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क्या JJP का शिवसेना और NCP जैसा होगा हाल? BJP ने पहले तोड़ा नाता, अब विधायकों पर नजर!

जेजेपी विधायकों की बगावत

जेजेपी में विधायकों की बगावत उस समय ही सामने आ गई थी, जब इस साल मार्च में हरियाणा में जेजेपी और भाजपा का गठबंधन टूट गया था.मनोहर लाल खट्टर की सरकार से अलग होने के बाद जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने दिल्ली के एक फार्महाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई थी.लेकिन इस बैठक में 10 में से केवल पांच विधायक ही शामिल हुए थे. बैठक में शामिल होने वाले विधायकों में नैना चौटाला, दुष्यंत चौटाला, रामकरण काला, अनूप धानक और अमरजीत धांडा थे.बैठक में जेजेपी विधायक राम कुमार गौतम,जोगी राम सिहाग, ईश्वर सिंह, देवेंद्र सिंह बबली और राम निवास सुरजाखेड़ा शामिल नहीं हुए थे. 

लोकसभा चुनाव प्रचार से जेजेपी विधायकों ने बनाई दूरी

यह खबर आने के बाद ही जेजेपी में टूट की आशंका जताई जाने लगी. इन आशंकाओं को तब और बल मिला जब लोकसभा चुनाव प्रचार में जेजेपा के करीब सात विधायकों ने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार से दूरी बना ली. जेजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला चुनाव लड़ रही हैं. इस लोकसभा सीट में उचाना कलां, उकलाना, नारनौंद और बरवाला विधानसभा सीटें आती हैं. इन सभी सीटों पर जेजेपी का कब्जा है. उचाना कलां से दुष्यंत चौटाला विधायक हैं. उनके अलावा उकलाना (सुरक्षित) से अनूप धानक, नारनौंद से राम कुमार गौतम और बरवाला से जोगी राम सिहाग विधायक हैं, लेकिन चुनाव प्रचार केवल दुष्यंत चौटाला कर रहे हैं. बाकी के विधायक प्रचार से गायब हैं.  

जेजीपी ने सिरसा लोकसभा सीट पर रमेश खटक को उम्मीदवार बनाया है. नरवाना विधानसभा सीट इसी क्षेत्र में आती है. नरवाना (सुरक्षित) से जेजेपी के रामनिवास सुरजाखेड़ा विधायक हैं, लेकिन उन्होंने खटक की जगह भाजपा उम्मीदवार रणजीत सिंह चौटाला को समर्थन देने की घोषणा कर दी है.

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इन चार विधायकों के अलावा शाहबाद (सुरक्षित)से जेजेपी विधायक रामकरण काला, गुहला (सुरक्षित) से जेजेपी विधायक चौधरी ईश्वर सिंह और टोहाना से जेजेपी विधायक देवेंद्र सिंह बबली भी चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे हैं. अगर इन सभी सात विधायकों को बागी मान लिया जाए तो जेजेपी के पास केवल नैना चौटाला, दुष्यंत चौटाला और अमरजीत धांडा ही रह गए हैं. 

जेजेपी ने क्या कदम उठाए हैं

चुनाव प्रचार से विधायकों की गैरमौजूदगी को जेजेपी ने गंभीरता से लिया है. उसने दो विधायकों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है. 

साल 2019 के चुनाव में जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी.ऐसे में दल बदल विरोधी कानून 1985 के तहत जेजेपी में टूट के लिए सात विधायकों का होना जरूरी है. सोमवार को जेजेपी के चार विधायकों की सीएम नायब सिंह सैनी से मुलाकात और चुनाव प्रचार से विधायकों के दूरी बनाने के बाद से जेजेपी में टूट की आशंका गहराने लगी है. बीजेपी इस तरह का प्रयोग महाराष्ट्र में कर चुकी है.वहां शिवसेना में बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे को वह मुख्यमंत्री और एनसीपी में बगावत करने वाले अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बना चुकी है. महाराष्ट्र में हुई बगावत के बाद चुनाव आयोग ने पार्टी का चुनाव चिन्ह भी बागियों को सौंप दिया है और उन्हें ही असली पार्टी बताया है. 

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