देश

दिल्ली में महिलाओं को कब से मिलेंगे 2500 रुपये? अधिकारी ने बताई पूरी प्रक्रिया


नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली चुनावों में वादा किया था कि उसकी सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में महिलाओं को 2500 रुपये देने का प्रस्ताव पास किया जाएगा और 8 मार्च यानी महिला दिवस और सरकार के एक महीने पूरे होने पर महिलाओं के खाते में यह पैसे मिलने लगेंगे. यह वादा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिल्ली में अपनी एक सभा में किया था. लेकिन सवाल है कि क्या आज से 3 दिन के अंदर महिलाओं के खाते में रुपये मिल पाएंगे या ये भी एक चुनावी वादा बनकर रह जाएगा. 

26 साल बाद दिल्ली में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की है, तो वहीं पहली बार आम आदमी पार्टी विपक्ष में बैठी है. सरकार बनने के पहले ही दिन से आम आदमी पार्टी सदन से लेकर सड़क तक 2500 रुपए देने के मुद्दे को उठा रही है. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने विधानसभा में कैग रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए कहा, हमने दिल्लीवासियों से जितने भी वादे किए है उन्हें पूरा करेंगे. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष आतिशी ने कहा, बीजेपी का महिलाओं को 2500 रुपये देना का की इरादा नहीं है.

क्या है प्रक्रिया और कितने महीने लगेंगे?
अब सवाल खड़ा होता है कि क्या महिलाओं को 8 मार्च को 2500 रुपये मिल पाएंगे या नहीं? यही सवाल दिल्ली के लाखों महिलाओं के मन में भी हैं. इसलिए हमने इस सवाल का जवाब लेने के लिए दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल से बात की. सहगल बताते हैं, “सबसे पहले इस योजना के लिए बजट में प्रावधान करना पड़ेगा. इसके बाद, योजना तैयार होगी. योजना में पात्रता और वर्ग बनाए जाएंगे जैसे कि योजना का लाभ किसको देना है. योजना को आगे फाइनेंस विभाग के पास भेजा जाएगा. उसके बाद कैबिनेट तैयार होगा जिसकी एक कॉपी एलजी के पास जाती है और एक कापी कैबिनेट बैठक में रखा जाता है. कैबिनेट से इसे पास करने के बाद एलजी की मंजूरी के लिए योजना को भेजा जाएगा. मंजूरी मिलने के बाद इसे प्रकाशित किया जाता है और फिर पात्र लोगों की सूची बनाने का काम शुरू होगा. अगर अधिकारी बहुत तेजी और अच्छे से भी काम करते है तो उन्हें कम से कम 6 महीने लगेंगे इस योजना का लागू करने में.”

यह भी पढ़ें :-  तब मॉरिशस के पीएम प्रयागराज कुंभ में बिना स्नान किए लौट गए थे: CM योगी ने दिलाया याद

ओमेश सहगल आगे कहते है कि, राजनीतिक लोग कुछ भी बोलते रहते है लेकिन पॉलिसी बनने में समय लगता है. चुनाव में वादा करते समय 4 लोग बैठकर मैनिफेस्टो बनाते है लेकिन पॉलिसी बनते समय बहुत से स्टेकहोल्डर शामिल होते है. पात्रता सूची बनाने की प्रकिया लंबी होती है कई स्तर पर उसका वेरिफिकेशन होता है.

आम आदमी पार्टी के पहली कैबिनेट में प्रस्ताव पारित नहीं करने को लेकर वह कहते हैं, “जो लोग पूछ रहे हैं कि पहली मीटिंग में क्यों नहीं आई.. यह सवाल पूछना ही हास्यास्पद हैं क्योंकि पहली कैबिनेट में यह आ ही नहीं सकती थी. फिर तो पार्टी का मैनिफेस्टो ही रिपीट हो जाता और कुछ नहीं हो सकता था.” 

महिला योजना के लिए कहां से आएगा फंड?
 सहगल कहते है, विपक्ष में रहने वाली पार्टी को नहीं पता होता है कि राज्य की आर्थिक स्थिति कैसी है, यह तो सत्ता में आने के बाद ही पता चलता है. इस तरह की योजना बिना केंद्र की मदद से दिल्ली में लागू करना मुश्किल है क्योंकि केंद्र शासित राज्य होने के कारण केंद्र से कोई मदद नहीं मिलती. वहीं अन्य मद से जो सरकार को कमाई हो रही है उससे इतना फंड नहीं मिलने वाला है कि 2500 रुपए देने की योजना को लागू किया जा सके. 

