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जस्टिस वर्मा के खिलाफ दर्ज हो FIR, सुप्रीम कोर्ट ने PIL को क्यों कर दिया खारिज?


नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका को ‘असामयिक’ बताते हुए खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. 

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च को आरोपों की आंतरिक जांच करने के लिए तीन-सदस्यीय समिति गठित की और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की जांच रिपोर्ट को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्णय लिया. इसमें कथित रूप से भारी मात्रा में नकदी मिलने की तस्वीरें और वीडियो शामिल थे. न्यायमूर्ति वर्मा ने किसी भी तरह के आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा स्टोर रूम में कभी भी नकदी नहीं रखी गई.

वर्मा को न सौंपा जाए फिलहाल कोई न्यायिक कार्य: SC
उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से शुक्रवार को कहा कि नकदी बरामदगी मामले में घिरे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को कार्यभार संभालने के बाद फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए. उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने 24 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा को उनकी मूल अदालत ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय’ में वापस भेजने की सिफारिश की थी.  इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के निर्देश के बाद न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया था.

उच्चतम न्यायालय की ओर से शुक्रवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से कहा गया है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा जब वहां कार्यभार संभालेंगे तब उन्हें फिलहाल कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाए.” यह घटनाक्रम इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को इलाहाबाद स्थानांतरित करने की अधिसूचना जारी की.

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जस्टिस वर्मा का क्या है पूरा मामला? 
यह आदेश राष्ट्रीय राजधानी में न्यायाधीश के सरकारी आवास में 14 मार्च की रात आग लगने के बाद वहां से कथित तौर पर नकदी की जली हुई गड्डियां मिलने की घटना के बीच आया है. विधि मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर उनके स्थानांतरण की घोषणा की. उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले की सिफारिश सरकार से करते हुए कहा था कि यह कदम 14 मार्च की रात लगभग 11.35 बजे आग लगने की घटना के बाद न्यायाधीश के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास से कथित तौर पर नकदी मिलने पर शीर्ष अदालत द्वारा आदेशित आंतरिक जांच से अलग है.



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