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चीन-पाकिस्तान से डेटिंग, भारत को भी मिस्ड कॉल.. बांग्लादेश के मायावी ‘लव रेक्टेंगल’ के क्या मायने?

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी कहा था कि आप दोस्त तो चुन सकते हो, लेकिन अपना पड़ोसी नहीं. डिप्लोमेसी की दुनिया में यह एक ऐसा फैक्ट है जो विदेश नीतियों के लिए बेसिक नियम के रूप में काम करता है. आजकल भारत की नजर जितनी पाकिस्तान और चीन पर है, उतनी ही वह रुक-रुक कर बांग्लादेश की तरफ देख रहा है. वजह साफ है कि बांग्लादेश की फिजा बदल गई है. कहा जाए तो उसने 180 डिग्री का यूटर्न ले लिया है. भारत के पक्ष में मानी जाने वालीं शेख हसीना की सरकार गिर चुकी है और उन्होंने खुद भारत में शरण ले रखी है. अभी अराजक दिख रहे बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस चला रहे हैं. वो जिस तरह बांग्लादेश पर भारत के एहसानों को दरकिनार कर चीर प्रतिद्वंदी चीन और पाकिस्तान की ओर हाथ बढ़ाते दिख रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि अभी कोई भावुक कवि बेवफाई के तराने लिखने लगेगा.

बांग्लादेश की विदेश नीति के नए ट्रेंड को देखें तो लगेगा कि कोई डिप्लोमेटिक ‘लव रेक्टेंगल’ सामने है जो अपने स्वरूप में मायावी है.  मुहम्मद यूनुस दोस्ती का हाथ बढ़ाने चीन चले गए, वहां से राष्ट्रपति शी जिनपिंग को हर उस क्षेत्र में निवेश का न्योता दिया है, जो भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसी महीने बांग्लादेश के दौरे पर जाएंगे. 13 साल बाद किसी पाकिस्तान के विदेश मंत्री की यह ढाका यात्रा होगी. वहीं सूत्रों के हवाले से यह भी दावा किया जा रहा है कि  मुहम्मद यूनुस भारत के प्रधानमंत्री मोदी से द्विपक्षीय बैठक करने की भी भरपूर कोशिश कर रहे हैं. 

सवाल है कि मुहम्मद यूनुस एक साथ चीन-पाकिस्तान और भारत, तीनों को बांग्लादेश के पक्ष में साधने की कोशिश कर रहे हैं- यह कैसी माया है? क्या बांग्लादेश भारत की पुरानी दोस्ती की कीमत पर चीन-पाकिस्तान को जिगरी यार बनाने निकला है? 

 चीन को आगे बढ़कर बांग्लादेश ने पकड़ाया हाथ

मोहम्मद यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिये चीन को चुना है. खुद बांग्लादेश के एक टॉप अधिकारी ने कहा कि इस तरह बांग्लादेश “एक संदेश भेज रहा है”. यकीनन संदेश भारत के लिए था. संदेश यह कि भारत के साथ ढाका के रिश्ते ठंडे पड़ते दिख रहे हैं, भारत प्राथमिक के निचले पायदान पर पहुंच गया है, बांग्लादेश पुराने यार के एहसानों को भुलाकर नया दोस्त बनाने निकल चुका है.

अगर मोहम्मद यूनुस सिर्फ चीन जाते और शी-जिनपिंग के साथ मुलाकात करके बांग्लादेश के लिए आर्थिक मदद मांगते, निवेश करने का न्योता देते तो बात अलग होती. वो तो सीधे भारत को ही आंख दिखा रहे हैं, जिसपर भारत ने जवाब भी दिया है. 

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मुहम्मद यूनुस ने चीन से बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाने को कहा और उल्लेख किया कि इस संबंध में भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का चारों ओर से जमीन से घिरा होना एक अवसर साबित हो सकता है. यह टिप्पणी यूनुस ने चार दिवसीय चीन यात्रा के दौरान की और इसका वीडियो सोमवार को सोशल मीडिया पर सामने आया.

यूनुस ने कहा, ‘‘भारत के पूर्वी हिस्से के सात राज्य सात बहनें (सेवन सिस्टर्स) कहलाते हैं. वे चारों ओर से जमीन से घिरे क्षेत्र हैं. उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है.” बांग्लादेश को इस क्षेत्र में ‘‘महासागर का एकमात्र संरक्षक” बताते हुए यूनुस ने कहा कि यह एक बड़ा अवसर हो सकता है और चीनी अर्थव्यवस्था का विस्तार हो सकता है.

यानी भारत की ओर इशारा करके चीन से निवेश माना गया. बदले में भारत के पड़ोस में अपने भौगोलिक पोजिशन को ऑफर के रूप में रखा गया. बांग्लादेश न सिर्फ भारत के एहसानों को भूल रहा है, बल्कि उसे डेंट देने के लिए उसके विरोधी को अपनी जमीन पर आने का न्योता दे रहा है.

भारत ने भी यूनुस की इस बद-जुबानी का कड़े शब्दों में जवाब दिया है. पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने ‘एक्स’ पर यह वीडियो पोस्ट किया और सवाल किया कि यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का उल्लेख क्यों किया. उन्होंने कहा, ‘‘यह दिलचस्प है कि यूनुस चीनियों से इस आधार पर सार्वजनिक अपील कर रहे हैं कि भारत के सात राज्य चारों ओर से भूमि से घिरे हुए हैं. चीन का बांग्लादेश में निवेश करने का स्वागत है, लेकिन भारत के सात राज्यों के चारों ओर से भूमि से घिरे होने का क्या मतलब है?”

