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क्यों हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अल्टीमेटम है वायनाड में मौत का यह सैलाब


नई दिल्‍ली:

केरल के वायनाड में हुए भीषण भूस्खलन के लिए कौन जिम्‍मेदार है? क्‍या इसे सिर्फ प्राकृतिक आपदा कहना सही होगा! क्‍या इस प्राकृतिक आपदा को बुलावे देने में इंसानों का हाथ नहीं है? ये सवाल इसलिए, क्‍योंकि वायनाड में जिन जगहों पर लैंडस्लाइड हुआ, वहां इंसानों की बस्तियों को होना ही नहीं चाहिए था. ये पूरा इलाका लैंडस्लाइड जोन में आता है, लेकिन इसके बावजूद वायनाड में पिछले दो दशकों में टूरिज्म बूम से अंधाधुंध निर्माण हुए, जिसने पूरे इकॉसिस्‍टम को बिगाड़ दिया है. अब भूस्खलन वाले इलाके के पास 2 हजार करोड़ की प्रस्तावित सुरंग पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्‍या इसे बनाया जाना चाहिए? वायनाड में हुए भीषण भूस्खलन में मरने वालों की संख्या 159 पहुंच गई है, जबकि 90 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं. इस भीषण त्रासदी के बाद सेना, वायुसेना, नौसेना, एनडीआरएफ, पुलिस और फायर फोर्स की टीमें बचाव अभियान में जुटी हुई हैं. मानव निर्मित पुल बनाकर अब तक 1000 लोगों को बचाया गया है. गाडगिल और कस्तूरीरंगन समिति ने भी इस क्षेत्र को लेकर जो सुझाव दिये थे, उन पर भी ध्‍यान नहीं दिया गया.

चेतावनी को किया नजरअंदाज

वायनाड के चूरलपारा में मंगलवार को भीषण भूस्खलन हुआ. बताया जा रहा है कि भूस्खलन रात करीब 2 बजे हुआ और इलाका पूरी तरह से कट गया है. सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में चूरलमाला, वेल्लारीमाला, मुंडकाईल और पोथुकालू शामिल हैं. इन इलाकों के स्थानीय लोग जो किसी तरह बच निकलने में कामयाब रहे, तबाही की भयावहता से बुरी तरह टूट चुके हैं. अगर प्रशासन ने केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (केएसडीएमए) द्वारा 2020 में की गई सिफारिशों को माना गया होता, तो इतने लोगों की जान नहीं जाती. राज्य के राजस्व विभाग को पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलान में रहने वाले 4000 परिवारों को तुरंत खाली करने का निर्देश देने के लिए एक स्पष्ट चेतावनी दी गई थी, क्‍योंकि ये पूरा क्षेत्र लैंडस्‍लाइड जोन है. लेकिन इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया, जिसका परिणाम आज सबके सामने है. 

मुंडक्कई और चूरलमाला भी इस खतरनाक जोन के अंदर

वेल्लारीमाला पहाड़ियों का पूरा हिस्सा जो सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, वो पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है जिसे ‘कैमल हंप’ पर्वत श्रृंखला भी कहा जाता है. इस पूरे हिस्से को भूस्खलन संभावित क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है. केएसडीएमए द्वारा तैयार जिला आपदा प्रबंधन योजना के अनुसार, भूस्खलन में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र मुंडक्कई और चूरलमाला भी इस खतरनाक जोन के अंदर ही आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 4 साल पहले जब इन इलाकों को खाली करने का निर्देश दिया गया था, तो फिर ऐसा क्‍यों नहीं हुआ. वहीं, लापरवाही की हद तब देखने को मिली, जब एक दिन पहले लैंडस्‍लाइड की चेतावनी मिल गई थी और इलाके से लोगों को तुरंत हटाने के लिए कहा गया था, लेकिन सिर्फ 4-5 घरों के लोग ही यहां से गए.  

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लैंडस्लाइड जोन में होने के बावजूद मकान-रिजॉर्ट बने

वायनाड में आने वाले पश्चिमी घाट पहाड़ों की श्रृंखला में लैंडस्‍लाइड होना कोई नई बात नहीं है. यहां पहले भी बड़े भूस्‍खलन हो चुके हैं. मुंडक्कई में 1984 और 2020 में बड़ा भूस्खलन हुआ था. 2020 में जब यहां भूस्‍खलन हुआ, तो कई आपदा प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियों ने इस क्षेत्र के लिए चेतावनी जारी की थी. लेकिन कई  चेतावनियों के बाद भी हजारों परिवार इस क्षेत्र में आकर बस गए. यही नहीं, पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में टूरिज्‍म की जैसे बाढ़-सी आ गई है. पहाडि़यों पर घर, होटल, रिजॉर्ट लगातार बन रहे हैं. अंधाधुंध निर्माण से यहां का पूरा इकोसिस्‍टम बिगड़ गया है. ये बिगड़ता इकोसिस्‍टम भी लैंडस्‍लाइड की वजह बना. बताया जा रहा है कि कीचड़ में कई पर्यटक भी दबे हुए हैं.    

