किसे दें वोट? AAP और कांग्रेस में क्यों कंफ्यूज… जानिए क्या कह रहे दिल्ली के मुस्लिम वोटर
नई दिल्ली :
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से दो दिन पहले प्रमुख राजनीतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस की नज़रें मुस्लिम बहुल मानी जाने वाली करीब 22 सीटों पर टिकी हैं. इनमें से पांच सीट सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीट से अक्सर मुस्लिम उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंचते रहे हैं, भले ही वे किसी भी दल से हों. इसके अलावा बाबरपुर, गांधीनगर, सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, किराड़ी, जंगपुरा व करावल नगर समेत 18 सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 10 से 40 फीसदी मानी जाती है और इन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 13 फीसदी थी. जानकार मानते हैं कि इस बार मुस्लिम मतदाता सत्तारूढ़ ‘आप’ और कांग्रेस को लेकर असमंजस में है.
कांग्रेस का हाथ छोड़ AAP को दिए थे वोट
जानकारों के मुताबिक, दिल्ली के मुस्लिम मतदाता परंपरागत तौर पर कांग्रेस को वोट देते आए हैं लेकिन 2015 में वह कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ ‘आप’ के पाले में चले गए और 2020 के चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय ने और मजबूती से सत्तारूढ़ दल को समर्थन दिया जिस वजह से ज्यादातर मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.
मगर उत्तर पूर्वी दिल्ली के 2020 के दंगे, कोरोना वायरस महामारी के दौरान उपजे तब्लीगी जमात के मुद्दे और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े मुद्दों पर पार्टी की कथित चुप्पी से माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं में ‘आप’ को लेकर नाराज़गी है.
हालांकि मुस्लिम राजनीति के जानकार एवं ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) में एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “जहां तक मुस्लिम वोटों का सवाल है, “आप” को निश्चित रूप से बढ़त हासिल है. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में उसके पास जमीनी स्तर के कार्यकर्ता और दूसरे स्तर का नेतृत्व है.”
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मुस्लिम समुदायों के साथ ऐतिहासिक जुड़ाव से इनकार नहीं किया जा सकता और वह भी अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रही है.
अहमद ने कहा, “इस संदर्भ में मतदाताओं की समझ को ध्यान में रखना चाहिए. मेरे विचार से दिल्ली के मुस्लिम मतदाता, अन्य सामाजिक समूहों की तरह, समझदार तरीके से मतदान करने जा रहे हैं. आखिरकार यह एक विधानसभा चुनाव है जहां मतदाता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ निकटता महसूस करता है.”
भाजपा को हराने का ठेका नहीं लिया: खान
सीलमपुर विधानसभा के चौहान बांगर में रहने वाले व आयुष मंत्रालय से सेवानिवृत्त हुए डॉक्टर सैयद अहमद खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि इस बार वोट अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर नहीं बल्कि स्थानीय उम्मीदवार को देखकर पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने अपनी जो छवि बनाई थी वो बीते पांच साल में काफी खराब हुई है, क्योंकि ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक मुस्लिम समुदाय से जुड़े किसी मुद्दे पर नहीं बोले.
खान से जब यह सवाल किया गया कि ‘आप’ कह रही है कि उसे वोट नहीं दिया तो भाजपा आ जाएगी, इस पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा,“ मुसलमानों ने भाजपा को हराने का ठेका नहीं ले रखा है.”
‘… तो AAP को वोट देना समझदारी’
जाफराबाद इलाके में हलवाई की दुकान चलाने वाले मोहम्मद यामीन कहते हैं कि यह सही है कि केजरीवाल मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर नहीं बोले, लेकिन “हमारे पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है, जहां हम जा सकें. इसलिए ‘आप’ को ही वोट देना समझदारी है.”
सीलमपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर एक अन्य मुस्लिम बहुल सीट ओखला के जामिया नगर में रहने वाले फरीद असकरी ने कहा कि मुसलमानों के पास आप को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि बड़ी तस्वीर में केवल ‘आप’ ही भाजपा को सत्ता में आने से रोक रही है.
यही बात शाहदरा जिले के बाबरपुर इलाके में रहने वाले व तब्लीगी जमात से जुड़े अब्दुल रहमान भी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को रोकने के लिए ‘आप’ ही विकल्प है.
