देश

पूर्वांचल की लड़ाई में कहां खड़ी हैं पिछड़ी जातियां, क्या है BJP, सपा और BSP का OBC प्लान

पूर्वांचल में अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को क्रमश:कुर्मी, मल्लाह/केवट और राजभरों की राजनीतिक करने वाला दल माना जाता है. इस चुनाव में ये तीनों दल बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं समाजवादी पार्टी का मुख्य आधार भी ओबीसी में ही माना जाता है. सपा इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है.

बीजेपी के सहयोगी दल किसकी राजनीति करते हैं?

बीजेपी ने अपने गठबंधन सहयोगी सुभासपा को एक सीट दी है. सुभासपा को घोसी सीट मिली है.वहां से पार्टी प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर मैदान में हैं. वहां उनका मुकाबला सपा के राजीव राय और बसपा के बालकृष्ण चौहान से है.घोसी में ये तीन सरनेम ही चुनाव की दिशा तय करते हैं.राजभर को इस सीट पर कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है. इससे पहले घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार और कद्दावर ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान को हार का सामना करना पड़ा था. उन्हें सपा के सुधाकर सिंह ने मात दी थी. इस जीत से सपा के हौंसले बुलंद हैं.सुभासपा बिंद, कुम्हार, प्रजापति, कुशवाहा, कोइरी की राजनीति करती है. ऐसे में बीजेपी को उम्मीद है कि सुभासपा उसे पूर्वांचल के दूसरे जिलों में भी मदद पहुंचाएगी. 

अंबेडकरनगर में बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में सभा करते सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर.

उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी उस समय चर्चा में आ गई थी, जब गोरखरपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उसने बीजेपी को हरा दिया था. वहां से निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद के बेटे और सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ल को हरा दिया था.यह जीत कितनी बड़ी थी, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि बीजेपी 29 साल बाद गोरखपुर में हारी थी. बाद में 2019 के चुनाव से पहले ही बीजेपी ने निषाद पार्टी को अपने साथ मिला लिया. बीजेपी ने प्रवीण निषाद को गोरखपुर के पड़ोसी जिले संतकबीर नगर से उम्मीदवार बनाया. वो जीते हैं. निषाद पार्टी उसके बाद से ही बीजेपी के साथ है. 

यह भी पढ़ें :-  The HindkeshariProfit Channel लॉन्च- देखें कारोबार जगत की तमाम छोटी बड़ी हलचल और कहां निवेश होगा बेहतर

विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी के छह विधायक जीते थे. हालांकि निषादों के नेतृत्व का दावा करने वाली निषाद पार्टी के विधायकों में केवल एक ही निषाद विधायक है, बाकी के पांच सवर्ण जातियों के हैं. निषाद पार्टी कई सीटों पर अपना प्रभाव होने का दावा करती है. अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि उसका दावा कितना सही है.

अनुप्रिया पटेल की राजनीतिक परीक्षा

यादव के बाद कुर्मी को उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति मानी जाती है. उत्तर प्रदेश में इस जाति का नेतृत्व करने का दावा अपना दल (एस)करता रहा है. अपना दल (एस) विधानसभा में तीसरा सबसे बड़ा दल है. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उसके 13 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं. पार्टी प्रमुख अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर सीट से जीती थीं. मिर्जापुर की पड़ोसी राबर्ट्सगंज सीट पर भी अपना दल को जीत मिली थी. अनुप्रिया एक बार फिर मिर्जापुर के चुनाव मैदान में हैं. वहां सपा ने भदोही से बीजेपी सांसद रमेश बिंद को टिकट दे दिया है. जातिय समीकरणों को देखते हुए मिर्जापुर की लड़ाई कांटे की हो गई है. ऐसे में पार्टी प्रमुख अनुप्रिया के सामने अपनी सीट बचाने के साथ-साथ दूसरी सीटों पर भी अपनी पार्टी के वोट को बीजेपी को ट्रांसफर कराने की जिम्मेदारी है.

अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल.

अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल.

अनुप्रिया की सगी बहन डॉक्टर पल्लवी पटेल अपनी मां कृष्णा पटेल के साथ अपना दल (कमेरावादी) चलाती हैं. पल्लवी ने 2022 का विधानसभा चुनाव कौशांबी जिले की सिराथू सीट से जीता था. उन्होंने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को मात दी थी. राज्यसभा चुनाव में मतभेद होने के बाद उन्होंने अपनी राहें सपा से जुदा कर ली थीं. इस चुनाव में उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ पिछड़ा, दलित, मुस्लिम (पीडीएम) न्याय मोर्चा बनाया है. अपना दल (कमेरावादी) प्रदेश की 20 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है.

यह भी पढ़ें :-  कोविड के दौरान 'रणनीतिक नेतृत्व' के लिए प्रधानमंत्री मोदी को बारबाडोस का प्रतिष्ठित पुरस्कार

पूर्वांचल में कैसी है सपा की रणनीति?

साल 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सफलता के पीछे ओबीसी का बहुत बड़ा हाथ था.सपा 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल आजमगढ़ सीट ही जीत पाई थी, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल गाजीपुर, आजमगढ़ और जौनपुर जिले में ही अच्छी सफलता मिली थी. इससे सबक लेते हुए सपा ने इस बार टिकट बंटवारे में होशियारी दिखाई है. यादवों की पार्टी का ठप्पा हटाने के लिए सपा ने केवल 5 यादवों को ही टिकट दिए हैं.ये सभी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के परिवार से हैं.

वाराणसी में चुनाव प्रचार करते राहुल गांधी और अखिलेश यादव.

वाराणसी में चुनाव प्रचार करते राहुल गांधी और अखिलेश यादव.

सपा ने इस बार पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक वोटों को ध्यान में रखते हुए अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा दिया है. सपा ने पूर्वांचल में 10 से अधिक गैर यादव ओबीसी को टिकट दिए हैं. पार्टी ने केवल तीन टिकट ही अगड़ी जाति के लोगों को दिए हैं.वहीं कांग्रेस के हिस्से में आई सीटों पर उसने एक दलित, एक ओबीसी और दो अगड़ी जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने ओबीसी वोटों में हिस्सेदारी करने की कोशिश की है. केंद्रीय राज्य मंत्री पंकज चौधरी के खिलाफ उसने अपने विधायक वीरेंद्र चौधरी को मैदान में उतार दिया है. इससे कांग्रेस को वहां कुर्मी वोटों में बंटवारे की उम्मीद है. 

Latest and Breaking News on NDTV

दलितों और मुसलमानों के सहारे बसपा

पूर्वांचल की राजनीति में कभी मजबूत दखल रखने वाली बसपा ने इस बार दलित मुसलमान कार्ड खेला है.बसपा ने आधा दर्जन सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार दिए हैं. बसपा ने अपने केवल एक सांसद को टिकट दिया. उसने जौनपुर में अपने सांसद श्याम सिंह यादव को फिर मैदान में उतारा है. इसके अलावा बीसपी ने घोसी,सलेमपुर, बलिया और चंदौली में ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं. 
अब 2024 की लड़ाई में किस पार्टी की रणनीति सफल होती है, इसका पता चार जून को ही चल पाएगा, जब नतीजे आएंगे.

यह भी पढ़ें :-  Loksabha Election 2024 : कार्यालय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस-25-04-2024

ये भी पढ़ें: दिल्ली में अजब मौसमः चुरु-फलोदी को पीछे छोड़ पारा 52.3 पार, कुछ जगह बारिश की बूंदें


NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button