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CM कुर्सी जाने या JMM के ऑफर से… किससे नाराज हैं चंपई सोरेन? कैसे मैनेज करेगी JMM

चंपई सोरेन की नाराजगी के क्या हो सकते हैं कारण? 
चंपई सोरेन जेएमएम के कोल्हान क्षेत्र के सबसे बड़े नेता रहे हैं.  वो साल 1991 से विधायक बनते रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा में कई बार विभाजन के बाद भी वो शिबू सोरेन के साथ डटे रहें थे. विपरित हालात में उन्होंने इसी साल फरवरी में राज्य की कमान संभाली थी. उनके सीएम बनने के दौरान पार्टी में टूट की भी चर्चा थी हालांकि उन्होंने सूझबूझ के साथ पार्टी को हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में संभाल कर रखा. साथ ही लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर रहा. 2019 में जहां जेएमएम को महज एक सीट मिली थी वहीं इस चुनाव में 3 सीटों पर जीत मिली. लंबे समय के बाद जेएमएम को कोल्हान क्षेत्र में भी एक सीट पर जीत मिली. 

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सीएम से हटने के बाद चंपई क्या करेंगे?
चंपई सोरेन लंबे समय से जेएमएम में नंबर 2 की भूमिका में रहे हैं. सोरेन परिवार के बाद उनकी धमक रही है. हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में भी उन्होंने महत्वपूर्ण विभागों को संभाला था. ऐसे में महज 5 महीने के लिए सीएम बनने के बाद फिर से हेमंत सरकार में मंत्री बनना उनके लिए सहज नहीं होगा. साथ ही चर्चा इस बात की भी है कि उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. 

जेएमएम को करीब से जानने वाले लोगों का मानना रहा है कि सोरेन परिवार से इतर किसी व्यक्ति के पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद भी पावर सेंटर का ट्रांसफर आसान नहीं होगा. कार्यकारी अध्यक्ष के पद को लेकर चंपई सोरेन बहुत अधिक खुश नहीं होंगे. 

चंपई सोरेन की नाराजगी का क्या होगा असर?
झारखंड में जेएमएम का आधार मुख्य रूप से राज्य के 2 हिस्सों संथाल परगना और कोल्हान में रहा है. संथाल परगना शिबू सोरेन का कार्यक्षेत्र रहा है. वहीं कोल्हान क्षेत्र में समय-समय पर पार्टी के नेता बदलते रहे हैं. पार्टी में कई बार विद्रोह भी देखने को मिला है. 2019 के विधानसभा क्षेत्र में जेएमएम ने इस क्षेत्र में भी बेहतर प्रदर्शन किया था. चंपई सोरेन इस क्षेत्र में टाइगर के नाम से चर्चित रहे हैं. ऐसे में अगर उनकी नाराजगी होती है तो जेएमएम को अगले कुछ महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

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चंपई की जगह हेमंत की क्यों हो रही है वापसी?

हेमंत सोरेन झारखंड में कांग्रेस जेएमएम गठबंधन के सर्वमान्य नेता रहे हैं.  जेल से आने के बाद भी लोगों में उनकी अच्छी लोकप्रियता रही है. चंपई सोरेन का कोल्हान के बाहर कोई जनाधार नहीं है. साथ ही बीजेपी की तरफ से बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद संथाल परगना और पूरे राज्य भर में उनके खिलाफ एक मजबूत नेता की जरूरत महसूस हो रही है. कांग्रेस के भी कई विधायक इस पक्ष में हैं. राजनीति के जानकारों का भी मानना है कि जेएमएम का जनाधार सोरेन परिवार के ही आसपास रहा है. 

हेमंत के जेल जाने को मुद्दा बना सकती है जेएमएम
जेल से आने के बाद हेमंत सोरेन शिबू सोरेन के लुक में नजर आ रहे हैं. जेएमएम की तरफ से हमेशा से हेमंत सोरेन को निर्दोष बताया जाता रहा है. ऐसे में अदालत से जमानत मिलने के बाद पार्टी इस मुद्दे को जोरदार ढंग से पेश करना चाहती है. जेएमएम की कोशिश है कि हेमंत सोरेन को चुनाव में पोस्टर ब्वॉय बनाया जाए. झारंखड के गांवों में सोरेन परिवार का मजबूत जनाधार रहा है.  

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संथाल के गढ़ के बचाने की हेमंत के सामने चुनौती
पिछले विधानसभा चुनाव में संथाल परगना की सीटों पर जेएमएम ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. हालांकि पिछले कुछ दिनों में बीजेपी ने संथाल क्षेत्र में काफी मेहनत किया है. हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन जो की जामा सीट से विधायक बनते रही हैं वो बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं. वहीं बाबूलाल मरांडी भी संथाल परगना में ही राजनीति करते रहे हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता निशिकांत दुबे भी संथाल परगना की गोड्डा सीट से सांसद बनते रहे हैं ऐसे में इस तिकड़ी को रोकने के लिए भी जेएमएम हेमंत सोरेन को आगे कर सकती है. 

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झारखंड के राजनीतिक घटनाक्रम का टाइमलाइन

  • 2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम कांग्रेस गठबंधन की जीत के बाद हेमंत सोरेन झारखंड के सीएम बने थे.
  • भूमि घोटाले से संबधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने हेमंत सोरेन के खिलाफ केस दर्ज किया.
  • साल 2024 के 31 जनवरी को जांच एजेंसी ने लंबी पूछताछ के बाद हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया.
  • गिरफ्तारी से पहले हेमंत सोरेन ने पद से इस्तीफा दे दिया. 
  • 2 फरवरी 2024 को चंपई सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने.
  • 28 जून 2024 को हेमंत सोरेन जमानत के बाद जेल से बाहर आए.
  • 3 जुलाई को इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद चंपई सोरेन ने इस्तीफा दे दिया.

क्या है झारखंड विधानसभा का गणित? 
झारखंड विधानसभा में सदस्यों की संख्या 81 है. लोकसभा चुनाव के बाद, राज्य में झामुमो-नीत गठबंधन के विधायकों की संख्या घटकर 45 रह गई है जिनमें झामुमो के 27, राजद का एक और कांग्रेस के 17 विधायक शामिल हैं. झामुमो के दो विधायक-नलिन सोरेन और जोबा माझी अब सांसद हैं, जबकि जामा से विधायक सीता सोरेन ने भाजपा के टिकट पर आम चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था. झामुमो ने बिशुनपुर से विधायक चमरा लिंडा और बोरियो से विधायक लोबिन हेम्ब्रम को पार्टी से निष्कासित कर दिया था, लेकिन उन्होंने अभी तक विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया है. 

इसी तरह, विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या घटकर 24 रह गई है, क्योंकि उसके दो विधायक- ढुलू महतो (बाघमारा) और मनीष जायसवाल (हजारीबाग) ने लोकसभा चुनाव लड़ा था और वे अब सांसद हैं.  बीजेपी ने चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में शामिल होने वाले मांडू सीट से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को निष्कासित कर दिया है. हालांकि, पटेल ने अभी तक विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया है. 

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