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सरकार कब ले सकती है आपकी जमीन? जानें सुप्रीम कोर्ट ने खींची क्या लक्ष्मण रेखा

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में उन संवैधानिक आवश्यकताओं को रेखांकित किया जिन्हें राज्य द्वारा निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने से पहले पूरा किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए कहा है कि व्यक्ति को यह सूचित करना राज्य का कर्तव्य है कि वह उसकी संपत्ति अर्जित करना चाहता है. कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण पर आपत्तियों को सुनना राज्य का कर्तव्य है. साथ ही साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि अधिग्रहण के अपने निर्णय के बारे में व्यक्ति को सूचित करना राज्य का कर्तव्य है.

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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह यह बताए कि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए ही है. कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि भूमि अधिग्रहण करते समय भूमि मालिक, उचित मुआवजे का अधिकार रखता है.

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना भूमि का अधिग्रहण कानून के अधिकार से बाहर होगा. अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 300ए द्वारा भूमि मालिक को प्रक्रियात्मक अधिकार प्रदान किए जाते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और कार्यवाही को तयसीमा के अंदर संचालित करने का राज्य का कर्तव्य है. सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण करते समय और संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत एक नागरिक को संपत्ति के अधिकार से वंचित करते समय सरकार या उसके उपकरणों द्वारा पालन किए जाने वाले प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार की

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कोलकाता नगर निगम से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील खारिज करते समय ये बातें कहीं . हाईकोर्ट ने कोलकाता नगर निगम अधिनियम की धारा 352 के तहत नागरिक निकाय द्वारा भूमि अधिग्रहण को रद्द कर दिया था. शीर्ष अदालत ने निगम पर पांच लाख का जुर्माना भी किया है.

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