बिहार की राजनीति में कब उतर रहे हैं प्रशांत किशोर, किस वोट वैंक पर गड़ाए हुए हैं अपनी नजर
नई दिल्ली:
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर का नाम भारत के लोगों ने उस समय जानना शुरू किया जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 का चुनाव जीता. चुनाव के बाद कहा गया कि मोदी के चुनावी कैंपेन की डिजाइन पीके ने तैयार की थी.पीके ने इससे पहले 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए काम किया था. लेकिन 2014 के बाद पीके और बीजेपी की राहें जुदा हो गईं.इसके बाद पीके का काम चल निकला. वो देशभर में अलग-अलग दलों का राजनीतिक कैंपने डिजाइन करने लगे.राजनीतिक कैंपेन डिजाइन करते-करते पीके को राजनीति का चस्का लग गया. अब उन्होंने कहा है कि गांधी जयंती पर वो पटना में अपनी पार्टी का ऐलान करेंगे.पीके की इस घोषणा से बिहार की राजनीति में हलचल बढ़ गई है.
क्या है प्रशांत किशोर की रणनीति
प्रशांत किशोर ने कहा है कि वो 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन एक करोड़ लोगों के साथ अपनी पार्टी लांच करेंगे. पार्टी गठन का जमीनी काम करने के लिए वो पिछले 650 से अधिक दिनों से बिहार के गांवों, कस्बों और शहरों की खाक छान रहे हैं. वो लगातार पदयात्रा कर रहे हैं.
उनका दावा है कि अबतक जनसुराज पदयात्रा राज्य के 235 ब्लॉकों के 1319 पंचायतों के 2697 गांवों से होकर गुजर चुकी है.उनका कहना है कि कुशासन से परेशान बिहार की जनता बदलाव चाहती है. लोगों को जन सुराज में एक विकल्प दिख रहा है. उन्होंने 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. इससे पहले वो लिटमस टेस्ट के लिए अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी किस्मत आजमाएंगे. इसकी घोषणा उन्होंने कर दी है.
पीके की पार्टी में शामिल हो रहे हैं कौन से नेता
पार्टी बनाने की घोषणा के बाद से पीके के साथ पांच बार सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे आरजेडी नेता देवेंद्र प्रसाद यादव, जेडीयू के पूर्व सांसद मुनाजिर हसन, आरजेडी के पूर्व एमएलसी रामबली सिंह चंद्रवंशी,पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉक्टर जागृति जैसे लोगों के साथ-साथ कुछ पूर्व नौकरशाहों ने भी पीके का दामन थामा है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि पीके के साथ जुड़े अधिकांश नेता अपनी ही पार्टी में हाशिए पर चल रहे थे. पीके दरअसल बिहार की राजनीति में एनडीए और महागठबंधन के बाद खुद को तीसरे विकल्प के रूप में पेश करना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें इन्ही दलों के नेताओं से आस है. वो इन नेताओं के जरिए इन दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं.
बिहार की राजनीति में जाति
बिहार में जहां पूरी राजनीति जाति और जातियों के गठजोड़ के ईर्द गिर्द ही घूमती है. उस बिहार में पीके युवाओं, बुजुर्गों, दलितों, महादलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, मुस्लिमों और महिलाओं की हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं. उन्होंने घोषणा की है कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 मुसलमानों को टिकट देगी.इसके अलावा उन्होंने कहा है कि पार्टी चलाने वाली 25 लोगों की टीम में भी 4-5 मुसलमान रखे जाएंगे. इसी तरह की घोषणाएं उन्होंने महिलाओं के लिए भी की है. यहां वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह पर चलते दिख रहे हैं. वो भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनको आरक्षण देने का दांव चलते रहे हैं.पीके ने महिलाओं को भी 40 टिकट देने का वादा किया है.इस तरह से पीके ने आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं.बिहार में मुसलमान आरजेडी के साथ खड़े हैं और नीतीश की लोकप्रियता महिलाओं में अधिक मानी जाती है.
पीके ने अपनी पदयात्रा के दौरान यह बात बार-बार कही है कि बिहार के लोग अब किसी के बेटा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं बल्कि अपने बेटे के भविष्य के लिए वोट देंगे. इस तरह वो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हैं. वो परिवारवाद को नकारते हैं. लेकिन पटना में आयोजित महिलाओं के सम्मेलन में उन्होंने अपनी पत्नी डॉक्टर जान्हवी दास का परिचय जनता से करवाया. इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि पीके की पत्नी भी राजनीति में सक्रिय होंगी. ऐसे में पीके पर भी परिवारवाद के आरोप पार्टी शुरू होते ही लग सकते हैं.
क्या है प्रशांत किशोर की विचारधार
पीके ने अपनी पदयात्रा गांधी जयंती के दिन शुरू की थी. और पार्टी की घोषणा भी गांधी जयंती के दिन ही करने वाले हैं. लेकिन उन्होंने अपनी विचारधारा और पार्टी की नीतियों को सार्वजनिक नहीं किया है. लेकिन बातचीत में वो गांधी, आंबेडकर, लोहिया और जेपी की विचारधारा की बात करते रहते हैं. जिस अनुपात में पीके मुसलमानों को टिकट देने की बात कर रहे हैं. उससे लोहियावादी समाजवादियों के उस नारे की झलक मिल रही है, ‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उतनी उसकी भागीदारी’. इसके अलावा पीके अपने भाषणों में पलायन, गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाकर लोगों से जुड़ने की कोशिश करते नजर आते हैं. बिहार में दूसरे दलों का वोट बैंक तोड़कर अपनी राजनीति चमकाने की कवायद पहले भी कई पार्टियों ने की है. लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली है. अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि बिहार की चुनावी राजनीति में प्रशांत किशोर कितने सफलता मिलती है.
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