नारायण गुरु और सनातन धर्म पर क्यों भिड़े हुए हैं CPM और BJP, क्या कर रही है कांग्रेस
नई दिल्ली:
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का समाज सुधारक नारायण गुरु पर दिए एक बयान पर विवाद पैदा हो गया है. विजयन ने मंगलवार को कहा था कि नारायण गुरु को सनातन धर्म का समर्थक बताने का प्रयास किया जा रहा है.वो मंगलवार को तिरुवंतपुरम जिले में शिवगिरी मठ के एक सालाना जलसे को संबोधित कर रहे थे. इसमें उन्होंने कहा था कि नारायण गुरु ने सनातन धर्म का पुननिर्माण किया था. उनके इस बयान का बीजेपी ने विरोध किया है. बीजेपी का कहना है कि विजयन ने चरमपंथियों का वोट हासिल करने के लिए हिंदू धर्म का अपमान किया है. सीपीएम और बीजेपी की इस लड़ाई में कांग्रेस भी कूद पड़ी है. आइए जानते हैं कि किस बात पर हो रही है लड़ाई और कौन थे नारायण गुरु और कैसा था उनका दर्शन.
पिनाराई विजयन ने कहा क्या था
शिवगिरी मठ के कार्यक्रम में विजयन ने कहा था,”उन्होंने वर्ण व्यवस्था को चुनौती दी और सनातन धर्म की पुनर्स्थपना की.उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी वैश्विक द्रष्टिकोण को बरकरार रखा.उस द्रष्टिकोण को सनातन धर्म के दायरे में सीमित करने का कोई भी प्रयास गुरु का अपमान होगा. उनका धर्म समय के साथ खड़ा रहना और वर्णाश्रम को चुनौती देना है.’एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’ की अवधारणा का प्रचार-प्रसार करने वाले नारायण गुरु सनातन धर्म के समर्थक कैसे हो सकते हैं? समाज सुधारक गुरु को एक धार्मिक नेता और धार्मिक संन्यासी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है.”
विजयन ने कहा कि सनातन धर्म का सार उसकी वर्णाश्रम व्यवस्था में निहित है.इस वर्ण व्यवस्था को नारायण गुरु ने चुनौती दी थी.गुरु वह व्यक्ति थे, जो जातिवाद के खिलाफ खड़ा था. उनका धर्म नए जमाने का धर्म था, उसे धर्म से परिभाषित नहीं किया जा सकता,वह लोगों की भलाई के लिए था. उनका धर्म कुछ भी हो…लेकिन उसे सनातन धर्म के दायरे में बांधना गुरु के खिलाफ पाप होगा.
विजयन के बयान के विरोध में आई बीजेपी
विजयन के इस बयान पर केरल की राजनीति गरमा गई. केरल में पैर जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी ने विजयन के बयान का पुरजोर विरोध किया. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा है कि विजयन ने पूरे श्री नारायणिया समुदाय का अपमान किया है. विजयन का मानना है कि सनातन धर्म घृणित है. उनकी टिप्पणी डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के उस रुख की अगली कड़ी है जिसमें उन्होंने कहा था कि सनातन धर्म को खत्म करना होगा. क्या विजयन के पास किसी और धर्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत है.मुरलीधरन ने आरोप लगाया कि विजयन के शासन में हिंदुओं को सबसे अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.उन्होंने कहा,”सबरीमाला में युवा महिलाओं के प्रवेश और त्रिशूरपुरम मामले में भी उन्होंने हिंदू आस्था को चुनौती देने की कोशिश की थी.”
#WATCH | BJP leader V Muraleedharan says, “Even while the Congress leader of Kerala and the Leader of Opposition in the state assembly disagrees with the Chief minister’s comments on Sanatan Dharm and opposes the term of saffronization, his own party president of Kerala has… pic.twitter.com/ihIfQYHqQn
— ANI (@ANI) January 2, 2025
सीपीएम और बीजेपी की इस लड़ाई में कांग्रेस भी कूद पड़ी. कांग्रेस नेता और केरल विधानसभा में नेता विपक्ष वीडी सतीशन ने सनातन धर्म और वर्णाव्यवस्था को एक समान बताने के लिए आलोचना की. उन्होंने वर्णाश्रम को जाति-आधारित सामाजिक स्थिति पर आधारित जिम्मेदारियां बताया. उन्होंने कहा कि वर्णाश्रम के विपरित सनातन धर्म, सार्वभौमिक कल्याण की बात करता है. उन्होंने सनातन को भारत की सामूहिक संस्कृति बताया है.
