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370, इलेक्टोरल बॉन्ड, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय फैसले और ट्रोल पर पूर्व CJI चंद्रचूड़ के मन में क्या?

Former CJI DY Chandrachud On Important Cases: पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने सुनाए फैसलों पर बात की.

संविधान@75 के ‘ The HindkeshariINDIA संवाद’में देश के सीजीआई (CJI) रहे और हाल में रिटायर हुए डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने धारा 370 (Article 370) और इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) पर सुनाए फैसले को याद करते हुए कहा कि जज के लिए न तो कोई मसला बड़ा होता है और न कोई मसला छोटा होता है. कोर्ट की सिर्फ एक कोशिश होती है कि केस का आकलन तथ्यों और कानून के आधार पर किया जाए. अयोध्या राम मंदिर केस की ही बात करें तो ये पहली बार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आया था.

किन तर्कों पर हुए फैसले?

डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया था. अब पहली अपील में कैसे निर्णय करना चाहिए? इस तरह के मामलों में पहले से सिद्धांत तय हैं.ये सिद्धांत अभी के नहीं बल्कि आजादी के भी पहले के हैं. ऐसे मामलों में विवाद के पक्षकार के दावे और मामले में सबूत देखने चाहिए. ऐसा नहीं है कि ये सिद्धांत किसी एक-दो मामले के लिए हैं. ये सभी केस पर लागू होते हैं. चाहे वो पेंशन का मामला हो या नौकरी का. यही सिद्धांत लागू होते हैं. धारा 370, इलेक्टोरल बॉन्ड या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) केस को ही देख लें, हर केस में यही सिद्धांत लागू किए गए हैं.न्यायिक प्रक्रिया में एक सबसे बड़ा सिद्धांत है कि आप रातों-रात बदलाव नहीं लाते.

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ट्रोल पर भी की बात

पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायायिक तंत्र में बदलाव धीरे-धीरे होता है. ये न्यायिक प्रक्रिया का मजबूत पक्ष है. कई बार समाज में हम लोगों की इसी के लिए काफी आलोचना होती है कि आप बदलाव जल्दी क्यों नहीं ला सकते? उसकी वजह है कि न्यायिक तंत्र स्थिरता में भरोसा करती है. न्यायिक तंत्र मानता है कि समाज की कुछ व्यवस्थाओं को जिंदा रखने की जरूरत है.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले में जो फैसला किया गया तो हमने सुप्रीम कोर्ट के 1950 से लिए अब तक के फैसलों को ध्यान में रखा. इलेक्टोरल बॉन्ड का फैसला करते समय हमने विधायिका की असीमित शक्ति को ध्यान में रखा और ये जेनरेशंस से जजेज ने ध्यान में रखा है. अब नये-नये सिद्धांत आए हैं, हम उस पर भी काम करते हैं ताकी समाज में परिवर्तन आए. इसलिए जज के लिए न तो केस छोटा होता है और न बड़ा होता है और एक बार फैसला सुनाने के बाद इससे बाहर आना होता है. 



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