दुनिया

क्या पटरी पर लौटेगा भारत-चीन का कारोबार? समझिए PM मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के मायने


नई दिल्ली:

दुनिया की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं के समूह BRICS की 16वीं समिट रूस के कजान में हो रही है. रूस, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका समेत 28 देशों के राष्ट्र प्रमुख इस समिट में पहुंचे हैं. बुधवार को ब्रिक्स समिट (BRICS Summit 2024) से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई. दोनों देशों के प्रमुख 5 साल बाद बातचीत की मेज पर मिले. आखिरी बार उनके बीच 2019 में द्विपक्षीय मुलाकात हुई थी.

2020 में गलवान झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हो गए. हालांकि, मोदी और जिनपिंग के बीच आखिरी बार 2022 में इंडोनेशिया के बाली में G20 समिट के दौरान मुलाकात हुई थी. पिछले साल साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुई BRICS समिट में दोनों नेता मिले थे. लेकिन दोनों के बीच द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई थी. ऐसे में दोनों देशों के रिश्तों और कारोबार पर ख़ासा असर पड़ना तय है. इस बैठक के बाद ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत-चीन का कारोबार पटरी पर लौटेगा?

दरअसल, कुछ बरस पहले तक भारत की होली-दीवाली में पिचकारियों से लेकर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, बिजली की लड़ियां तक चीन से आ रही थीं. लेकिन, 2020 आते-आते दोनों देशों के रिश्तों में नकली बंदूकों और टैंकों की जगह असली बंदूकें और टैंक चले आए. गलवान में झड़प हुई और कारोबार रोकने की बात चल पड़ी. दोनों देशों के बीच इतना सारा लेनदेन है कि इसे रोकना आसान नहीं था, मगर जो दरार पड़ी; उसके बड़े होते जाने का ख़तरा था. इसका कुछ असर कारोबार पर सबसे पहले दिखा. 

गलवान झड़प के बाद भारत-चीन के कारोबार पर क्या पड़ा असर?
-2021 में भारत और चीन का आपसी कारोबार 125.62 अरब डॉलर का हुआ करता था. -वित्त वर्ष 2022 में जो आपसी कारोबार 115.83 अरब डॉलर था. लेकिन, 2023 में भारत-चीन का कारोबार 113.83 अरब डॉलर पर सिमट कर रह गया.

-2015 से 2020 के बीच ये कारोबार 100 अरब डॉलर तक नहीं छू सका था, लेकिन बीच के वर्षों में जो छलांग लगाई गई, उसे गलवान ने पीछे धकेल दिया. अविश्वास की जो खाई पैदा हुई, उसने दोनों देशों के बीच पाबंदियों का औपचारिक-अनौपचारिक जाल बिछा दिया.

यह भी पढ़ें :-  मोदी 3.0 के 100 दिन: सरकार की उपलब्धियां गिनाने की तैयारी पूरी, मंत्रालय बताएंगे सफलता की कहानी

-भारत में कई संगठनों ने चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील शुरू कर दी. भारतीय रेलवे ने एक चीनी कंपनी से 471 करोड़ का करार रद्द कर दिया.

-BSNL को कहा गया कि वो चीनी टेलीफोन कंपनी ह्यूवेई के सामान इस्तेमाल न करें. इसका खयाल रखा गया कि दूसरे देशों से भी चीन में बना सामान न आ जाए.

-भारत में आयात होने वाले सामान पर मूल देश का नाम लिखना अनिवार्य किया गया. 2020 में ही ऊर्जा मंत्रालय ने साइबर सुरक्षा का सवाल उठाते हुए चीन से ऊर्जा-आपूर्ति के उपकरणों का आयात नियंत्रित करने की सलाह दी.

मुमकिन नहीं हो पाया पूरी तरह से कारोबार रोकना 
-ये फैसले बेशक आसान नहीं थे. दोनों देशों के बीच इतने सारे सामान का लेनदेन था कि सबको रोकना न संभव था और न व्यावहारिक. 
-भारत ने 2023 में चीन को 4455 तरह के सामान भेजे. ये कुल 15.33 बिलियन डॉलर का निर्यात था, जबकि चीन से भारत ने 7481 तरह के सामान मंगाए. ये 98.5 अरब डॉलर का आयात था.
-भारत ने वहां लौह अयस्क, इंजीनियरिंग का सामान और पेट्रोलियम उत्पाद वगैरह भेजे, जबकि चीन से इलेक्ट्रिकल मशीनरी, ऐटमी रिऐक्टर और उसके हिस्से और रसायन मंगवाए.

भारत और चीन के बीच मामला सिर्फ कारोबार का ही नहीं, बल्कि सियासत और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का भी है, जिसमें दोनों देश कभी आमने-सामने दिखते हैं और कभी एक-दूसरे से दूर चले जाते हैं.

पाकिस्तान है सबसे बड़ी अड़चन
भारत-चीन के रिश्तों में बड़ी अड़चन पाकिस्तान है. चीन पाकिस्तान को लेकर ममता दिखाता रहा है. आतंकवाद को लेकर दोनों देशों में अलग-अलग राय रही है. चीन कई आतंकियों पर भारतीय पाबंदी की राह रोकता रहा है. भारत और चीन के बीच फिलहाल रूस है, जो दोनों देशों के साथ खड़ा है. 

