मायावती ने उत्तर प्रदेश की जगह नागपुर से चुनाव अभियान की शुरुआत क्यों की?
बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) की नेता मायावती ने गुरुवार की शाम नागपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित किया. नागपुर के इंदौरा के बेजानबाग में मायावती की लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहली जनसभा थी. उत्तर प्रदेश पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही वो राज्य है जहां किसी समय में बसपा का जनाधार रहा है. हालांकि हाल के दिनों में चुनावी राजनीति में बसपा लगातार पिछड़ती दिख रही है.
यह भी पढ़ें
नागपुर की सभा के माध्यम से दलित वोटर्स को बड़ा संकेत
नागपुर भारत में दलित राजनीति के लिए एक प्रमुख स्थल के तौर पर रहा है. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने 3 लाख 65 हजार समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था. इसके माध्यम से उन्होंने कई किताबें और लेख लिखकर दलितों के लिए बराबरी की बात कही थी. अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलकर कांशीराम ने बसपा को देश के गांव-गांव तक पहुंचाया था. मायावती और बसपा के लिए दलित वोट बैंक ही आधार रहा है. हालांकि समय के साथ उस वोट बैंक में बीजेपी ने बड़ी सेंध लगायी है. ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह अपने से दूर जा रहे दलित वोट बैंक को साधने की यह एक कोशिश है?
हिंदुत्व की राजनीति के बीच अपने कोर वोटर्स को संभालने की कोशिश
देश भर में हुए हाल के कुछ चुनावों में देखा गया है कि बीजेपी के पक्ष में थोक के भाव दलित वोट पड़े हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी दलितों के एक बहुत बड़े वर्ग का झुकाव बीजेपी की तरफ देखा गया. मायावती के आलोचकों और विरोधियों का कहना रहा है कि मायावती पूरे दलित समाज के बदले सिर्फ जाटव समाज का प्रतिनिधित्व करती है. हालांकि एक दौर ऐसा रहा है जब न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि देश के कई राज्यों में मायावती के एक ऐलान पर दलितों मतों का एक बड़ा हिस्सा वोट करता रहा था. ऐसे में मायावती ने अपनी राजनीति को एक बार फिर उत्तर प्रदेश से बाहर निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर रखने की कोशिश की है.
कभी बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प दिख रही बसपा आज हाशिये पर
1990 और 2000 के दशक में देश के कई राज्यों में बहुजन समाज पार्टी का विस्तार देखने को मिला. उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बसपा के उम्मीदवार राजनीति को प्रभावित करते रहे थे. कांशीराम के बाद भी मायावती के नेतृत्व में कई जगहों पर बसपा को अच्छी सफलता मिली.हालांकि हिंदुत्व की राजनीति के 2014 में व्यापक उभार के बाद मायावती और बसपा हाशिये पर जाति हुई दिख रही है.