केरल की राजनीति में बीजेपी और सीपीएम
एसएनडीपी के वेल्लापल्ली नटेसन लंबे समय से केरल में सत्तारूढ़ दल का समर्थन करते रहे हैं. वहीं उनके बेटे तुषार वेल्लापल्ली एसएनडीपी की राजनीतिक शाखा ‘भारत धर्म जन सेना’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. तुषार बीजेपी समर्थक हैं. सीपीएम इसी बात से डरी हुई है,केरल के सवर्ण हिंदू पहले ही बीजेपी के साथ हो चुके हैं,ऐसे में अगर एझावाओं ने भी उसका साथ छोड़ दिया तो, इससे बीजेपी को नुकसान होगा. बीजेपी बहुत लंबे समय से एझावा में अपना समर्थन बढ़ाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के इस प्रयास को लोकसभा चुनाव के परिणामों में देखा जा सकता है. साल 2024 के चुनाव में बीजेपी ने 16.8 फीसदी वोट के साथ एक सीट पर जीत दर्ज की थी. वहीं सीपीएं को 26 फीसदी वोट और एक सीट मिली थी. वहीं इससे पहले 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 13 फीसद वोट हासिल किए थे. लेकिन उसे कोई सीट नहीं मिली थी. वहीं सीपीएम ने उस चुनाव में 26 फीसदी वोट के साथ एक सीट पर जीत दर्ज की थी. ये आंकड़े बताते हैं कि केरल में बीजेपी का आधार तेजी से बढ़ रहा है.हालांकि पिछले दो लोकसभा चुनाव से कांग्रेस राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है. कांग्रेस को 2019 में 37.5 फीसदी वोट और 15 सीटें मिली थीं. कांग्रेस ने 2024 के चुनाव में 35.3 फीसद वोट और 14 सीटें जीतीं. बीजेपी ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में भी दहाई के अंक में वोट हासिल किए हैं, हालांकि उसे कोई सीट नहीं मिली है.
नारायण गुरु कौन थे
नारायण गुरु का पूरे केरल में सम्मान है. उनकी विचारधारा धर्म और सामाजिक सुधार का मिश्रण है. नारायण गुरु का जन्म 1856 में केरल में पिछड़ी जाति में आने वाली एझावा जाति में हुआ था. उनके दर्शन को अद्वैत वेदांत के रूप में जाना जाता है. वह एक जाति, एक धर्म और सबके एक भगवान की बात करते हैं. उनका कहना था कि मंदिर को सभी जाति के लिए लोगों के लिए खुला होना चाहिए.
करमुक्कू के अर्धनारीश्वर मंदिर में नारायण गुरु ने 1927 में कोच्चि से खरीदे गए एक बेल्जियम आईना स्थापित करवाया था.इस आईने पर ‘ओम’लिखा हुआ था.इसके अलावा उस मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं की गई थी. दरअसल नारायण गुरु इस आइने से यह दिखाना चाहते थे कि आध्यात्मिकता आत्म-चिंतन में समाहित है, कर्मकांड या मूर्ति पूजा में नहीं.
अर्धनारीश्वर मंदिर में बेल्जियम आईने की स्थापना के एक साल बाद 1928 में नारायण गुरु का निधन हो गया था. लेकिन अपने निधन के करीब 100 साल बाद आज भी नारायण गुरु पूरे केरल में प्रासंगिक बने हुए हैं. ठीक वैसे ही जैसे डॉक्टर बीआर आंबेडकर देश के दूसरे हिस्से में पूजनीय और आदरणीय हैं.नारायण गुरु की एझवा जाति की आबादी केरल में करीब 23 फीसदी है. यह जाति परंपरागत रूप से वाम समर्थक है.एझावाओं के लिए नारायण गुरु एक सम्मानित व्यक्ति हैं. एझवाओं के संगठन श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) का काफी राजनीतिक प्रभाव है.नारायण गुरु पर विजयन का बयान उनकी पार्टी सीपीएम में धर्म को लेकर जारी अंतर्द्वंद का प्रतीक है.सीपीएम अभी भी धर्म पर अपने स्टैंड को साफ नहीं कर पाई है.
सनातन पर क्या थी नारायण गुरु की राय
विजयन ने जो बयान दिया है वह शिवगिरि मठ के प्रमुख स्वामी सच्चिदानंद के उस सुझाव के समर्थन के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि मंदिरों में प्रवेश से पहले पुरुष भक्तों को अपनी शर्ट उतारने की प्रथा को खत्म कर देना चाहिए. एक तरफ जहां केरल के राजनेता नारायण गुरु और सनातन धर्म को लेकर आपस में ही उलझे हुए हैं. वहीं स्वामी सच्चिदानंद ने कहा है कि नारायण गुरु ने खुद ही सनातन धर्म को लेकर अपने सिद्धांत का प्रतिपादन किया हुआ है. उन्होंने अंगरेजी अखबार ‘दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि अपनी समाधि से पहले 1927 में नारायण गुरु ने अलाप्पुझा के पल्लाथुरूथी में अपना आखिरी भाषण दिया था. इसमें उन्होंने कहा था कि ‘एक जाति, एक धर्म, एक भगवान’ का उद्घोष ही सनातन धर्म है.उन्होंने यह भी कहा है कि सनातन पर हिंदू धर्म का एकाधिकार नहीं है,यह सार्वभौमिक है.उनका कहना है कि सनातन धर्म का वर्ण व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है. उनका मानना है कि सनातन धर्म के अस्तित्व के कारण ही ईसाई और इस्लाम जैसे धर्म भारत में प्रवेश कर सके.
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