पाकिस्तान को पनडुब्बियां देकर अपने कौन से हित पूरे करना चाहता है चीन?
पाकिस्तान (Pakistan) को साथ लेकर चीन (China) हिंद महासागर (Indian Ocean) में वर्चस्व हासिल करने की फिराक में है. पाकिस्तान को चीन आठ एवांस्ड हंगोर क्लास की पनडुब्बियां (Hangor class submarines) दे रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि इनमें से पाक को पहली पनडुब्बी हासिल होने के बाद हिंद महासागर और अरब सागर में शक्ति संतुलन बदल जाएगा, जिसका फायदा चीन को मिलेगा.
चीन ने पाकिस्तान के लिए विकसित की गई पहली हंगोर श्रेणी की पनडुब्बी अप्रैल में लॉन्च की थी. चीन और पाकिस्तान के बीच पनडुब्बी सौदे का समझौता सन 2015 में हुआ था. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पाकिस्तान दौरे के दौरान यह सौदा हुआ था. इसके तहत चार पनडुब्बियां चीन में और बाकी चार पाकिस्तान में बनाई जाएंगी.
पाकिस्तान को चीन द्वारा एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक से लैस पनडुब्बियां दी जा रही हैं. यह पाकिस्तान को समंदर के मोर्चे पर भारत से बढ़त दिलाने की कोशिश है. और इस तरह पाकिस्तान के जरिए चीन अपने हित पूरे करना चाहता है.
एआईपी तकनीक के जरिए नॉन-न्युक्लियर सबमरीन को वायुमंडल से ऑक्सीजन लिए बिना संचालित किया जा सकता है. इस तरह की पनडुब्बियां बिना आवाज के चलती हैं. यही कारण है कि वे परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्बियों के मुकाबले ज्यादा चुपके से अपना काम कर सकती हैं.
हिंद महासागर में प्रभुत्व हासिल करने की कोशिश
विश्लेषकों का मानना है कि चीन का पाकिस्तान को स्टील्थ पनडुब्बियां सप्लाई करने का उद्देश्य हिंद महासागर में भारत का ध्यान भटकाना हो सकता है. हिंद महासागर में प्रभुत्व को लेकर भारत और चीन के बीच तनातनी बनी हुई है. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भारत के साथ हैं.
नवंबर 2023 में पाकिस्तान के कराची बंदरगाह पर चीन के युद्धपोत और सबमरीन देखे गए थे. तब पाकिस्तान की नौसेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की नौसेना ने साझा अभ्यास किया था. दोनों नौसेनाओं के इस साझा अभ्यास को सी गार्जियन-2023 (The Sea Guardian-3) नाम दिया गया था. यह पाकिस्तानी नौसेना (Pakistan Navy) के डॉकयार्ड में किया गया था.
चीन की परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बियां
इससे पहले साल 2022 में हिंद महासागर में कई चीनी सर्विलांस और समुद्र विज्ञान सर्वेक्षण जहाजों (Oceanographic Survey Ships) का भी पता चला था. चीन की हिंद महासागर में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली तेज पनडु्ब्बियां भी सक्रिय हैं. यह पनडुब्बियां समंदर में सैद्धांतिक रूप से अनिश्चितकाल तक डूबी रह सकती हैं. इन्हें सप्लाई लेने के अलावा सतह पर आने की जरूरत नहीं होती है.
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (रिटायर्ड) ने The Hindkeshariसे कहा था कि, “हमारे योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं को इस तथ्य को साफ तौर पर स्वीकार करना होगा कि हिंद महासागर में चीन की गहरी दिलचस्पी है. खास तौर पर इसके समुद्री मार्ग, जो चीन की ज्यादातर ऊर्जा, व्यापार, कच्चे माल और तैयार माल के लिए प्रमुख रूट हैं. नतीजतन हिंद महासागर में चीन की नौसेना की बढ़ती मौजूदगी देखी जा रही है. चीन ने यहां युद्धपोतों के साथ-साथ पनडुब्बियां भी तैनात कर रखी हैं.”
सबसे बड़ी समुद्री शक्ति बनने की चीन की महत्वाकांक्षा
चीन वैश्विक समुद्री ताकत बनने की महत्वाकांक्षा रखता है. हिंद महासागर में तेल और अन्य सामग्री के लिए महत्वपूर्ण शिपिंग लेन हैं. साल 2017 में चीन ने हिंद महासागर के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर स्थित देश जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा खोला था. वह हिंद महासागर में अपने हित पूरे करने में पाकिस्तानी नौसेना को महत्वपूर्ण मानता है और इसलिए उसे मजबूत करने में जुटा है.
पाकिस्तान ने सन 2022 में चीन के शंघाई शिपयार्ड में बनाया गया सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों और सुपरसोनिक सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस तुगरिल को अपना नौसेना में शामिल किया था. यह एक उन्नत युद्धपोत है. सन 2022 में ही पाकिस्तान ने चीन से ताकतवर गाइडेड मिसाइल वॉरशिप तैमूर खरीदा. इस भी शंघाई में बनाया गया.
