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बिहार में मुनाफे की खेती क्यों नहीं है मखाना, बोर्ड बनाने से क्या वोटों की फसल भी लहलहाएगी


नई दिल्ली:

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को अपने बजट भाषण में बिहार में मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की थी. इसकी घोषणा करते हुए वित्तमंत्री ने कहा था कि इस बोर्ड की स्थापना मखाना का उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन में सुधार लाने के लिए किया जाएगा. उन्होंने कहा कि मखाना के उत्पादन में लगे लोगों का किसान उत्पादक संगठन बनाया जाएगा.उनकी इस घोषणा का असर बाजार पर भी दिथा था. इस बोर्ड के गठन की घोषणा के बाद से मखाने की कीमतों में 30 फीसदी से अधिक का उछाल देखा गया है.आज हालत यह है कि बाजार में मखाना की कीमत काजू से करीब दो गुना अधिक है. यह पहली बार देखा जा रहा है कि मखाने के आगे काजू की कीमत घट गई है. वित्तमंत्री ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा उस साल में की है, जब राज्य में विधानसभा के चुनाव होने हैं. बिहार में करीब 10 लाख परिवार मखाना की खेती से जुड़े हुए हैं. आइए देखते हैं कि बिहार में इस घोषणा का असर क्या होगा.  

बिहार में मखाना का बाजार

भारत में मखाने का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बाद भी बिहार बाजार का दोहन करने में सक्षम नहीं है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि देश के कुल मखाना का 85 फीसदी से अधिक उत्पादन बिहार में होता है, लेकिन उसके सबसे बड़े निर्यातक पंजाब और असम हैं.पंजाब में तो मखाना पैदा भी नहीं होता है. दरअसल इसके पीछे वजह यह है कि बिहार में न तो बेहतर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग है और न ही निर्यात के लिए जरूरी ढांचा. इसके साथ ही बिहार के एक भी एयरपोर्ट पर कार्गो होल्ड नहीं है. इस वजह से बिहार ने मखाने के बीज को दूसरे राज्यों के फूड प्रासेसिंग यूनिट (एफपीयू) को बेचना शुरू कर दिया.इन एफपीयू ने मखाने के साथ प्रयोग कर उसकी कीमत बढ़ा दी. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को बिहार के भागलपुर में थे, वहां उनको मखाने की माला पहनाकर स्वागत किया गया.

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बिहार में मखाने की खेती भी दो तरह से होती है. दरभंगा-मधुबनी के इलाके में तालाब में मखाने की खेती होती है. वहीं सुपौल-किशनगंज के इलाके में खेतों में करीब एक फुट गहरे पानी में मखाने की खेती होती है.मखाने का लावा बनाने तक की प्रक्रिया बहुत मेहनत से भरी है और मानव श्रम पर आधारित है. हालांकि उत्पादन बढ़ाने के लिए मखाना के किसान इसकी अधिक पैदावार देने वाली प्रजातियों की खेती कर रहे हैं, इनमें स्वर्ण वैदेही और साबोग मखाना-1 जैसी प्रजातियां प्रमुख हैं. इससे उत्पादन करीब दो गुना तक हो जाता है. 

मखाना बोर्ड के लाभ क्या होंगे 

बिहार में मखाने की खेती को प्रोत्साहन और उससे जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है. इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की भी जरूरत होगी. मखाना बोर्ड इस दिशा में कदम उठा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि बिहार में फूड प्रॉसेसिंग उद्योग को बढ़ावा दिया जाए. भंडारण की उचित व्यवस्था की जाए. मखाने के लिए बेहतर बाजार की तलाश की जाए और निर्यात के लिए जरूरी सुविधाओं का विकास किया जाए. 

बजट घोषणाओं के मुताबिक मखाना बोर्ड की स्थापना 100 करोड़ रुपये से की जाएगी. यह किसानों को उन्नत तकनीकी का प्रशिक्षण देगा. वह किसानों के निर्यात उन्मुख बनाएगा. इसके साथ ही फूड प्रासेसिंग में बड़े निवेश के लिए माहौल बनाएगा और निर्यात के लिए जरूरी बुनियादी संरचना का विकास करेगा. सरकार की कोशिश पटना और दरभंगा हवाई अड्डे पर कार्गो होल्ड एरिया का निर्माण कराने की है. 

