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देश

शिक्षा के क्षेत्र में कहां खड़े हैं उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु, क्या कहती है ASER की रिपोर्ट


नई दिल्ली:

शिक्षा पर केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच तनातनी जारी है. इस विवाद पर राजनीति भी तेज हो गई है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु सरकार की नीतियों का खमियाजा वहां के युवाओं और बच्चों को भुगतना पड़ रहा है. तमिलनाडु ने केंद्र सरकार की कई योजनाओं को अपने यहां लागू करने से इनकार कर दिया है. उसने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र की ओर से शुरू किए गए निपुण भारत अभियान को अपने यहां पूरी तरह से लागू नहीं किया है. इस वजह से तमिलनाडु के बच्चे पीछे रह गए हैं. निपुण भारत की तरह तमिलनाडु ने अपने यहां जवाहर नवोदय विद्यालय भी नहीं खोले हैं. इस वजह से वहां के ग्रामीण इलाकों के हजारों बच्चे गुवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल करने से पीछे रह गए. 

केंद्र सरकार बनाम तमिलनाडु सरकार

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके के झूठ का पर्दाफाश भी कर दिया है. उनके मुताबिक डीएमके पहले तो केंद्र सरकार पर फंड रोकने का आरोप लगाती है, लेकिन वह उसके साथ ही पीएमश्री विद्यालय के लिए अपनी सहमति देने से इनकार कर देती है. प्रधान का आरोप है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केवल हिंदी का विरोध करने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये ठुकरा दिए. उनका कहना है कि डीएमके का एजेंडा तमिल गौरव नहीं बल्कि 2026 के चुनाव में अपना अस्तित्व बचाना है. 

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए तमिलनाडु की डीएमके सरकार केंद्र सरकार की योजनाएं नहीं लागू कर रही है.

एक तरफ जहां डीएमके के नेता खुद उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं,  वहीं दूसरी ओर वो उन सुधारों को रोक रहे हैं जिससे तमिलनाडु के युवाओं को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. गैर सरकारी संगठन प्रथम की ओर से तैयार एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) को भारत में शिक्षा के क्षेत्र का सबसे बड़ा सर्वे माना जाता है. प्रथम एक गैर सरकारी संस्थान है. इस सर्वे में पांच से 16 साल तक के बच्चों को शामिल किया जाता है. इसमें घर घर जाकर बच्चों से सर्वे के फार्म भरवाए जाते हैं.इन बच्चों में स्कूल में पढ़ रहे बच्चे और स्कूल छोड़ चुके बच्चे शामिल होते हैं. इससे देश के बच्चों में सीखने के स्तर का पता चलता है. असर की रिपोर्ट से पता चलता है कि डीएमके सरकार की जिद का प्रभाव वहां की शिक्षा पर पड़ रहा है. 

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तमिलनाडु के बारे क्या कहती है ASER की रिपोर्ट

2024 की असर रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों के बच्चों की साक्षरता और गणितीय ज्ञान में बड़ी गिरावट देखी गई. साल 2022 की तुलना में हुए मामूली सुधार के बावजूद राज्य के शैक्षणिक संकट का पता चलता है. इसका परिणाम यह हुआ है कि तमिलनाडु निपुण भारत और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू करने वाले उत्तर प्रदेश से कई मामलों में पिछड़ गया है. 

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असर की रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 में तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में कक्षा तीन में पढ़ने वाले 75 फीसदी छात्र कक्षा दो की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते थे. जबकि 2022 में यह संख्या घटकर 62.8 फीसदी रह गई तो 2024 में 62.2 फीसदी. वहीं अगर बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2018 में कक्षा तीन के 62 फीसदी बच्चे कक्षा दो की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते थे. वहीं 2022 में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 62.6 फीसदी हो गई तो 2024 में 67.3 फीसदी हो गई. यानी कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में 5.1 फीसदी की अंतर है.

उत्तर प्रदेश से कैसे पिछड़ गया तमिलनाडु

साक्षरता और संख्या ज्ञान के कौशल के सार्वभौमिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के मुताबिक निपुण भारत अभियान शुरू किया है. इसका लक्ष्य कक्षा तीन तक के बच्चों को पढ़ने-लिखने के साथ और गणित का बेसिक ज्ञान देना है. तमिलनाडु ने इस अभियान को आंशिक तौर पर लागू किया है. वहीं उत्तर प्रदेश की सरकार निपुण भारत के साथ-साथ मिशन प्रेरणा भी चला रही है. वहां 2018 में कक्षा तीन के केवल  12.3 फीसदी छात्र ही कक्षा दो के पाठ पढ़ सकते थे. वहीं 2024 में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 27.9 फीसदी हो गई.  वहीं तमिलनाडु में निपुण भारत मिशन की वजह से इसमें सुधार आया है. आंकड़ों के मुताबिक वहां 2018 में कक्षा तीन के 26 फीसदी छात्र कक्षा दो का पाठ पढ़ सकते थे. वहीं साल 2024 में यह संख्या बढ़कर 37 फीसदी हो गई.

स्कूल में पढ़ाई करते तमिलनाडु के एक स्कूल के छात्र.

स्कूल में पढ़ाई करते तमिलनाडु के एक स्कूल के छात्र.

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यह नहीं तमिलनाडु के बच्चे साधारण गणित में भी पीछे नजर आए. असर की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में कक्षा आठ के 60 फीसदी बच्चे साधारण गुणा-भाग भी नहीं कर पाए. यह हाल तब रहा, जब तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने बच्चों को पढ़ने के लिए टैबलेट उपलब्ध कराए हैं. वहीं अगर डिजिटल एजुकेशन पर बजट खर्च करने की बात करें तो इस मामले में भी तमिलनाडु काफी पीछे है. इस मामले में सबसे आगे केरल है, जिसने 12.5 फीसदी बजट डिजिटल एजुकेशन पर खर्च किया. वहीं कर्नाटक ने 10 फीसदी तो गुजरात ने नौ फीसदी बजट इस मद में खर्च किया. लेकिन तमिलनाडु केवल पांच फीसदी बजट ही डिजिटल एजुकेशन पर खर्च करता है. 

जवाहर नवोदय विद्यालय न खोलने का असर

राजीव गांधी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए देश भर में जवाहर नवोदय विद्यालय खोले थे. इस समय देश में 661 जवाहर नवोदय विद्यालय काम कर रहे हैं. ये विद्यालय पूरी तरह से आवासीय होते हैं. लेकिन तमिलनाडु देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसनें अपने यहां जवाहर नवोदय विद्यालय नहीं खुलने दिए. वह आरोप लगाता है कि इसके जरिए राज्य पर हिंदी थोप दी जाएगी. इसका परिणाम यह हुआ है कि तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों के करीब 50 हजार बच्चे गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा लेने से वंचित रह गए  हैं. 

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तमिलनाडु में जवाहर नवोदय विद्यालय खोलने के लिए कानूनी प्रयास भी किए गए.साल 2017 में मद्राह हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि तमिलनाडु सरकार जवाहर नवोदय विद्यालय को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी करे.अदालत ने राज्य सरकार की इस दलील को नहीं माना था कि इसके जरिए राज्य पर हिंदी थोपी जा रही है. लेकिन तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने अदालत के आदेश को मानने की जगह इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 

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