव वाला दौर था. वह अक्‍सर दो कदम आगे और एक कदम पीछे की नीति पर चलते थे. यह मैंने उनसे सीखा कि ऐसा नहीं होता है, आप सरकार में रहते हुए जैसे चाहें, वैसा होगा. कभी-कभी काम निकालने के लिए थोड़ा रुकना पड़ता है. हर बार किसी के पीछे डंडा लेकर काम नहीं होता है. शांत रहकर और होशियारी के साथ भी काम कराए जा सकते हैं.’

‘मैं मनमोहन सिंह से मिलने के बाद बदल गया’ 

असीम अरुण ने कहा कि वो खुद अपना जीवन दो हिस्सों में बंटा हुआ देखते हैं. पहला मनमोहन सिंह जी से मिलने से पहले… वह बताते हैं कि तब मैं बहुत अक्‍खड़ था और लोगों से आमतौर पर भिड़ जाया करता था. दूसरा डॉ. मनमोहन सिंह के साथ काम करने के बाद, जब मैं बड़ी होशियारी से शांतिपूर्ण ढंग से लोगों से काम निकलवा लेता था. इसके बाद मुझे समझ में आया कि जब एक प्रधानमंत्री को इतनी सूझबूझ के साथ काम करना पड़ता है, वे अपने मन की नहीं कर सकते, तो तुम एक जिले के एसपी हो, तुम्‍हारे मन की हमेशा क्‍यों होगी? लेकिन कानून का पालन भी कराना है, सबको साथ लेकर भी चलना है, ये सब मुझे डॉ. मनमोहन सिंह से सीखने को मिला. 

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