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क्या फिर पाला बदलेंगे नीतीश कुमार? जानिए क्यों तेज हुई अटकलें


नई दिल्ली:

बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मची हुई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है. जेडीयू के प्रमुख और राज्य के CM नीतीश कुमार पहले भी अपने राजनीतिक पाले बदलने के लिए चर्चा में रहे हैं और अब एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह एनडीए गठबंधन को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव में मुश्किल से 7-8 महीने का समय बचा है. इस राजनीतिक चर्चा की शुरुआत तब हुई जब एक कॉन्क्लेव के दौरान गृह मंत्री अमित शाह से पूछा गया कि बिहार में बीजेपी की रणनीति क्या होगी और नेता कौन होगा? इस सवाल पर अमित शाह ने कहा कि इस पर फैसला बीजेपी का पार्लियामेंट बोर्ड करेगा. यह बयान चौंकाने वाला इसलिए था क्योंकि इससे पहले एनडीए और बीजेपी के नेता बार-बार यह कहते आए थे कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार ही रहेंगे. अमित शाह के इस बयान के बाद जेडीयू के नेताओं में संशय पैदा हो गया.

नीतीश कुमार ही करेंगे एनडीए का नेतृत्व 
हालांकि, अमित शाह के बयान के बाद बीजेपी की ओर से एक के बाद एक कई बयान सामने आए, जिनमें कहा गया कि बिहार में एनडीए का नेतृत्व नीतीश कुमार ही करेंगे और विधानसभा चुनाव उन्हीं की अगुवाई में लड़ा जाएगा. लेकिन, अमित शाह के बयान के बाद उठे सवालों ने जेडीयू खेमे में चिंता बढ़ा दी है.

जेडीयू के नेताओं ने इस मुद्दे पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हैं. ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी में कुछ नेताओं को इस बात का शक है कि बीजेपी कहीं न कहीं अपने नेतृत्व को लेकर नए समीकरण तैयार कर रही है.

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 ‘बीजेपी की अपनी सरकार हो…’
जब देश भर में अटल बिहारी वाजपेयी का 100वां जन्मदिन मनाया जा रहा था, उस समय बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के एक बयान ने राजनीतिक हलचल मचा दी. विजय सिन्हा ने कहा कि बिहार में बीजेपी की अपनी सरकार हो, यह अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था और इसे हम पूरा कर सकते हैं. इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई. हालांकि, बाद में विजय सिन्हा ने इस बयान पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि बिहार में नेतृत्व नीतीश कुमार के पास ही रहेगा. लेकिन उनके पहले बयान ने एनडीए गठबंधन और जेडीयू-बीजेपी के रिश्तों पर सवाल खड़े कर दिए.

एनडीए से नीतीश का पुराना रिश्ता
नीतीश कुमार और बीजेपी का रिश्ता अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से ही काफी पुराना है. 1998 में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की स्थापना के समय से ही यह गठबंधन अस्तित्व में है. उस समय जेडीयू, जो पहले समता पार्टी के नाम से जानी जाती थी, बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. जॉर्ज फर्नांडिस को एनडीए का संयोजक भी बनाया गया था.

कम सीटें, फिर भी CM बनें नीतीश
पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) ने बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा. जेडीयू को काफी कम सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था. बीजेपी का स्ट्राइक रेट हमेशा की तरह शानदार रहा और वह नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी थी. पिछले चुनाव के नतीजों के बावजूद, बीजेपी ने कम सीटें जीतने के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देने का निर्णय लिया था. यह निर्णय एनडीए गठबंधन की मजबूती और बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों की गहराई को दर्शाता था. लेकिन अब चर्चाएं इसलिए तेज हो रही हैं क्योंकि महाराष्ट्र में हाल ही में कुछ ऐसा हुआ, जिसने बिहार की राजनीति में संभावनाओं को जन्म दिया है.

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क्या बिहार में दोहराया जाएगा महाराष्ट्र का मॉडल?
महाराष्ट्र में जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने पार्टी तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन किया, तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, भले ही उनकी पार्टी के पास बीजेपी से कम सीटें थीं. लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव के बाद, जब बीजेपी ने 130 से अधिक सीटें जीतकर मजबूत स्थिति हासिल की, तो पार्टी ने तुरंत एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उपमुख्यमंत्री बना दिया.

महाराष्ट्र के इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद, बिहार में भी यही सवाल उठ रहा है. पिछले चुनाव में जब बीजेपी का स्ट्राइक रेट काफी बेहतर था और पार्टी मजबूत स्थिति में थी, तब भी उसने गठबंधन धर्म निभाते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन अब सवाल यह है कि अगर इस बार भी बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहता है, तो क्या वह जेडीयू को मुख्यमंत्री पद देने का निर्णय दोबारा लेगी, या फिर महाराष्ट्र का मॉडल अपनाकर खुद नेतृत्व की बागडोर संभालेगी?

नीतीश के यात्रा में शामिल हुए सम्राट चौधरी!
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों राज्य में अपनी विकास यात्रा पर निकले हुए हैं. इस यात्रा का उद्देश्य सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत जानना और जनता से संवाद स्थापित करना है. इस दौरान सम्राट चौधरी का कार्यक्रम में शामिल होना सियासी विश्लेषकों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है.


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