ओखला के मुर्तुजा नैयर ने कहा, ‘मेरा दिल कांग्रेस कहता है, लेकिन दिमाग आप कहता है. राहुल गांधी सही मुद्दे उठाते रहे हैं और अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के लिए लड़ते रहे हैं, इसलिए वह हमारे वोट के हकदार हैं, लेकिन डर है कि वोट बंट सकते हैं और भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है.’
‘मुस्लिम मुद्दों पर नहीं बोलते केजरीवाल’
पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र के कूचा चालान इलाके के निवासी व एक होटल में नौकरी करने वाले उबैद कहते हैं कि केजरीवाल मुस्लिम मुद्दों पर नहीं बोलते हैं, फिर भी वह भाजपा से बेहतर हैं और उनकी कई योजनाओं से घरेलू बजट ठीक रहता है, इसलिए उन्होंने ‘आप’ को वोट देने का फैसला किया है.
दंगा प्रभावित उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र के शेरपुर चौक के पास रहने वाले और सीट कवर सीने का काम करने वाले 36 वर्षीय अकबर ‘आप’ सरकार की फ्री बिजली-पानी और मोहल्ला क्लिनिक योजना से खासे प्रभावित हैं, और कहते हैं कि वह इस बार भी ‘झाड़ू’ को ही वोट देंगे.
ऐसा नहीं है कि सारे मतदाताओं का रुख यही है. कुछ कांग्रेस को वोट देने की भी बात करते हैं.
बल्लीमारान विधानसभा क्षेत्र के फराशखाना इलाके में रहने वाले वसीम शाहनवाज़ ने कहा कि वह पिछले दो चुनाव से ‘आप’ को वोट देते आए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने कांग्रेस को वोट देने का फैसला किया है. इसकी वजह पूछने पर वह कहते हैं कि जब भी मुस्लिमों से जुड़ा कोई मुद्दा होता है तो केजरीवाल खमोशी अख्तियार कर लेते हैं.
मुस्तफाबाद के बृजपुरी इलाके में रहने वाले मोहम्मद मुस्तकीम दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथ खड़े करने को भूले नहीं हैं.
मुस्तकीम कहते हैं,‘‘ जब इलाके में दंगे हुए तो केजरीवाल ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए थे कि उनके हाथ में कुछ नहीं है, जो है उपराज्यपाल के पास है. ऐसे में उनकी पार्टी को वोट देने का कोई मतलब नहीं है.”
AIMIM ने दंगा आरोपी को बनाया उम्मीदवार
चांद बाग में रहने वाले अमजद का अपने इलाके के मूड पर कहना था कि दंगों के आरोपी और जेल में बंद ताहिर हुसैन के साथ लोगों की काफी सहानुभूति है जिन्हें एआईएमआईम ने अपना उम्मीदवार बनाया है.
इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए ओखला के मोहम्मद साकिब ने कहा कि आजादी के बाद से सभी पार्टियों ने मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में देखा है और अब समय आ गया है कि हम अपनी उस पार्टी को वोट दें जो हमारे अधिकारों और मुद्दों की बात करती है, यह एआईएमआईएम का समय है.
करावल नगर विधानसभा क्षेत्र के दंगा प्रभावित खजूरी एक्सटेंशन में रहने वाले मोहम्मद संजार इस बार ‘आप’ को वोट देने की बात कहते हैं. उन्होंने कहा, “ 2015 और 2020 में हमने कांग्रेस को वोट दिया था, लेकिन इस बार क्षेत्र में भाजपा को रोकने के लिए हम ‘आप’ के साथ जाएंगे, क्योंकि कांग्रेस मुकाबले में नहीं है.”
लेकिन कुछ इलाकों में मतदाताओं के बीच चुनाव को लेकर उदासीनता भी देखी जा रही है.
बाबरपुर विधानसभा क्षेत्र के विजयपार्क में कैमिस्ट की दुकान चलाने वाले शाहिद खान ने फैसला कर लिया है कि वह इस बार मतदान ही नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें ‘आप’ को वोट देना नहीं है, और कांग्रेस मुकाबले में नहीं है. लिहाजा उन्होंने वोट नहीं देने का फैसला किया है.
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