देश

नाथूराम गोडसे के मन में था कौन सा डर ? फांसी से पहले कांपती आवाज में ये थे उसके आखिरी शब्द

नाथूराम गोडसे और नायारण आप्टे की फांसी को 75 साल पूरे.


दिल्ली:

सन् 1949 में 15 नवंबर की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई. आज ही का वो दिन था, जब नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) और नारायण आप्टे को फांसी दी गई थी. वही नाथूराम गोडसे, जिसने राष्ट्रपति महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. दोनों को फांसी दिए 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन गोडसे का नाम लोगों के जहन से अब तक नहीं मिट सका है. हर कोई उसके बारे में अलग-अलग राय रखता है. यह एक ऐसा टॉपिक है, जो राजनीति में हमेशा छाया रहता है. गोडसे और आप्टे को फांसी दिए जाने के 75 साल पूरे होने पर एक बार फिर से गोडसे और उसकी फांसी से जुड़े किस्सों को याद किया जा रहा है. आखिर उस दिन हुआ क्या था.

जस्टिस जीडी खोसला की किताब ‘द मर्डर ऑफ महात्मा’ के मुताबिक, गोडसे और आप्टे को फांसी के लिए ले जाया जा रहा था तो फांसी के तख्त की तरफ जाते समय गोडसे से कांपती हुई आवाज में अखंड भारत कहा था, उसके इस नारे को आप्टे ने बुलंद आवाज में ‘अमर रहे’ कहकर पूरा किया था.

गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा?

बंटवारे के बाद की अराजकता और बड़े स्तर पर सांप्रदायिक हिंसा की वजह से गोडसे को लगता था कि महात्मा के अहिंसा और हिंदू-मुस्लिम एकता के सिद्धांत भारत, खासकर हिंदू समाज के लिए नुकसानदेह है. इतिहासकार रामचंद्र गुहा के मुताबिक,  गोडसे को लगा कि पाकिस्तान के फाइनेंशियल राइट्स के लिए गांधीजी का समर्थन और मुसलमानों के साथ उनके शांति की कोशिशों ने हिंदू हितों को खतरे में डाल दिया है. 

यह भी पढ़ें :-  महात्मा गांधी की पुण्यतिथि : पीएम मोदी ने डायरी के पन्नों में महात्मा गांधी को लेकर लिखी थी ये बातें...

परिवार को क्यों नहीं दिए गए थे गोडसे-आप्टे के शव

 खास बात ये है गोडसे और आप्टे के परिवारों को इनके शव तक नसीब नहीं हुए थे. दोनों का अंतिम संस्कार अंबाला जेल अधिकारियों ने खुद ही कर दिया था.अंबाला जेल के भीतर एक गाड़ी में दोनों के शवों को लेकर अधिकारी घाघर नदी के किनारे पहुंचे और दोनों का दाह संस्कार गुपचुप तरीके से वहीं कर दिया. 13 और 16 नवंबर 1949 को टीओआई में दो रिपोर्ट्स छापी गई थीं. जिसमें कहा गया था कि गोडसे और आप्टे की बॉडीज उनके परिवार और रिश्तेदारों को नहीं सौंपी गईं. दरअसल तत्कालीन सरकार ने दोनों के शवों को परिवार को नहीं सौंपने का फैसला लिया था.

तत्कालीन सरकार के उस फैसले की वजह जानिए

आर्टिकल में बताया गया था कि कैसे इस फैसले का मकसद गोडसे और आप्टे के अवशेषों को सहानुभूति रखने वालों के लिए रैली की वजह बनने या राष्ट्रवादी  गुटों द्वारा प्रतीक के रूप में इस्तेमाल होने से रोकना था. सरकार के उस फैसले का मकसद उस संवेदनशील माहौल में एकता और स्थिरता बनाए रखना था. अधिकारियों ने कथित तौर पर महात्मा गांधी की हत्या के किसी भी महिमामंडन को रोकने के लिए सख्त उपाय लागू किए थे. 

 


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button