Latest and Breaking News on NDTV

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
सीनियर इकोनॉमिस्ट जयंत कृष्णा कहते हैं, “भले ही बीते 4 साल पॉलिटिकली और डेप्लोमेटिकली बहुत अच्छे नहीं रहे हो. लेकिन हमारा ट्रेड इस दौरान बराबर होता गया और बढ़ता गया. चीन के आयात में बराबर बढ़ोतरी होती गई. मुझे लगता है कि PM मोदी और शी जिनपिंग के बीच जो भी बात हुई है, उसमें कारोबार एक मुद्दे के तौर पर जरूर शामिल रहा होगा.”

यह भी पढ़ें :-  PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना को मंजूरी, 1 करोड़ घरों में लगाया जाएगा सोलर प्लांट, सरकार देगी हर परिवार को 78,000 रुपया सब्सिडी

जयंत कृष्णा कहते हैं, “हमारे व्यापार घाटे की बात करें, तो ये भारत के खिलाफ है और चीन के पक्ष में है. करीब 85 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है. वर्तमान समय में भारत सिर्फ 16-17 बिलियन डॉलर का सामान ही एक्सपोर्ट करता है. इंपोर्ट 102-103 बिलियन डॉलर के आसपास है. इलेक्ट्रॉनिक गुड्स का 30% सिर्फ चीन से आता है. अगर ये देश सही मायनों में दोस्ताना बनाकर चले तो इनके कॉम्बिनेशन से एक स्ट्रॉन्ग इकोनॉमी बनेगी. जिसका कोई मुकाबला नहीं कर पाएगा.”

भारत-चीन के बीच क्या है विवाद?
-पूर्वी लद्दाख में 7 ऐसे पॉइंट हैं, जहां चीन के साथ टकराव की स्थिति रहती है. ये हैं पेट्रोलिंग पॉइंट 14 यानी गलवान, 15 यानी हॉट स्प्रिंग, 17A यानी गोगरा, पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण छोर, डेपसांग प्लेन और डेमचॉक में चारदिंग नाला हैं, जहां तनाव रहता है. 

-अप्रैल 2020 में चीन ने एक सैन्य अभ्यास के बाद पूर्वी लद्दाख के 6 इलाकों में अतिक्रमण किया था. 2022 तक 4 इलाकों से चीन की सेना पीछे हट गई. दौलत बेग ओल्डी और डेमचॉक पर भारतीय सेना को पेट्रोलिंग नहीं करने दी जा रही थी.

-अप्रैल 2020 से पहले सैन्य अभ्यास के नाम पर चीनी सेना हजारों की तादाद में सीमा पर जमा हो गई. जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना ने भी तैनाती की. जून 2020 में गलवान में चीनी सैनिकों और भारतीय जवानों के साथ खूनी झड़प हुई. इस दौरान भारत के 20 जवान शहीद हो गए. जबकि चीन के इससे भी दोगुनी संख्या में सैनिक मारे गए थे. हालांकि, चीन ने सिर्फ 3 सैनिकों के मारे जाने की बात मानी थी.

-फिर कई दौर की बातचीत के बाद सितंबर 2022 में गोगरा और हॉट स्प्रिंग पर डिसएंगेजमेंट की सहमति बन चुकी थी, जिसके तहत चीन की सेना वहां से पीछे हट गई थी. फिर दो अहम पॉइंट डेपसांग, डेमचॉक बचे रह गए थे. इनपर 21 अक्टूबर को डिसएंगेजमेंट पर सहमति बनी है.

Latest and Breaking News on NDTV

LAC पर तनाव कम करने के लिए कितने दौर की हुई बातचीत?
LAC पर तनाव कम करने के लिए कोर कमांडर लेवल की 21 दौर की बातचीत हुई. 2020 में 8, 2021 में 5, 2022 में 4, 2023 में 3 और 2024 में फरवरी में वार्ता हुई थी. विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच कई स्तर पर बातचीत हुई. फिर जुलाई और अगस्त में इस साल दो बार दोनों नेता मिले. सितंबर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और वांग की भी मुलाकात हुई. अब इन बैठकों का सकारात्मक नतीजा सबके सामने है.

यह भी पढ़ें :-  कांग्रेस ने OROP के लिए 500 करोड़ रखे, हमने पूर्व सैनिकों को 70 हजार करोड़ रुपये दिए:पीएम मोदी

विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विक्रम मिस्री ने सोमवार को बताया था कि भारत-चीन के सीमावर्ती इलाकों में पेट्रोलिंग के साथ 2020 के बाद उठे मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रस्ताव तैयार हुआ है. इस पर दोनों देश कदम उठाएंगे.

इस सहमति का मतलब ये है कि बातचीत के दौरान पहले जिसे बफर जोन की तरह छोड़ दिया गया था, वहां भी अब गश्त हो सकेगी. हालांकि, इस समझौते की डिटेल आनी बाकी है. डिटेल मिलने के बाद ही स्थिति साफ हो सकेगी.

बफर जोन कहां हैं?
दो साल पहले पैंगोग एरिया यानी फिंगर एरिया और गलवान के पीपी-14 से डिसइंगेजमेंट हुआ. फिर गोगरा में पीपी-17 से सैनिक हटे और फिर हॉट स्प्रिंग एरिया में पीपी-15 से. पीपी यानी पेट्रोलिंग पॉइंट. यहां अभी बफर जोन बने हैं. उनमें न तो भारत के सैनिक पेट्रोलिंग कर रहे हैं ना चीन के. सूत्रों के मुताबिक, इन पेट्रोलिंग पॉइट पर भी फिर से पेट्रोलिंग शुरू करने को लेकर बातचीत चल रही है.


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button