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चांदीपुरा वायरस से गुजरात में क्या है हाल? जानें कैसे होता है वायरसों का नामकरण


नई दिल्ली:

गुजरात में इन दिनों चांदीपुरा वायरस (Chandipura virus Gujarat) कहर मचा रहा है और संक्रमण की चपेट में आकर 16 लोगों की मौत हो गई है. वायरस के बढ़ते मामलों के मद्देनजर राज्य सरकार हर जरूरी कदम उठा रही है. फिलहाल गुजरात के अलावा किसी और राज्य से इस वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया है. चांदीपुरा कोई नया वायरस नहीं है, इससे पहले साल 1965 में इस वायरस ने महाराष्ट्र में आतंक मचाया था. चांदीपुरा वायरस क्या है (Chandipura Kya Hai), लक्षण, बचाव और वायरसों का नामकरण कैसे होता है? आइए विस्तार से जानते हैं इन सवालों के जवाब.

क्या है चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus Kya Hai)

चांदीपुरा वायरस एक अर्बोवायरस है जो रैबडोविरिडे (Rhabdoviridae) परिवार में वेसिकुलोवायरस जीनस (Vesiculovirus genus) से संबंधित है. चांदीपुरा वायरस एक ऐसा वायरस है जो तीव्र इंसेफेलाइटिस का कारण बनता है. यह संक्रमित रोग मक्खी, मच्छर के काटने से होता है. इस संक्रमण के अधिकतर मामले ग्रामीण क्षेत्रों से देखने से मिलते है और ये आमतौर पर बरसात के मौसम में फैलता है.

चांदीपुरा वायरस के लक्षण

चांदीपुरा वायरस के प्रमुख लक्षणों में तेज बुखार आना, दौरे पड़ना, दस्त, मस्तिष्क सूजन, उल्टी का होना शामिल है. बच्चे में इसके लक्षण दिखने के तुरंत बाद उन्हें इलाज की जरूरत होती है. अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो 48-72 घंटों के भीतर मौत भी हो जाती है.  यह वायरस शिशुओं और वयस्क के लिए घातक है.

चांदीपुरा वायरस से बचाव-

साफ-सफाई है जरूरी

चांदीपुरा वायरस से बचने के लिए साफ-सफाई बेहद ही जरूरी होती है. इसलिए बारिश के मौसम में अपने घर और घर के आसपास की जगह को साफ जरूर रखें. 

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सैंडफ्लाई के काटने से बचें

सैंडफ्लाई यानी उड़ने वाले, काटने वाले, रक्त चूसने वाले कीड़ों, जैसे रोग मक्खी और मच्छर से बचाव करें.  मच्छरों से बचने के लिए पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें और सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें. वहीं मक्खी से बचाव के लिए खाना और अन्य चीजों को ढक कर रखें.

चांदीपुरा वायरस से उपचार

चांदीपुरा वायरस की अभी तक कोई टीका या एंटीवायरल उपचार नहीं है. प्रारंभिक लक्षण नजर आने पर अस्पताल में भर्ती होकर सही से इलाज होने पर इस वारयस के प्रभाव से बचा जा सकता है. बुखार को कम करने के लिए उचित दवा दी जाती है. 

गुजरात में क्या हाल?

गुजरात में वर्तमान में वायरल इंसेफेलाइटिस के कुल 33 संदिग्ध मामले आए हैं. इनमें से 30 गुजरात के निवासी हैं और तीन बाहर से आए हैं, जो राज्य के अस्पतालों में भर्ती हैं. कुल 16 मरीजों की मौत इस वायरस से हो गई है. जिसमें एक चार वर्षीय बच्ची है. जबकि कई लोगों का अभी उपचार किया जा रहा है. गुजरात सरकार ने लोगों से सावधानी बरतने की अपील की है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा वर्करों को ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे कर लोगों में जागरूकता फैलाने को कहा है. साथ ही प्रभावित इलाकों में कीटनाशक रोधी पाउडर के छिड़काव का भी निर्देश दिया.

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सरकार मच्छर-मक्खियों द्वारा प्रसारित बीमारियों पर नियंत्रण तथा चांदीपुरा वायरस और इंसेफेलाइटिस मामलों की रोकथाम के लिए एक बड़ा अभियान शुरू करेगी. 

वायरसों का नामकरण कैसे होता है?

आमतौर पर वायरस का नाम उस क्षेत्र के नाम पर रखा जाता था, जहां से उसका प्रथम मामला सामने आता है. महाराष्ट्र के चांदीपुरा से इस वायरस (चांदीपुरा) का प्रथम मामला सामने आया था. इसलिए चांदीपुरा के नाम पर इसका नाम रख दिया गया. इसी तरह इबोला वायरस का नाम अफ्रीका की उस नदी के नाम पर रखा गया है, जहां 1976 में इस बीमारी की पहली बार पहचान हुई थी. हालांकि इबोला वायरस की सटीक उत्पत्ति का अभी पता नहीं है.

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जीका वायरस एक मच्छर से होने वाला वायरस है. जिसकी पहचान सबसे पहले 1947 में युगांडा में रीसस मैकाक बंदर में हुई थी. बाद में 1950 के दशक में अन्य अफ्रीकी देशों में मनुष्यों में ये संक्रमण पाया गया था. युगांडा के जीका वन पर इसका नाम रखा गया.

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