परिवहन के लिए चीन और भारत हिंद महासागर पर निर्भर
चीन पाकिस्तान को मदद देकर हिंद महासागर में पैर जमाना चाहता है. चीन-पाकिस्तान की साझेदारी भारत की चिंताएं बढ़ाने वाली है. चीन और भारत दोनों को कच्चे तेल और अन्य सामग्री के ट्रांसपोर्टेशन के लिए हिंद महासागर पर काफी निर्भर हैं.
चीन ने पाकिस्तान के अलावा श्रीलंका और मालदीव में नौसैनिक अड्डों और बंदरगाहों में निवेश किया है. इसके पीछे उसका उद्देश्य हिंद महासागर के समुद्री क्षेत्र में घेराबंदी हो सकता है. भारत ने साल 2022 में श्रीलंका के हम्बनटोटा में एक चीनी रिसर्च वेसल के डेरा डालने का विरोध किया था. आशंका जताई गई थी कि यह जासूसी जहाज हो सकता है, जिसका उद्देश्य भारत की रक्षा क्षमताओं का आकलन करना हो सकता है.
हिंद महासागर में प्रतिद्वंद्विता बढ़ने की संभावना
चीन पाकिस्तानी नौसेना को स्टील्थ पनडुब्बियां देकर पाकिस्तान और भारत के बीच समुद्री प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है. भारत क्वाड का हिस्सा है, जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं. इसलिए हिंद महासागर में प्रतिद्वंद्विता बढ़ सकती है.
हिंद महासागर में अपनी सामरिक मौजूदगी बढ़ाकर चीन अपनी सप्लाई चेन के लिए समुद्री रास्तों का भी विस्तार कर रहा है. चीन का 80 प्रतिशत तेल इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच एक संकरे जलमार्ग मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है. यह हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से में है.
पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी तट पर चीन ग्वादर बंदरगाह संचालित कर रहा है. इसके जरिए चीन हिंद महासागर में अपने हित सुरक्षित करना चाहता है. चीन जहां पाकिस्तानी नौसेना की ताकतवर बना रहा है वहीं उसके ग्वादर पोर्ट को भी विकसित कर रहा है.
भारत की नई ताकत कलवरी पनडुब्बी
एक तरफ जहां चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर हिंद महासागर में अपने पैर फैलाने की फिराक में है वहीं भारत भी अपनी नौसेना को लगातार मजबूत करता जा रहा है. भारत की कलवरी पनडुब्बी (Kalvari Class Submarine) दुश्मन को तबाह करने में माहिर है. यह करीब 67 मीटर लंबी और 21 मीटर ऊंची है. इसका वजन करीब डेढ़ हजार टन है. यह पानी के ऊपर 20 किलोमीटर प्रति घंटे और पानी के अंदर 37 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है. कलवरी क्लास की यह पनडुब्बी भारत की सबसे आधुनिक पनडुब्बी है. यह डीजल और बिजली दोनों से चलती है. इस पनडुब्बी को फ्रांस की तकनीकी मदद से मुंबई के मझगांव डॉकयार्ड में बनाया गया है.
कलवरी क्लास की 6 पनडुब्बियां भारतीय नौसेना में शामिल होनी हैं. फिलहाल इस क्लास की पांच पनडुब्बियां नौसेना में शामिल की जा चुकी हैं. कलवरी गहरे समुद्र में तैरने वाली खतरनाक शिकारी टाइगर शार्क को कहा जाता है.
कलवरी पनडुब्बी गहरे समंदर में तैरते हुए हमला और निगरानी, दोनों की करने की क्षमता रखती है. यह समंदर में भी बारूदी सुरंग बिछा सकती है. टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से लैस यह पनडुब्बी युद्धपोतों को भी तबाह करने में सक्षम है. इस क्लास की पनडुब्बी को सैंड शार्क भी कहा जाता है. इससे हिंद महासागर में भारत की सुरक्षा बेहद मजबूत हुई है.
सबसे अधिक सबमरीन अमेरिका के पास
भारत के पास फिलहाल 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं. इनमें पांच स्कॉर्पियन-क्लास (फ्रांसीसी), चार एचडीडब्ल्यू (जर्मन) और सात किलो-क्लास (रूसी) पनडुब्बियां हैं. एक और स्कॉर्पियन क्लास की पनडुब्बी की कमीशनिंग होनी है. माना जाता है कि अगले साल तक भारत के पास 17 पारंपरिक पनडुब्बियां हो जाएंगी. इसी साल मार्च में खबर आई थी कि भारत ने एक साथ 11 पनडुब्बियों को ऑपरेशन के लिए तैनात किया है.
बताया जाता है कि सबसे ज्यादा 68 परमाणु पनडुब्बियां अमेरिका के पास हैं. चीन के पास 10 परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियां हैं. इसके अलावा उसके पास 50 अन्य शक्तिशाली पनडुब्बियां हैं. हालांकि भारत अपनी समुद्री ताकत बढ़ा रहा है. भारत फ्रांस से तीन स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बियां खरीद रहा है. इसके साथ-साथ भविष्य में भारतीय नौसेना में कलवरी क्लास की सबमरीन भी बढ़ जाएंगी.
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