कर्नाटक कांग्रेस में अंदरूनी गुटबाजी, ..तो क्या गिर जाएगी सिद्धारमैय्या सरकार?
बेंगलुरु: इन दिनों कर्नाटक की राजनीति में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. नेताओं के बयानों से शायद ऐसा ही लग रहा है. कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी की वजह से, या फिर महाराष्ट्र की तर्ज पर कांग्रेस में टूट की खबर है. सवाल ये उठता है कि क्या जोड़-तोड़कर महाराष्ट्र की तर्ज पर कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन हो सकता है? रमेश जर्किहोली के दावे को गंभीरता से इसलिए लिया जा रहा है, क्योंकि 2019 में ऑपरेशन कमल के जरिए कांग्रेस और जेडीएस के जिन 17 विधायकों से इस्तीफा लेकर उन्हें बीजेपी में शामिल किया गया था, उस मुहिम में रमेश जर्किहोलो ने अहम भूमिका निभाई थी.
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कर्नाटक विधानसभा में 225 सदस्य हैं. (एक मनोनीत-एंग्लो-इंडियन) यानी सरकार बनाने के लिए 113 विधायक चाहिए. कांग्रेस के पास 135 विधायक हैं. बीजेपी के 66, जेडीएस के 19, निर्दलीय विधायक 2 और अन्य 2 हैं.
ऐसे बन सकता है नया समीकरण
बीजेपी और जेडीएस के बीच लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन है. सीट शेयरिंग के लिए बातचीत चल रही है. बीजेपी के 66 और जेडीएस के 19 विधायक मिलकर सरकार बनाना चाहें, तो इस गठबंधन को 113 का जादूई आंकड़ा पाने के लिए 28 और विधायक चाहिए होगा. यानी कांग्रेस से इस गठबंधन को 28 विधायकों को तोड़ना होगा. कांग्रेस के 135 विधायक हैं. ऐसे में दलबदल कानून के तहत 28 विधायकों की सदस्यता खत्म हो जाएगी, फिर इन्हें चुनाव का सामना करना पड़ेगा और सभी 28 विधायकों के लिए फिर से चुनाव में जीत की राह आसान नहीं होगी.
दूसरी चुनौती ये है कि 76 करोड़ रुपये के आय से अधिक संपत्ति का मामला, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने CBI को 3 महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट मांगी है. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें 2019 में गिरफ़्तार भी किया था. फिलहाल वो जमानत पर हैं.
डीके शिवकुमार को पता है कि दोषी पाए जाने पर सजा खत्म होने के बाद 6 सालों तक वो चुनाव नही लड़ पाएंगे. ऐसे में पार्टी का समर्थन उन्हें भविष्य में काम आएगा. इसलिए अपने ताजे बयान में डीके शिवकुमार ने कहा कि बेवजह की बातें पावर शेयरिंग को लेकर की जा रही हैं, जिसकी जरूरत नहीं है.
मैं मुख्यमंत्री बना रहूंगा- सिद्धारमैया
2023 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जिस दिन सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी, तभी से कहा जा रहा है कि पहले ढाई साल सिद्धारमैया और बाद के ढाई साल डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री रहेंगे. डीके शिवकुमार के बयान से ठीक पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान आया, उन्होंने दावा किया कि सरकार 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करेगी और मैं मुख्यमंत्री बना रहूंगा. पावर शेयरिंग की बात बेबुनियाद है.
इस महीने के आखिर में ओबीसी कमीशन कास्ट सेंसस रिपोर्ट सिद्धारमैय्या सरकार को सौंप देगी. रिपोर्ट के मुताबिक लिंगयात और वोकलीग्गा की आबादी कम है. यानी इन जातियों का वर्चस्व खत्म हो जाएगा. अनुसूचित जाति और मुस्लिम आबादी इन दोनों जातियों से अधिक है. डीके शिवकुमार वोकलीग्गा हैं और उनकी गिनती पार्टी के मजबूत वोकलीग्गा नेता के तौर पर होती है. लेकिन जब उनकी जाति वोटों के आधार पर पिछड़ेगी तो असर डीके शिवकुमार के राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा.
प्रदेश में घटी है ओबीसी की आबादी!
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरबा हैं यानी ओबीसी. इस रिपोर्ट के मुताबिक उनकी जाति का प्रतिशत भी कम हुआ है, जहां पहले 11 फीसदी आबादी थी, वो घटकर 7 फीसदी के आसपास आ गई है. फिलहाल सिद्धारमैय्या कास्ट सेन्सस रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं. लोकसभा चुनावों के बाद ही इसे जारी किया जाएगा. कुल मिलाकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच सत्ता का संघर्ष किसी न किसी रूप में जारी है, जिससे इस राज्य में सत्ता परिवर्तन की अटकलें लगाई जा रही हैं.
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