पूर्व मुख्य सचिव के मुताबिक, “केंद्र सरकार सीधे तौर पर तो मदद न करें लेकिन यमुना की सफाई और पर्यावरण को लेकर दिल्ली सरकार जो खर्च करने वाली थी वह सारा पैसा केंद्र सरकार दे दें तो दिल्ली सरकार का फंड बच जाएगा जिसका उपयोग वह महिला योजना के लिए कर सकते हैं.” 

दिल्ली में डीडीए के पास काफी फंड है. आम आदमी पार्टी की सरकार ने डीडीए से रिश्ते नहीं बनाए लेकिन अब केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार आ जाने से डीडीए से सस्ते दरों पर लोन लिया जा सकता है. डीडीए के अध्यक्ष दिल्ली के उपराज्यपाल है, ऐसे में अगर सरकार, डीडीए से फंड चाहे तो मिलने में आसानी होगी. सहगल बताते हैं कि, शीला दीक्षित के समय डीडीए से करोड़ो रुपए को लोन लेकर विकास काम किए गए थे.

यह भी पढ़ें :-  12 राज्यों में सत्ता हासिल करने की राह पर BJP, कांग्रेस 3 प्रदेशों में सीमित

वह आगे बताते है, दिल्ली में रेवेन्यू बढ़ाना मुश्किल है. क्योंकि जीएसटी से दिल्ली बहुत कमाई होती है, उसमें ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद करना बेमानी है. शराब नीति पर इतना बवाल हो जाने के कारण कोई सरकार उसमें हाथ डालने से बचेगी, ट्रांसपोर्ट टैक्स और अन्य टैक्स सरकार बढ़ा सकती है लेकिन उससे ज्यादा कमाई नहीं होगी. ऐसे में दिल्ली सरकार को रेवेन्यू बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना होगा.   

चुनावी वादे सिर्फ वादे बनकर रह जाते है?
हमारे देश में चुनावी वादों को लेकर राजनीतिक पार्टियों का रवैया बहुत अच्छा नहीं रहा है. खासकर अगर पार्टी सत्ता में आ जाती है तो वह वादों को लेकर अपने हिसाब से काम करती है या यूं कहें कि जब चुनाव आने वाला होता है तो सरकार अपना पिटारा खोलती है. जो आम आदमी पार्टी दिल्ली में बीजेपी पर वादा पूरा करने का दवाब बना रही है उसकी खुद की सरकार ने पंजाब में अभी तक महिलाओं को 1 हजार रुपए नहीं दे पाई जबकि वादा सरकार बनने के बाद का था. 

बात सिर्फ बीजेपी और आम आदमी पार्टी तक सीमित नहीं है. कांग्रेस ने भी कई राज्यों में जो वादे किए थे वो अभी पूरे नहीं हुए है. मसलन, कर्नाटक में बेरोजगारों को 3000 रुपए देना का वादा पूरा नहीं हुआ. मध्यप्रदेश में किसानों की कर्ज माफी का वादा पूरा नहीं हुआ. केंद्र सरकार ने 2 करोड़ सालाना नौकरी का वादा दिया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने खड़े किए थे सवाल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की स्कीमों की घोषणा को लेकर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था, मुफ्त मिलने के कारण लोग काम करने से बच रहे हैं और देश के विकास में हिस्सा नहीं ले रहे हैं. जस्टिस बीआर गवई ने कहा था, “दुर्भाग्य की बात है कि मुफ्त में मिलने वाली चीजों के कारण…. लोग काम करने से बचने लगे हैं. उन्हें मुफ्त में राशन मिल रहा है. उन्हें बिना कुछ काम किए ही पैसे मिल रहे हैं.”

यह भी पढ़ें :-  Budget 2024: राष्ट्रपति मुर्मू ने बजट पेश करने से पहले दही-चीनी खिलाकर वित्त मंत्री को दी शुभकामनाएं, जानें महत्व

वैसे चुनावों में राजनीतिक पार्टियां जीतने के लिए कई ऐसे वादे करती है जिन्हें पूरा करना उनके लिए मुश्किल है. लेकिन सत्ता का सुख पाने के लिए वादे किए जाते है. ये भी बहुत बड़ा बहस का विषय है कि चुनावी वादों पर नियम बने या उन वादों की निगरानी हो. खैर देखना होगा कि दिल्ली में बीजेपी अपने वादों को कैसे पूरा करती है.

ये भी पढ़ें-: 

दिल्ली की CM ने AAP के स्वास्थ्य मॉडल को बताया ‘बीमार’, कहा- 10 सालों में सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button