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'तुम क्या? मैं क्या? रजाकार, रजाकार…' बांग्लादेश में गाली क्यों बन गया हथियार

कौन थे रजाकार?

बांग्लादेश में ‘रजाकार’ एक अपमानजनक शब्द है जिससे पीछे बदनामी का एक इतिहास है. सन 1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम हुआ था. उस दौरान पाकिस्तानी सेना तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले बांग्लादेश के लोगों पर भारी अत्याचार कर रही थी. तब पाकिस्तान ने बांग्लादेश में ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स बनाई थी. कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा समर्थित पाकिस्तान के सशस्त्र बलों ने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने और लोगों को आतंकित करने के लिए तीन मुख्य मिलिशिया बनाए थे- रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स. पाकिस्तान सशस्त्र बलों के समर्थन से इन मिलिशिया समूहों ने बंगाल में नरसंहार किए और बंगालियों के खिलाफ बलात्कार, प्रताड़ना, हत्या जैसी जघन्य वारदातें की थीं. वे पृथक बांग्लादेश के गठन के विरोधी थे. 

आज स्थिति यह है कि शेख हसीना को निशाना बनाते हुए बांग्लादेश की सड़कों पर “हम हैं रजाकार” के नारे लगाए जा रहे हैं. दरअसल यह नारा ‘तानाशाह’ के विकल्प के रूप में ‘रजाकार’ को पेश करके बुलंद किया जा रहा है, जबकि वास्तव में रजाकार की उपमा बांग्लादेश में किसी गाली से भी बदतर है. 

हैदराबाद में ‘रेजाकार’ बांग्लादेश में हुआ ‘रजाकार’

विशेषज्ञों के अनुसार रजाकर शब्द वास्तव में ‘रेजाकार’ है. रेजाकार का इतिहास भारत के हैदराबाद शहर से जुड़ा है. भारत में रेजाकर हैदराबाद रियासत में एक अर्धसैनिक स्वयंसेवी बल या होम गार्ड थे. उन्होंने 1947 में भारत की आजादी के बाद हैदराबाद के भारतीय गणतंत्र में विलय का विरोध किया था. रेजाकार मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता बहादुर यार जंग के दिमाग की उपज थे. रेजाकर संगठन का विकास कासिम रिजवी के नेतृत्व में हुआ था. हालांकि सन 1948 में भारतीय सेना से रेजाकर बुरी तरह परास्त हो गए थे.

बांग्लादेश की स्वतंत्रता के विरोधी थे रजाकार

बांग्लादेश में सन 1971 में जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ सदस्य मौलाना अबुल कलाम मोहम्मद यूसुफ ने जमात के 96 सदस्यों की रजाकारों की पहली टीम बनाई थी. बंगाली में ‘रेजाकार’ शब्द को ‘रजाकार’ कहा गया. इन रजाकारों में गरीब लोग शामिल थे. वे पाकिस्तानी सेना के मुखबिर बना दिए गए थे. उनको स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ लड़ने के लिए हथियार भी दिए गए थे. इनमें से ज्यादातर बिहार के उर्दू भाषी प्रवासी थे जो भारत की आजादी और बंटवारे के दौरान बांग्लादेश चले गए थे. वे पाकिस्तान के समर्थक थे. वे बांग्लादेश की स्वतंत्रता के विरोधी थे. उन्होंने बंगाली मुसलमानों के भाषा आंदोलन का भी विरोध किया था.

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सन 2018 में आरक्षण रद्द किए जाने के खिलाफ फैसला 

बांग्लादेश में रिजर्वेशन का विरोध लंबे अरसे से हो रहा है. सन 2018 में देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद सरकार ने उच्च श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण रद्द कर दिया था. इस साल पांच जून को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने सन 2018 में सरकार के आरक्षण रद्द करने के सर्कुलर को अवैध बताया. कोर्ट के इस फैसले से स्वाभाविक रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण फिर से लागू हो जाएगा. 

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स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को आरक्षण क्यों न मिले?

