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भाषा के नाम पर क्यों भिड़े हैं तमिलनाडु और केंद्र सरकार, कितना पुराना है हिंदी विरोधी आंदोलन


नई दिल्ली:

स्कूलों में तीन भाषाएं पढ़ाने पर तमिलनाडु और केंद्र की सरकारें आमने सामने आ गई हैं.यह त्रिभाषा फार्मूला  राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का हिस्सा है.तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस नीति को लागू न करने पर केंद्र सरकार पर राज्य का बजट रोकने का आरोप लगाया है. उन्होंने इसको लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है. उन्होंने पीएम से शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के लिए लंबित 2,152 करोड़ रुपये जारी करने की मांग की है. तमिलनाडु में सरकार चला रहे डीएमके ने त्रिभाषा फार्मूले को पूरी तरह से खारिज कर दिया है.डीएमके का कहना है कि यह राज्य पर हिंदी को थोपने का प्रयास है. वहीं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि सरकार एनईपी लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. केंद्र और राज्य सरकार के इस टकराव ने तमिलनाडु में दशकों पुराने भाषा आंदोलन को फिर से जिंदा कर दिया है.

क्या कहना है स्टालिन का

स्टालिन ने बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया था. इसमें प्रधान यह कहते हुए सुने गए कि तमिलनाडु को भारतीय संविधान की शर्तों को मानना ​​होगा और तीन भाषा नीति ही कानून का शासन है. जब तक तमिलनाडु एनईपी और त्रिभाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक प्रदेश को समग्र शिक्षा अभियान के तहत फंड नहीं उपलब्ध कराया जाएगा.इसके विरोध में स्टालिन ने यहां तक कह दिया कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है. उन्होंने कहा कि हिंदी के कारण उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां लुप्त हो गईं. राजस्थान का उदाहरण देते हुए स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार वहां उर्दू हटाकर संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है. अन्य राज्यों में भी ऐसा होगा इसलिए तमिलनाडु इसका विरोध कर रहा है.

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तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलनों का करीब सौ साल पुराना है. केरल और कर्नाटक के विपरीत तमिलनाडु में दो भाषा फार्मूले का पालन किया जाता है. इसके तहत छात्रों को केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है. शिक्षा की भाषा पर बहस आजादी के बाद से ही हो रही है. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने 1948-49 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाले आयोग ने हिंदी को केंद्र सरकार के कामकाज की भाषा बनाने की सिफारिश की थी. आयोग की सिफारिश थी कि सरकार के प्रशासनिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक कामकाज अंग्रेजी में किए जाएं. इस आयोग ने कहा कि प्रदेशों का सरकारी कामकाज क्षेत्रीय भाषाओं में हो. इस आयोग ने यह भी कहा था कि अंग्रेजी को तुरंत हटा देना व्यावहारिक नहीं होगा. आयोग का कहना था कि संघीय कामकाज तब तक अंग्रेजी में जब तक कि सभी राज्य बदलाव के लिए तैयार न हो जाएं.

त्रिभाषा फार्मूला

राधाकृष्णन आयोग की यह सिफारिश ही आगे चलकर स्कूली शिक्षा के लिए त्रिभाषा फार्मूला के नाम से मशहूर हुआ. इसमें कहा गया कि हर व्यक्ति को अपनी क्षेत्रीय भाषा के अलावा संघीय भाषा से भी परिचित होना चाहिए और उसमें अंग्रेजी में किताबें पढ़ने की क्षमता होनी चाहिए. इस सिफारिश को राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने  1964-66 में स्वीकार किया. इंदिरा गांधी की सरकार की ओर से पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में इसे शामिल किया गया. 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार हम हिंदी के बहाने संस्कृत थोपना चाहती है.

सरकार ने प्रस्तावित किया कि माध्यमिक स्तर तक हिंदी भाषी राज्यों में छात्र हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दक्षिणी भाषाओं में से एक और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी सीखें. राजीव गांधी सरकार में 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति और नरेंद्र मोदी सरकार में 2020 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसी फार्मूले को रखा गया. लेकिन इसके क्रियान्वयन में लचीलापन लाया गया. पिछली एनईपी के विपरीत 2020 में बनी एनईपी में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है. इसमें कहा गया है, “बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, बशर्ते कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं हों.”

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तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन

बनने के बाद से ही त्रिभाषा फार्मूले पर तमिलनाडु में विवाद हो रहा है. तमिलनाडु 1968 से ही अपने दो-भाषा फॉर्मूले पर ही काम कर रहा है.तमिलनाडु और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच ताजा विवाद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के एक बयान के बाद शुरू हुआ है.उन्होंने संकेत दिया कि तमिलनाडु को स्कूली शिक्षा के लिए समग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत धनराशि तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कि वह नई शिक्षा नीति को लागू नहीं करता और त्रिभाषा फार्मूले को नहीं अपनाता है.

तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध बहुत पुराना है. साल 1937 में मद्रास में सी राजगोपालाचारी की सरकार ने माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव रखा था.इसका जस्टिस पार्टी ने विरोध किया था.हिंदी के विरोध में हुए आंदोलन में थलामुथु और नटराजन नाम के दो युवकों की जान चली गई थी. बाद में वो हिंदी विरोधी आंदोलन के प्रतीक बन गए.इस विरोध के आगे झुकते हुए राजाजी को इस्तीफा देना पड़ा था. वहीं 1960 के दशक में जब देश में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की समय सीमा आई तमिलनाडु में हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगा था. हिंदी विरोधी इस आंदोलन में पुलिस कार्रवाई और आत्मदाह की घटनाओं में करीब 70 लोगों की जान चली गई थी.

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