दुनिया

बांग्लादेश में ये आरक्षण की कैसी 'आग', समझिए क्या है 30 फीसदी रिजर्वेशन का पूरा खेल


नई दिल्ली:

बांग्लादेश बीते कई दिनों से आरक्षण की ‘आग’ में झुलस रहा है. अभी तक बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों में भड़की हिंसा में 110 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है जबकि बड़ी संख्या में लोग गंभीर रूप से घायल भी हैं. स्थिति को बिगड़ा देख बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पूरे देश में कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया है. साथ ही सेना को भी मोर्चा संभालने के लिए कह दिया गया है. आपको बता दें कि प्रदर्शनकारी सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर  हैं. 

बांग्लादेश में प्रदर्शन और हिंसा की मुख्य वजह सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग और उसका विरोध करना है. प्रदर्शनकारियों का एक गुट चाहता है कि सरकारी नौकरी में 1971 में हुई आजादी की लड़ाई में शामिल लोगों के वंशजों को मिल रहे आरक्षण को जारी रखा जाए. जबकि एक धड़ा ऐसा है जो सरकारी नौकरी में इस तरह के आरक्षण को जारी रखने के खिलाफ है. उनका मानना है कि इस आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए. इसी वजह से बांग्लादेश में लगातार हिंसा हो रही है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर बांग्लादेश में सरकारी नौकरी के तहत आरक्षण का ये पूरा गणित है क्या ? 

Latest and Breaking News on NDTV

स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलता 30 फीसदी आरक्षण

बांग्लादेश में सरकारी नौकरी में मिल रहे आरक्षण की बात करें तो इसके तहत स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले चुके लोगों के वंशजों को 30 फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. जबकि 10 फीसदी आरक्षण महिलाओं के लिए रखा गया है. इसी तरह जिला कोटा के तहत पिछड़े जिलों में रहने वाले लोगों को भी 10 फीसदी का आरक्षण दिया जाता है. वहीं, धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी और विकलांग लोगों के एक फीसदी का आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. 2018 में विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना सरकार ने आरक्षण व्यवस्था को खत्म कर दिया था. लेकिन इस साल जून में हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले को गलत बता दिया था.

यह भी पढ़ें :-  बांग्लादेश बैंक के गवर्नर, प्रोफेसर, एक्टिविस्ट और छात्र नेता... यूनुस की अंतरिम सरकार के लिए कौन-कौन हुआ शॉर्टलिस्ट?

कोर्ट ने फिर आरक्षण दिए जाने की बात कही थी

आपको बता दें कि सन 2018 में आरक्षण रद्द किए जाने के खिलाफ फैसला बांग्लादेश में रिजर्वेशन का विरोध लंबे अरसे से हो रहा है. सन 2018 में देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद सरकार ने उच्च श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण रद्द कर दिया था. इस साल पांच जून को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने सन 2018 में सरकार के आरक्षण रद्द करने के सर्कुलर को अवैध बताया. कोर्ट के इस फैसले से स्वाभाविक रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण फिर से लागू हो जाएगा. 

Latest and Breaking News on NDTV

रजाकार शब्द का इस्तेमाल से भी भड़के लोग 

कहा जा रहा है बीते दिनों सरकार की तरफ से जब प्रदर्शनकारियों को रजाकार कहकर संबोधित किया गया तो इससे भी हालात और तेजी से बिगड़े. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि इस एक शब्द से बांग्लादेश में लोगों को दिक्कत क्यों हुई है. आपको बता दें कि बांग्लादेश में रजाकार एक अपमानजनक शब्द माना जाता है. कहा जाता है कि रजाकार शब्द का अपना एक पुराना इतिहास है. दरअसल, इस शब्द को लेकर सबसे पहले 1971 में ही इस्तेमाल किया गया था. 

Latest and Breaking News on NDTV

इसके पीछे की कहानी कुछ ऐसी है कि सन 1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम हुआ था. उस दौरान पाकिस्तानी सेना तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले बांग्लादेश के लोगों पर भारी अत्याचार कर रही थी. तब पाकिस्तान ने बांग्लादेश में ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स बनाई थी. कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा समर्थित पाकिस्तान के सशस्त्र बलों ने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने और लोगों को आतंकित करने के लिए तीन मुख्य मिलिशिया बनाए थे- रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स. पाकिस्तान सशस्त्र बलों के समर्थन से इन मिलिशिया समूहों ने बंगाल में नरसंहार किए और बंगालियों के खिलाफ बलात्कार, प्रताड़ना, हत्या जैसी जघन्य वारदातें की थीं. वे पृथक बांग्लादेश के गठन के विरोधी थे. 

यह भी पढ़ें :-  अमेरिका का क्यों आ रहा नाम, बांग्लादेश में तख्तापलट का असली खिलाड़ी कौन?

Latest and Breaking News on NDTV

बांग्लादेश की स्वतंत्रता के विरोधी थे रजाकार

बांग्लादेश में सन 1971 में जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ सदस्य मौलाना अबुल कलाम मोहम्मद यूसुफ ने जमात के 96 सदस्यों की रजाकारों की पहली टीम बनाई थी. बंगाली में ‘रेजाकार’ शब्द को ‘रजाकार’ कहा गया. इन रजाकारों में गरीब लोग शामिल थे. वे पाकिस्तानी सेना के मुखबिर बना दिए गए थे. उनको स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ लड़ने के लिए हथियार भी दिए गए थे. इनमें से ज्यादातर बिहार के उर्दू भाषी प्रवासी थे जो भारत की आजादी और बंटवारे के दौरान बांग्लादेश चले गए थे. वे पाकिस्तान के समर्थक थे. वे बांग्लादेश की स्वतंत्रता के विरोधी थे. उन्होंने बंगाली मुसलमानों के भाषा आंदोलन का भी विरोध किया था.


NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button