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भूस्खलन वाले इलाके के पास 2 हजार करोड़ की सुरंग भी प्रस्तावित

अब प्रस्तावित 2000 करोड़ रुपये की मेगा सुरंग परियोजना पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है, जो मुंडक्कई भूस्खलन स्थल से दो किलोमीटर दूर स्थित है, विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक संभावित आपदा के अलावा और कुछ नहीं है, जो परियोजना के आगे बढ़ने पर हो सकती है. इस परियोजना की परिकल्पना व्यवसायी और राजनेताओं सहित कुछ अमीर लोगों के लालच को पूरा करने के लिए की गई है. यदि सुरंग पूरी हो गई तो यह एक बड़ी आपदा का कारण बनेगी जैसा कि हमने अभी देखा है. वायनाड में सुरंगों का अंतिम बिंदु कन्नादिप्पलम है जो मुंडक्कई से दो किलोमीटर दूर स्थित है.

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पश्चिमी घाट क्या हैं, कौन-कौन से राज्‍यों ये फैला…

पहाड़ों की उस श्रृंखला को पश्चिमी घाट कहा जाता है, जो भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती है. ये पहाड़ गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल तक फैले हैं. पश्चिमी घाट को जैव विविधता, उच्च स्थानिकता और भूविज्ञान, संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र में उच्च मूल्य के मामले में विश्व स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. जैव विविधता के मामले में पश्चिमी घाट को दुनिया के आठ सबसे गर्म ‘हॉट स्पॉट’ में से एक माना जाता है.

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गाडगिल समिति की सिफारिशें 

  1. रिपोर्ट में पूरी पहाड़ी श्रृंखला को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई थी.
  2. सिफारिश की गई थी कि पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 में नए खनन अनुरोधों के लिए पर्यावरण मंजूरी देने पर रोक लगाने की जरूरत है.
  3. पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 क्षेत्रों में बांधों, रेलवे परियोजनाओं, प्रमुख सड़क परियोजनाओं, हिल स्टेशनों या विशेष आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित कोई नया निर्माण नहीं किया जाए.
  4. गाडगिल रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि क्षेत्र में पर्यटन को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.
  5. गाडगिल रिपोर्ट में पूरे क्षेत्र में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया था.

कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें 

  1. कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने संवेदनशील क्षेत्र में खनन, उत्खनन, ताप विद्युत संयंत्रों, टाउनशिप परियोजनाओं और अन्य ‘लाल उद्योगों’ पर प्रतिबंध 2- लगाने की सिफारिश की थी.
  2. कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के अनुसार, परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को संचयी प्रभाव आकलन के बाद ही मंजूरी दी जानी है.
  3. इन क्षेत्रों में रेलवे परियोजनाओं की सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है, ताकि पारिस्थितिकी पर उनका नकारात्मक प्रभाव न्यूनतम हो सके.
  4. परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को संचयी प्रभाव आकलन के बाद ही मंजूरी दी जानी है.
  5. कस्तूरीरंगन रिपोर्ट में जलविद्युत परियोजनाओं के लिए संचयी प्रभाव आकलन किये जाने का सुझाव दिया गया है. 
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हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अल्टीमेटम

वायनाड की घटना हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अल्टीमेटम है. अगर वायनाड से सबक नहीं लिया गया, तो हिमाचल और उत्तराखंड में भी कोई बड़ी आपदा आ सकती है. हिमाचल और उत्तराखंड में भी पिछले कुछ दशकों में अंधाधुंध निर्माण कार्य हो रहे हैं. इस साल जून-जुलाई के महीने में ऋषिकेश में पांव रखने की जगह नहीं थी. शिमला में सभी होटल बुक थे. मसूरी में इतनी भीड़ पहुंच गई थी कि होटल रूम के दाम डबल हो गए थे. इन सभी पहाड़ी इलाकों में तेजी से निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे लगातार इन पहाड़ों पर भार बढ़ रहा है. इसलिए वायनाड की घटना को हमें  हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अल्टीमेटम की तरह देखना चाहिए. 

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