हमने दोनों संन्यासिनों से बात की है… जानें आज सुप्रीम कोर्ट में कैसे मिली जग्गी वासुदेव को बड़ी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को दो संन्यासिनों से जुड़े मामले में बड़ी राहत दी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद दोनों संन्यासिनों से बातचीत की. उन्होंने बताया कि वे अपनी मर्जी से फाउंडेशन में रह रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पुलिस को उनके आश्रम की तलाशी लेकर जानकारी जुटाने का आदेश दिया गया था. ईशा फाउंडेशन ने गुरुवार को मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कोयंबटूर पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह उसके खिलाफ दर्ज सभी मामलों की जानकारी इकट्ठा करे और आगे विचार के लिए उन्हें अदालत में पेश करे. फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि लगभग 500 पुलिस अधिकारियों ने फाउंडेशन के आश्रम पर छापेमारी की है और हर कोने की जांच कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी.
आखिर क्या है मामला, जानिए
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दो लड़कियों के पिता डॉ. एस कामराज ने उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में अवैध रूप से बंधक बनाए जाने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
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डॉ. एस कामराज तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर से सेवानिवृत्त प्रफेसर हैं. उनकी दो बेटियां हैं और दोनों ने इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर डिग्री ली है. दोनों ही ईशा फाउंडेशन से जुड़ गई थीं.
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डॉ. कामराज की शिकायत है कि फाउंडेशन कुछ लोगों को गुमराह करके उनका धर्म परिवर्तन कर उन्हें ‘भिक्षु’ बना रहा है और उनके माता-पिता तथा रिश्तेदारों को उनसे मिलने भी नहीं दे रहा है.
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हाई कोर्ट ने 30 सितंबर को दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें उन्होंने पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वह उनकी दो बेटियों को अदालत के समक्ष पेश करे.
‘सद्गुरु पूजनीय, मौखिक दावों पर जांच सही नहीं’
ईशा फाउंडेशन केस में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि हम पुलिस को दिए गए हाई कोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाते हैं. कोर्ट ने कहा कि ये धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे हैं और यह एक बहुत जरूरी और गंभीर मामला है. सद्गुरु हैं जो बहुत पूजनीय हैं. उनके लाखों अनुयायी हैं. उच्च न्यायालय मौखिक दावों पर ऐसी जांच शुरू नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से केस खुद को ट्रांसफर किया है.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ
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CJI ने सुनवाई के दौरान ने कहा, ‘क्या दोनों संन्यासिन कोर्ट में पेश हुईं तो इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि हां कोर्ट ने उनसे बात भी की थी.
- CJI बेंच ने एक महिला संन्यासी से वर्चुअली बात की. संन्यासिनों ने कहा कि हमने हाईकोर्ट को भी बताया है कि अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन में रह रहे हैं.
- CJI ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दोनों बेटियों से बात करने के बाद यह आदेश पारित किया है.
- कामराज की बेटियों ने फोन पर बातचीत के दौरान CJI को बताया कि वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और अपनी मर्जी से आश्रम से बाहर आ जा सकती हैं.
क्या है पूरा मामला
कोयंबटूर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की पीठ ने तमिलनाडु सरकार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. अपनी याचिका में कामराज ने आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियों को कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में रहने के लिए गुमराह किया गया और फाउंडेशन ने उन्हें अपने परिवार के साथ कोई संपर्क नहीं बनाने दिया.
ईशा फाउंडेशन ने दिया यह जवाब
जवाब में, ईशा फाउंडेशन ने इस बात से इनकार किया कि वह ब्रह्मचारी बनने की वकालत करता है या लोगों से शादी करने के लिए कहता है, क्योंकि ये व्यक्तिगत पसंद हैं. फाउंडेशन ने यहां एक बयान में कहा, ‘‘ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग और आध्यात्मिकता के मार्ग पर लाने के लिए की थी. हमारा मानना है कि वयस्क मनुष्यों के पास अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और समझ है.”
फाउंडेशन ने दावा किया कि याचिकाकर्ता और अन्य लोगों ने फाउंडेशन द्वारा बनाए जा रहे श्मशान घाट के बारे में जांच करने के लिए तथ्यान्वेषण समिति होने का झूठा बहाना बनाकर परिसर में जबरन घुसने की कोशिश की और उन्होंने फाउंडेशन के खिलाफ आपराधिक शिकायत भी दर्ज कराई है. उच्च न्यायालय ने पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी थी.