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राहुल गांधी ने हरियाणा में जहां-जहां की रैलियां, जानिए वहां कैसा रहा कांग्रेस का हाल

राहुल ने महेंद्रगढ़, नूंह, सोनीपत, गोहाना, थानेसर, नारायनगढ़, बरवाला, गन्नौर, बहादुरगढ़ और असांध विधानसभा सीटों पर प्रचार किया.

वहीं हरियाणा में पीएम मोदी की सिर्फ 4 रैलियां हुईं. लेकिन, इसका व्यापक असर इस चुनाव में मतदाताओं पर पड़ता दिखा. मोदी ने 16 अगस्त को हरियाणा में चुनाव घोषणा के बाद पहली रैली 14 सितंबर को की थी. पीएम जहां चुनावी सभा की, उन सीटों पर जीत का स्ट्राइक रेट 75 प्रतिशत रहा. यानी प्रधानमंत्री की बात और उनका साथ हरियाणा के लोगों को भी भा गया.

हरियाणा में कांग्रेस का चुनाव अभियान, जो बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा और अग्निपथ योजना सहित विभिन्न मुद्दों पर आधारित था, अधिकांश मतदाताओं को प्रभावित करने में विफल रहा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का जोरदार प्रचार अभियान भी पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं दिला सका.

कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार अभियान में बेरोजगारी, किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी की मांग, अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना और महंगाई जैसे मुद्दे उठाकर राज्य में भाजपा की एक दशक पुरानी सरकार पर निशाना साधा था.

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कांग्रेस ने हरियाणा में चुनावी कैंपेन की शुरुआत तो पूरे दमखम के साथ की थी, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी के अंदर का अंतर्कलह खुलकर लोगों के सामने आ गया. एक तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खेमा था तो दूसरी तरफ रणदीप सुरजेवाला के समर्थक. कांग्रेस पार्टी के भीतर जिसकी नाराजगी की चर्चा सबसे ज्यादा रही, वो हैं सांसद कुमारी शैलजा. जिनका खेमा अलग ही अंदाज में इस चुनाव के दौरान नजर आया. कुमारी शैलजा खुद ही लंबे समय तक पार्टी के चुनाव प्रचार से दूर रहीं और शामिल हुईं भी तो एकदम बेमन से, जिसका परिणाम चुनाव नतीजों में साफ उभरकर आया.

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दरअसल, एक तरफ कांग्रेस के खिलाफ मैदान में आम आदमी पार्टी का होना कांग्रेस को परेशान कर ही रहा था, वहीं पार्टी के अंदर प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच कलह ने पार्टी को और ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया.

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हरियाणा के चुनाव में तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक सीएम बनने की इच्छा जाहिर करते रहे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं और तीसरी बार के लिए वो अपनी फिल्डिंग सजाकर बैठे थे.

दलित और महिला कार्ड खेलकर, साथ ही पार्टी आलाकमान से नजदीकी बढ़ाकर कुमारी शैलजा भी सीएम की कुर्सी पर नजर टिकाए हुए थीं. ऐसे में चुनाव परिणाम से पहले ही कांग्रेस के भीतर घमासान हरियाणा में शुरू हो गया था. ऐसे में हरियाणा से विधानसभा चुनाव के जिस तरह के परिणाम आए, उसने साफ कर दिया कि यहां कांग्रेस ने ही कांग्रेस को हराया और पार्टी के अंदर की लड़ाई ने उसे सत्ता से दूर कर दिया.


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