आरक्षण का प्रावधान स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए भी किया गया है. पिछले सप्ताह विरोध प्रदर्शनों के बारे में पत्रकारों के सवालों पर शेख हसीना ने कहा कि, “वे (प्रदर्शनकारी) स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति इतने नाराज क्यों हैं? अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिलना चाहिए तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को मिलना चाहिए?”

शेख हसीना के इस बयान पर आंदोलनकारी छात्र भड़क गए. उन्होंने शेख हसीना की ओर से दिए गए रजाकार के संदर्भ को लेकर ही उन्हें निशाना बनाना शुरू कर दिया. आंदोलनकारी अब नारे लगा रहे हैं –  “तुई के? अमी के? रजाकार, रजाकार… की बोलचे, की बोलचे, सैराचार, सैराचार ( इसका अर्थ है- तुम कौन? मैं कौन? हम रजाकार, रजाकार… कौन कह रहा? तानाशाह, तानाशाह).”

स्वतंत्रता आंदोलन का नारा नए रूप में सामने आया

यह नारा पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के दौरान बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा इस्तेमाल किए गए एक प्रतिष्ठित नारे से लिया गया है. सन 1968 से 1971 के बीच बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने पाकिस्तान, उसके सशस्त्र बलों और उसके समर्थकों के खिलाफ इस तरह के कई नारे दिए थे. उनमें से एक जानामाना नारा था “तुमी के अमी के, बंगाली, बंगाली (तुम कौन हो? मैं कौन हूं? बंगाली, बंगाली).” इसका उद्देश्य पाकिस्तान के उत्पीड़न के खिलाफ अपनी बंगाल की पहचान और स्वतंत्रता की मांग के लिए आम नागरिकों को प्रेरित करना था. 

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हसीना ने किया व्यंग्य, लग गई आग

खुद के लिए एक बदनामी वाली उपमा ‘रजाकार’ का उपयोग करके वास्तव में प्रदर्शनकारी छात्र शेख हसीना के बयान पर पलटवार करके खुद को पतित बता रहे हैं. हालांकि वास्तविकता यह भी है कि शेख हसीना ने छात्रों को रजाकार नहीं कहा था बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों की तुलना रजाकारों से करके व्यंग्य के जरिए अपनी बात न्यायसंगत साबित करने की कोशिश की थी. 

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‘वे नहीं जानते क्योंकि उन्होंने सड़कों पर पड़ी लाशें नहीं देखीं’  

जब ढाका की सड़कों पर नारे गूंजने लगे तो शेख हसीना ने एक समारोह में उन पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों के लिए ‘रजाकार’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था. उन्होंने कहा, “वे खुद को रजाकार कहलाने में शर्म महसूस नहीं करते…वे नहीं जानते कि पाकिस्तानी कब्जे वाली सेना और रजाकार वाहिनी ने देश में किस तरह से अत्याचार किए थे-उन्होंने अमानवीय अत्याचार और सड़कों पर पड़ी लाशें नहीं देखीं. इसलिए वे खुद को रजाकार कहलाने में शर्म महसूस नहीं कर रहे.”

शेख हसीना ने कहा कि, “हमारा एकमात्र लक्ष्य मुक्ति संग्राम की भावना को स्थापित करना है. सैकड़ों-हजारों शहीदों ने खून बहाया जबकि हमारी लाखों माताओं और बहनों के साथ बलात्कार किया गया. हम उनके योगदान को नहीं भूलेंगे. हमें इसे ध्यान में रखना होगा.”

बांग्लादेश में विश्वविद्यालयों के हजारों छात्र एक जुलाई से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि आरक्षण की व्यवस्था भेदभावपूर्ण है. इसमें अच्छी सैलरी वाली सरकारी नौकरियों में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के सेनानियों के वंशजों को तरजीह दी जा गई है. छात्र योग्यता के आधार पर भर्ती करने की मांग कर रहे हैं. स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए करीब एक तिहाई पद आरक्षित किए हैं.

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