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मालदीव में मुइज्जू की बढ़ेगी ताकत या भारत विरोध की चुकानी पड़ेगी कीमत? आज हो जाएगा तय

नई दिल्ली:

भारत में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के लिए 7 चरण में मतदान हो रहे हैं. सत्तारूढ़ भाजपा अपनी वापसी सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है, वहीं विपक्षी गठबंधन की तरफ से उसे रोकने की कोशिश जारी है. भारत के पड़ोस में एक और चुनाव है जिस पर भारत करीब से नजर रख रहा है. मालदीव में संसदीय चुनाव हो रहे हैं. जिसपर भारत की पैनी नजर है.  मालदीव की संसद – जिसे मजलिस के नाम से जाना जाता है के 93 सदस्यों को पांच साल के कार्यकाल के लिए चुनने के लिए आज 2.8 लाख से अधिक लोग मतदान कर रहे हैं. 

यह चुनाव राष्ट्रपति पद के लिए नहीं है. इस चुनाव से मुइज्जू के पद पर कोई असर नहीं पड़ेगा.  वो  राष्ट्रीय चुनाव के नतीजों के बावजूद, शीर्ष पद पर बने रहेंगे. लेकिन, नतीजे यह तय करेंगे कि उन्हें नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक ताकत मिलेगी या नहीं. 

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मालदीव चुनाव क्यों महत्वपूर्ण है?

पिछले साल राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में मुइज़ू सत्ता में आये थे. लेकिन उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस उस गठबंधन का हिस्सा है जो 93 सदस्यीय सदन में अल्पमत में है. भारत समर्थक रहे पूर्व राष्ट्रपति  इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के नेतृत्व वाली मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी 41 सदस्यों के साथ मजलिस पर हावी है. संसद में बहुमत नहीं होने के कारण मुइज्जू को कई नीतिगत फैसलों को लेने में परेशानी हो रही है.  मुइज्जू के एक वरिष्ठ सहयोगी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया है कि इस चुनाव में जमीनी हालत बिल्कुल अलग है.गौलतलब है कि वह भारतीय सैनिकों को वापस भेजने के वादे पर सत्ता में आए थे और वह इस पर काम कर रहे हैं. संसद उनके साथ सहयोग नहीं कर रही है. 

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भारत और चीन की है नजर

सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद, मुइज़ू ने तैनात भारतीय सैनिकों के एक छोटे समूह को बाहर निकालने के लिए दबाव बनाया था. उन्होंने चीन का भी दौरा किया था और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी. अपनी वापसी पर, उन्होंने कहा, “हम छोटे हो सकते हैं, लेकिन इससे उन्हें हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है.” हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन इस टिप्पणी को भारत पर कटाक्ष के तौर पर देखा गया था. 

हालांकि, पिछले महीने उनके द्वारा रिश्ते में सुधार की कोशिश हुई थी.  जब उन्होंने मालदीव को भारत के वित्तीय समर्थन को स्वीकार किया था और कहा था कि “भारत मालदीव का निकटतम सहयोगी बना रहेगा”.  पिछले साल के अंत में मालदीव पर भारत का लगभग 400.9 मिलियन डॉलर बकाया था. 

मालदीव को लेकर भारत ने क्या कदम उठाया है?

भारत ने अब तक संयमित रुख अपनाया है और तनावपूर्ण संबंधों को कम महत्व दिया है. मुइज्जू के चुनाव के बाद नई दिल्ली-माले संबंधों के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा था कि पड़ोसियों को एक-दूसरे की जरूरत है. उन्होंने कहा था, “इतिहास और भूगोल बहुत शक्तिशाली ताकतें हैं. इससे कोई बच नहीं सकता. “

चीन, जिसने मुइज़ू के सत्ता में आने के बाद मालदीव के लिए सहायता में उल्लेखनीय वृद्धि की और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए कई समझौते किए, वह हिंद महासागर में अपने प्रयासों और मालदीव के रणनीतिक महत्व के लिए  मालदीव के चुनाव पर भी करीब से नजर रख रहा है. 

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यह पूछे जाने पर कि क्या मुइज्जू की चीन समर्थक नीति चुनाव में उनकी पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी, पूर्व राजदूत और भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी राजीव भाटिया ने कहा, “जब राष्ट्रपति चुनाव हुए, तो मुइज्जू की पार्टी जीत गई. इसके बाद मेयर का चुनाव हुआ, जिसमें उनकी पार्टी हार गई.” यह राजनीतिक मैच का अंतिम चरण है. मेरी धारणा है कि जहां भारत और चीन के साथ मालदीव का समीकरण एक प्रमुख मुद्दा है, वहीं लोक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और मुद्रास्फीति जैसे स्थानीय मुद्दे भी इस चुनाव में हावी रहेंगे. 

आइद ने कहा कि मुइज्जू ने इस राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान दावा किया था कि वह किसी भी देश की ओर झुकाव नहीं रखेंगे. लेकिन कई बड़ी परियोजनाएं चीनी कंपनियों को दी गई हैं. इसलिए सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या इसमें भ्रष्टाचार हुआ है. इन घोटालों की चर्चा के बीच चुनाव हो रही है. मालदीव में चुनाव के नतीजे आज देर रात स्पष्ट होने की संभावना है. 

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