कैसी करवट लेगी बिहार में नीतीश कुमार की राजनीति, एक तरह क्यों नहीं बोल रहे हैं लालू और तेजस्वी
नई दिल्ली:
बिहार की राजनीति में इन दिनों कयासों का बाजार एक बार फिर गर्म है. चर्चा इस बात की है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलने वाले हैं. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश को एक बार फिर ऑफर दिया है. इसके बाद से इन चर्चाओं को पंख लग गए हैं. हालांकि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लालू के इस ऑफर को बहुत तवज्जो नहीं दी. उन्होंने कहा कि नीतीश जी के लिए उनके दरवाजे अभी भी बंद हैं. वहीं इनसे जुड़े सवालों पर नीतीश कुमार ने मुस्करा कर हाथ जोड़ लिए. नीतीश की इस अदा से चर्चाओं को और बल मिला, क्योंकि इससे पहले वो इस तरह के सवालों का खुलकर जवाब देते रहे हैं. वहीं उनकी पार्टी ने लालू यादव के बयानों को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी है. उसका कहना है कि वो पहले भी एनडीए के साथ थी और आगे भी रहेगी.
पिछले करीब दो दशक से बिहार में नीतीश कुमार और सीएम की कुर्सी एक दूसरे का पर्याय बन गए हैं. यहां तक कि नीतीश कुमार ने जब-जब पाला बदला वो मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपने साथ ही ले गए हैं. दोनों ही बार उन्होंने विभागों या उपमुख्यमंत्री पद को लेकर ही समझौता किया है. उनके साथ समझौता करने वाली बीजेपी हो या आरजेडी दोनों इस बात पर सहमत रही है. उन्हें जब भी अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में नजर आती है, वो अपना पाला बदल लेते हैं. बिहार में एक बार फिर उनके पाला बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं.
नीतीश कुमार की कलाबाजियां
मणिकांत ठाकुर पिछले करीब पांच दशक से बिहार की राजनीति पर नजर रखे हुए हैं. नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने की चर्चाओं पर वो कहते हैं कि बिहार में जो राजनीति हो रही है, वह राजनीति का सबसे निचला स्तर है. अगर नीतीश कुमार फिर पाला बदलते हैं तो वो दगाबाजी का रिकॉर्ड बनाएंगे. उन्होंने कहा कि अगर नीतीश के अंदर थोड़ी सी भी नैतिकता बची होगी तो फिर पाला बदलने का काम नहीं करेंगे. वो कहते हैं कि अब अगर अपने अंतिम चरण में ऐसा करते हैं तो यह इतिहास में दर्ज होगा और लोग कहेंगे कि नीतीश कुमार पाला बदलने में अव्वल रहे. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार सार्वजनिक तौर पर 2020 के चुनाव में कहा था कि यह उनका अंतिम चुनाव है. यह चुनाव परिणाम में नजर भी आया था कि वो 43 पर सिमट कर रह गए थे. लेकिन वो बार-बार अपनी ही बात काट देते हैं.
बिहार के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने गुरुवार को पद और गोपनियता की शपथ ली. राजभवन में नीतीश कुमार ने गुरुवार को लालू प्रसाद के प्रस्ताव पर गोलमोल जवाब दिया. उन्होंने हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए मीडिया से कहा,”क्या बोल रहे हैं.”उनसे जब यह पूछा गया कि क्या राज्य सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी, इस सवाल पर नवनियुक्त राज्यपाल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा,”इस तरह के सवाल पूछने का यह सही समय नहीं है. आज खुशी का दिन है. हमें सिर्फ अच्छी चीजों के बारे में बात करनी चाहिए.” उस समय वहां उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी खड़े थे.वहीं नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू यादव की टिप्पणियों पर कहा कि राजद सुप्रीमो ने केवल मीडिया की जिज्ञासा को संतुष्ट करने का प्रयास किया था.उन्होंने कहा,”मैंने पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर दिया है.” लेकिन इस अवसर पर हुई नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की मुलाकात भी काफी कुछ कह रही थी, खासकर जिस तरह से नीतीश ने तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर उनका हालचाल पूछा.
नीतीश कुमार को लालू यादव का ऑफर
लालू यादव ने बुधवार को एक टीवी चैनल से कहा था कि नए साल में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक सरकार (राजग) सरकार की विदाई तय है.उन्होंने नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खुला रखने की भी बात कही थी. लालू के इस बयान से उन चर्चाओं को बल मिला जिसमें नीतीश के फिर से महागठबंधन में शामिल होने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं.लेकिन तेजस्वी यादव लगातार ऐसी किसी संभावना से इनकार करते रहे हैं. नीतीश कुमार को ऑफर देने वालों में केवल राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं है, कांग्रेस भी उन्हें ऑफर दे रही है.कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने गुरुवार को कहा कि अगर गांधी के अनुयायी गोडसे के अनुयायियों से खुद को अलग कर लेते हैं, तो हम उनके साथ हैं.
लालू यादव और तेजस्वी के बयानों में विरोधाभास के सवाल पर मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि दरअसल दोनों नेता चाहते हैं कि नीतीश कुमार उनके साथ आ जाएं, लेकिन वो चाहते हैं कि वो भारी दबाव में आएं.इससे उनको फायदा होगा, वह यह कि नीतीश मुख्यमंत्री पद पर कोई समझौता नहीं कर पाएंगे. वो तेजस्वी के मातहत भी काम कर सकें. इसके साथ ही ठाकुर यह भी चाहते हैं कि बीजेपी की ओर से उनकी सम्मानित विदाई का रास्ता तय हो जाए. लेकिन बीजेपी अब उन्हें बहुत भाव भी नहीं दे रही है. यही वजह है कि इस तरह की खबरें आ रही हैं.
लालू यादव को जेडीयू का जवाब
बिहार की राजनीति में एक समय राजीव रंजन सिंह ललन को नीतीश से अधिक लालू यादव का करीबी माना जाता था. उनसे जब लालू प्रसाद यादव के बयान पर पूछा गया तो उन्होंने कहा,”एनडीए मजबूत है. जेडीयू और बीजेपी एकजुट हैं. यह एक स्वतंत्र समाज है और कोई भी जो चाहे कह सकता है. लालू जी को अपनी बातों पर ज्यादा कुछ कहना चाहिए.
बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा के चुनाव होने हैं. अब हमें इंतजार करना होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति किस करवट बैठती है.
ये भी पढ़ें: ‘2025 में लालू यादव का राजनीतिक करियर…’,आखिर JDU ने क्यों कही ये बात, पढ़ें क्या है पीछे की कहानी