बिहार के एक खेत में मखाने की बेल रोपते केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान.

बिहार के एक खेत में मखाने की बेल रोपते केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान.

ऐसा नहीं है कि बिहार में मखाना की खेती को प्रोत्साहित करने की कोशिश पहली बार की जा रही है. इससे पहले 2002 में सरकार दरभंगा में नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मखाना की स्थापना की थी. पिछले साल तक इस सेंटर में 10 कर्मचारी कार्यरत थे, जबकि वहां कर्मचारियों के 42 पद स्वीकृत हैं. यहां तक की इस संस्थान को एक पूर्णकालिक निदेशक कभी नहीं मिला. 

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केंद्रीय कृषि मंत्री रविवार को बिहार में थे. उन्होंने दरभंगा के एक तालाब में उतरकर मखाने की बेल रोपी. इस अवसर पर उन्होंने मखाना उगाने वाले किसानों से चर्चा भी की.उन्होंने मखाने की खेती की पूरी प्रक्रिया समझी और मखाना उत्पादन में आने वाली परेशानियों को जाना. उन्होंने कहा कि मखाना की खेती कठिन है. तालाब में दिनभर रहकर खेती करनी होती है. केंद्र सरकार ने इस वर्ष बजट में मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की है. इस बोर्ड के गठन से पहले वे किसानों से सुझाव लेकर चर्चा कर रहे हैं, ताकि किसानों की वास्तविक समस्याएं समझी जा सकें. कृषि मंत्री  दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने मखाना किसानों से सुझाव लिया. 

चौहान ने कहा कि मखाना सुपरफूड है, पौष्टिकता का भंडार है, ये मखाना आसानी से पैदा नहीं होता है. मखाना पैदा करने के लिए कितनी तकलीफें सहनी पड़ती हैं, ये यहां आकर देखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि उनके मन में यह भाव आया कि जिन्होंने किसानों की तकलीफ नहीं देखी, वो दिल्ली के कृषि भवन में बैठकर मखाना बोर्ड बना सकते हैं क्या..? इसीलिए मैंने कहा, पहले वहां चलना पड़ेगा जहां किसान मखाने की खेती कर रहा है. खेती करते-करते कितनी दिक्कत और परेशानी आती है, ये भी हो सकता है कि यहां कार्यक्रम करते और निकल जाते लेकिन इससे भी सही जानकारी नहीं मिलती.

मखाना बोर्ड की घोषणा और राजनीति

वित्तमंत्री ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा ऐसे समय की है, जब बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं. सरकार को लगता है कि इस घोषणा से बिहार की नीतीश सरकार की आलोचनाओं में कुछ कमी आएगी, दरअसल उन पर बिहार में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा न देने के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि उनके आलोचक भी यह कहते हैं कि नीतीश राज में बिहार में बिजली और सड़क की व्यवस्था में सुधार हुआ है. बिहार सरकार ने पिछले साल केंद्र सरकार से मखाना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग की थी. लेकिन केंद्र सरकार ने इस दिशा में अबतक कोई कदम नहीं उठाया है. 

दरभंगा के एक तालाब में मखाने की बेल लगाते केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान.

दरभंगा के एक तालाब में मखाने की बेल लगाते केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान.

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केंद्र सरकार की इस घोषणा से बिहार में मल्लाह जाति के लोगों को संदेश देने की कोशिश की गई है, क्योंकि मखाना की खेती और उत्पादन में सीधे तौर पर मल्लाह ही जुड़े हुए हैं. मल्लाह बिहार के सबसे गरीब जातियों में से एक है. जबकि बिहार में मल्लाह जाति की आबादी 2.6 फीसदी है. बिहार में मल्लाह समाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों का वोट बैंक रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से वीआईपी जैसे दल मल्लाहों की राजनीति करने का दावा कर रहे हैं. लेकिन उन्हें बहुत सफलता नहीं मिली है.  

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