VIDEO:'सात मंजिलें, बाबर की सेना ने भी किया इस्तेमाल…', ऐसी है संभल में पृथ्वीराज चौहान की बावड़ी?
संभल:
उत्तर प्रदेश के संभल में एक के बाद एक प्रशासन बावड़ी और कूप का सर्वे कर रहा है. इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि संभल में 19 कूप और 34 तीर्थ स्थान हुआ करते थे, जिनकी खोज की जा रही है. इस दौरान कमालपुर गांव में पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी ऐतिहासिक बावड़ी भी सामने आई. बताया जा रहा है कि इस बावड़ी का इस्तेमाल पृथ्वीराज चौहान की सेना किया करती थी. उसके बाद मुगलकालीन सेनाओं ने भी इसका इस्तेमाल किया. इस सात मंजिला राजपूत कालीनी बावड़ी को ‘चोरों के कुंए’ के नाम से भी जाना जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि 1960 तक इस बावड़ी में पानी दिखता था. योगी प्रशासन अब इस बावड़ी का जीर्णोद्धार कराने की योजना बना रहा है. The Hindkeshariकी टीम इस बावड़ी में उतरी, और जाना कि कैसा रहा होगा पृथ्वीराज चौहान का काल जब इतनी .
सात मंजिला बावड़ी, सेना करती थी यहां विश्राम
संभल के कमालपुर गांव की खूबसूरत बावड़ी को पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया और अलग-अलग शासकों ने इस बावड़ी का अलग-अलग वक्त पर जीर्णोद्धार करवाया. यह बावड़ी एक समय सात मंजिला थी, लेकिन अब केवल दो मंजिल बावड़ी ही इसमें दिख रही है यानी इसमें जो मिट्टी है वो काफी पट गई है. इस बावड़ी में हर एक मंजिल पर कई कमरे हैं. इन कमरों में कई लोग रहते थे. सेनाएं यहां रुकती थीं और विश्राम करती थीं. संभल में कई बावड़ियों का निर्माण कराया गया, क्योंकि संभल रणनीतिक रूप से काफी अहम स्थान था.
पृथ्वीराज चौहान ने संभल को क्यों बनाया था राजधानी?
पृथ्वीराज चौहान के समय संभल एक बहुत महत्वपूर्ण लोकेशन रहा, क्योंकि ये दिल्ली से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर है. आगरा से इसकी दूरी महज 150 किलोमीटर की दूरी पर है. मध्य भारत के मध्य में संभल क्षेत्र स्थित है, इसकी वजह से हजारों साल पहले से ही इसकी लोकेशन बहुत महत्त्वपूर्ण रही है. पृथ्वीराज चौहान की ये राजधानी थी. यहां से दिल्ली बहुत कम समय में पहुंचा जा सकता है. इनके बाद अलग-अलग शासक आए… बाबर भी आए और उनकी भी सेनाओं ने इस बावड़ी का इस्तेमाल किया.
कैसी है पृथ्वीराज चौहान की बावड़ी?
इस सात मंजिला इमारत में एक वक्त सैकड़ों लोग रह सकते थे. यह बावड़ी इसलिए बहुत महत्त्वपूर्ण रही है, क्योंकि जब सेनाओं का आना-जाना होता था, तो यहां पर इसको इस्तेमाल किया जाता था. सैनिक इसका इस्तेमाल पानी पीने, नहाने और आराम करने के लिए किया करते थे. बावड़ी के अंदर एक बरामदा नुमा एक जगह होती है, जहां गर्मी का अहसास न के बराबर होता है. एक कमरे को दूसरे कमरे से जोड़ने के लिए रास्ते हैं. अलग-अलग मंजिल पर जाने के लिए कई सीढि़यां है. इन्हें इस तरीके से बनाया गया था कि यहां का तापमान बाहर से कम रहे. अब तक ये बावड़ी टिकी हुई है, इससे इनकी मजबूती का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अब प्रशासन यह कह रहा है कि हम इस तरीके की बावड़ियां को संरक्षित करेंगे उनको सुरक्षित करेंगे, ताकि जो आने वाली पीढ़ी हैं, वो जान सके कि संभल का इतिहास और विरासत कितनी समृद्ध रही होगी.