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इसे आपत्तिजनक एवं घोर निंदनीय बताया है. याद रहे कि चीन उस चिकन नेट कॉरिडोर पर दबाव बनाने की कोशिश में है जो मेनलैंड इंडिया को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है. अब यूनुस इसी के करीब निवेश के लिए चीन को न्योता दे रहे हैं.

  
बांग्लादेश ने चीन से अपनी तीस्ता नदी के मैनेजमेंट में मदद करने को भी कहा है. यह नदीं भारत और बांग्लादेश दोनों से गुजरती है. नदी पहले भारत से होकर जाती है, इस कारण शेख हसीना की सरकार ने इस मामले पर नई दिल्ली से सीधे सहयोग मांगा था, लेकिन यूनुस सरकार इस मामले में बीजिंग की दखलअंदाजी चाहती है.

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पाकिस्तान और बांग्लादेश- जिससे लड़कर आजादी ली अब वही रास आ रहा?

पाकिस्तान एक समय बांग्लादेश के साथ तनावपूर्ण संबंधों से जूझ रहा था. लेकिन एक दशक से दोनों के बीच तेजी से कूटनीतिक और आर्थिक प्रगति हो रही है. और यह तेजी तो तख्तापलट के बाद एक अलग ही स्पीड से आगे बढ़ रही है. बांग्लादेश ने वीजा प्रतिबंधों में ढील दे दी है, व्यापार बढ़ गया है, सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो गई हैं और यहां तक ​​कि दोनों के बीच सैन्य सहयोग की बात भी हो रही है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री 22 अप्रैल को बांग्लादेश की यात्रा करने वाले हैं. 

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ ने सोमवार को मुहम्मद यूनुस के साथ टेलीफोन पर बातचीत की. इस दौरान उन्होंने एक-दूसरे को ईद-उल-फितर की शुभकामनाएं दीं और संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई.

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश और पाकिस्तान करीब आए हैं, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है. जनवरी में ही पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी ISI के चार शीर्ष अधिकारियों ने ढाका का दौरा किया था. इसके बाद बांग्लादेशी सेना के 4 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल भी इस्लामाबाद गया. सितंबर और दिसंबर 2024 में यूनुस ने पाक पीएम शहबाज से मुलाकात भी की थी. फरवरी में एक बांग्लादेशी युद्धपोत ने कराची के समुद्र में पाकिस्तान द्वारा आयोजित एक बहुराष्ट्रीय नौसैनिक अभ्यास में भाग लिया.

पाकिस्तान-बांग्लादेश की बढ़ती करीबी भारत के लिए बड़ी रणनीतिक चिंताएं पैदा करती है. चिंता सिर्फ यह नहीं है कि पाकिस्तान बांग्लादेश को भारत विरोधी गतिविधि के अड्डे के रूप में इस्तेमाल करने करेगा. दोनों के बीच रक्षा सहयोग पर समझौता हुआ तो पाकिस्तान बंगाल की खाड़ी में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास शामिल हो सकता है. बांग्लादेश और पाकिस्तान एक दूसरे को फायदा पहुंचाने की फिराक में दिख रहे हैं- ढाका दिल्ली पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. वहीं इस्लामाबाद बांग्लादेश के जरिए क्षेत्र की भूराजनीति में दिल्ली को संतुलित करना चाहता है.

क्या बांग्लादेश अभी भी भारत का साथ चाहता है?

एक बात खास है कि भारत विरोधी तमाम स्टैंड उठाने के बावजूद नया बांग्लादेश यह भी संकेत दे रहा है कि वह भारत का हाथ थामे रहने की हर कोशिश करेगा. बैंकॉक में होने जा रहे बिम्सटेक सम्मेलन के इतर पीएम मोदी के साथ यूनुस की मुलाकात को लेकर बांग्लादेश बेकरार भी बताया जा रहा है. वह इस मीटिंग को लेकर हर संभव कोशिश में लगा है. हालांकि अभी तक ऐसी किसी भी मीटिंग को लेकर कोई हरी झंडी नहीं मिली है. यह भी खबर है कि यूसुफ पिछले कुछ महीनों से पीएम मोदी से मुलाकात की मांग कर रहे हैं लेकिन यह मीटिंग तय नहीं हो सकी है.

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यहां आपका सवाल हो सकता है कि आखिर बांग्लादेश एक तरफ चीन और पाकिस्तान को अपने साथ लाने के लिए भारत के हितों की तिलांजलि देने तक की हिमाकत कर रहा है, वहीं वह भारत से बातचीत का रास्ता भी खोज रहा है- वह दोनों बातें एक साथ क्यों कर रहा?

यही सवाल हमने इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के पूर्व रिसर्च फेलो और विदेश नीति के एक्सपर्ट डॉ जाकिर हुसैन से किया. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के पास भारत का कोई सब्सिट्यूट नहीं है. भारत उसके पड़ोस में बैठा इतना बड़ा मार्केट है कि  उसके पास भारत को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का विकल्प ही नहीं है. लेकिन बांग्लादेश के अंतरिम लीडर यूनुस को यह भी पता है कि जनता ने शेख हसीना के खिलाफ आवाज उठाई है और उसी से तख्तापलट हुआ है. तो नई अंतरिम सरकार की विदेश नीति भी हसीना से अलग होनी चाहिए. 1990 के बाद से हर छोटे देश ने अपनी विदेश नीति को आजाद किया है और वो एक साथ कई प्लेयर्स को साधने की कोशिश करते हैं. ऐसा ही बांग्लादेश के साथ भी है.

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