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जमानत शर्तों को 'टूल' की तरह इस्तेमाल…: सेंथिल बालाजी को बेल देते हुए जांच एजेंसी पर SC की सख्त टिप्पणी


नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए एक बार फिर बड़ी टिप्पणियां की है. उन्होंने कहा कि संवैधानिक अदालतें प्रवर्तन निदेशालय को आरोपी को बिना सुनवाई के जेल में रखने के लिए कड़ी जमानत शर्तों को ‘टूल’ के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. अदालत ने कहा कि यह आरोपी के त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. अदालत ने 14 जून, 2023 को कैश फॉर जॉब घोटाले से जुड़े मामलों में गिरफ्तार किए गए बालाजी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. 

अदालत ने कहा कि 15 महीने से जेल में हैं और कुछ सालों में उनकी सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं है. कोर्ट ने कहा कि PMLA , UAPA और NDPS एक्ट जैसे कठोर दंडात्मक कानूनों में जमानत देने की उच्च सीमा किसी आरोपी को बिना सुनवाई के जेल में रखने का साधन नहीं हो सकती. जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने ट्रायल में लंबे समय तक देरी के साथ कठोर जमानत प्रावधानों की असंगति पर जोर दिया.

जमानत देने के लिए निर्धारित उच्च सीमा को देखते हुए ट्रायल का शीघ्र निपटान भी जरूरी है. इसलिए मामलों के शीघ्र निपटान की आवश्यकता को इन कानूनों में शामिल किया जाना चाहिए. ट्रायल के समापन में अत्यधिक देरी और जमानत देने की उच्च सीमा एक साथ नहीं चल सकती. यह हमारे आपराधिक न्यायशास्त्र का एक सुस्थापित सिद्धांत है कि ‘जमानत नियम है, और जेल अपवाद है’. जमानत देने के संबंध में ये कड़े प्रावधान, जैसे कि पीएमएलए की धारा 45(1)(3), ऐसा साधन नहीं बन सकते जिसका इस्तेमाल आरोपी को बिना सुनवाई के अनुचित रूप से लंबे समय तक कैद में रखने के लिए किया जा सके. 

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संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है यह: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने फैसले का हवाला देतेहुए इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक अदालतों के पास जमानत देने का अधिकार है अगर यह स्पष्ट है कि ट्रायल उचित समय के भीतर पूरा नहीं होगा. ऐसे मामलों में, विचाराधीन कैदी को लंबे समय तक कैद में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है. जब PMLA के तहत शिकायत की सुनवाई उचित सीमा से आगे बढ़ने की संभावना हो तो संवैधानिक अदालतों को जमानत देने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने पर विचार करना होगा.

इसका कारण यह है कि धारा 45(1)(2) राज्य को किसी आरोपी को अनुचित रूप से लंबे समय तक हिरासत में रखने का अधिकार नहीं देती है.  खासकर तब जब उचित समय के भीतर ट्रायल के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं होती है. संवैधानिक न्यायालय धारा 45(1)(ii) जैसे प्रावधानों को ईडी के हाथों में लंबे समय तक कैद जारी रखने का साधन बनने की अनुमति नहीं दे सकते हैं.

जब अनुसूचित अपराध और PMLA अपराध के ट्रायल के उचित समय के भीतर समाप्त होने की कोई संभावना नहीं होती है.यदि संवैधानिक न्यायालय ऐसे मामलों में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नही करेगा तो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विचाराधीन कैदियों के अधिकार पराजित होंगे. किसी न  किसी दिन न्यायालयों, विशेष रूप से संवैधानिक न्यायालयों को, हमारी न्याय वितरण प्रणाली में उत्पन्न होने वाली एक अजीबोगरीब स्थिति पर निर्णय लेना होगा.कोर्ट ने नोट किया कि बालाजी को PMLA मामले के सिलसिले में 15 महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया है.

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पीठ ने कहा कि PMLA की धारा 4 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के लिए न्यूनतम सजा तीन साल है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है. बालाजी के खिलाफ अनुसूचित अपराधों में 2000 से अधिक आरोपी और 600 से अधिक गवाह शामिल हैं. आरोपियों और गवाहों की इतनी अधिक संख्या ने मुकदमे की प्रक्रिया को काफी जटिल बना दिया है. आरोप तय करने और दलीलों की सुनवाई में कई महीने लगने की उम्मीद है.

मद्रास हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी जमानत याचिका
मद्रास हाईकोर्ट द्वारा 28 फरवरी को जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद बालाजी ने जमानत के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नेता को 14 जून, 2023 को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था. उनके खिलाफ मामला तमिलनाडु परिवहन विभाग में बस कंडक्टरों की नियुक्ति के साथ-साथ ड्राइवरों और जूनियर इंजीनियरों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं से उपजा है. 

ये आरोप 2011 से 2015 तक अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIDMK) सरकार के परिवहन मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान के हैं. अदालत ने बालाजी द्वारा गवाहों से छेड़छाड़ और संभावित हस्तक्षेप के बारे में ईडी द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए जमानत के लिए कई कठोर शर्तें लगाईं है. 


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